गुरु-सूर्य युति शुभ प्रभाव देती है

प्रतिष्ठादायक है गुरु-सूर्य का संयोग

भारती पंडित
कुंडली में सूर्य तेज का, राज्य पक्ष का कारक है और गुरु ज्ञान का, विद्या का कारक है। इन दोनों की युति, प्रतियुति या नवम-पंचम योग बड़े ही फलदायक होते हैं। यह योग उच्च फलदाता होता है। ऐसे व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में नाम कमाते हैं, उच्च स्तरीय ‍शिक्षा प्राप्त करने के इन्हें ढेरों अवसर मिलते हैं, रिसर्च या शोध के क्षेत्र में नाम कमाते हैं व शिक्षा हेतु उच्च कोटि के प्रवास भी करते हैं।
 
यह योग शुभ भावों में (विशेषत: 1, 5, 9, 10 में) हो तो व्यक्ति उदार मन की, सहृदय, तेजस्वी व आदर्शवादी होते हैं। मन की बात स्पष्ट रूप से कहना इनकी खासियत होती है। यह युति कुंडली से होने पर 26वें वर्ष में भाग्योदय होता है और मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, कीर्ति सब कुछ मिलता है। राजकीय सम्मान भी सूर्य की महादशा में मिलता है व बौद्धिक क्षेत्र में मनचाहा कार्यपद मिलता है।
 
गुरु-सूर्य युति
 
यह युति मेष, सिंह व धनु लग्न के लिए अधिक फलदायक है, क्योंकि इनमें गुरु व सूर्य लग्न पंचम या नवम भाव के स्वामी होकर श्रेष्ठ फल देते हैं। ऐसे में यह युति इन्हीं भावों में हो तो व्यक्ति को शिखर पर पहुँचा देती हैं। यह युति पिता, गुरु और बुजुर्गों के विशेष स्नेह व आशीर्वाद का भी सूचक है।
 
लग्न में यह युति होने पर गुरु का दृष्‍टिफल पंचम, सप्तम व नवम को मिलता है। यह युति पंचम में होने पर नवम, आय व लग्न भाव को बल मिलत‍ा है। और नवम में होने पर लग्न, पराक्रम व पंचम को बल मिलता है। यह युति ज्ञान व अध्यात्म में भी विशेष रूचि को दर्शा‍ती है।

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