जातक की कुंडली में विभिन्न स्थितियों के अनुसार शुक्र ग्रह से सगाई, विवाह, संबंध विच्छेद, तलाक, विलास, प्रेम सुख, संगीत, चित्रकला, द्यूत, कोषाध्यक्षता, मानाध्यक्षता, विदेश गमन, स्नेह व मधुमेह प्रमेह आदि रोगों का अध्ययन होता है।
मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ लग्नों में यह योगकारक होता है।
आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, कृतिका व स्वाति और आर्द्रा नक्षत्रों में रहकर शुभ फल देता है तथा भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्रों में स्थित होकर शुभ फल प्रदान करता है। शेष पंद्रह नक्षत्रों में सम फल देता है।
इस ग्रह का अधिकार मनुष्य के चेहरे पर होता है। यह ग्रह एक राशि पर डेढ़ माह रहता है।
यह वृष तथा तुला राशि का स्वामी है तथा तुला राशि पर विशेष बली रहता है। शुक्र ग्रह के गुरु, सूर्य, चंद्र मित्र, बुध, शनि सम तथा मंगल शत्रु होते हैं।