शुक्र से होते हैं यह अनिष् ट (1) यदि जन्म कुंडली के किसी भी भाव में शुक्र वक्री, नीच राशि, शत्रु राशि में स्थित हो या पापी ग्रहों के युक्त या दुष्ट हो तो जातक को घर-वाहन, वैभव, स्त्री सुख से वंचित कर परस्त्रीगामी तथा यौन रोगों से ग्रस्त बनाता है।
(2) छठे या आठवें भाव में शुक्र किसी भी राशि में हो तो जातक कई प्रकार के रोग और शत्रुओं से ग्रस्त रहता है। छठे भाव में शुक्र होने से जातक दुराचार, डरपोक, सातवें भाव में शुक्र होने से परस्त्रीगामी और स्त्रियों के पीछे भागने वाला तथा उनसे अपमानित होता है।
(3) तृतीय भाव में स्थित शुक्र जातक को आलसी, कायर तथा अष्टमस्थ शुक्र जातक को क्रोधी, दुखी, पत्नी से पीड़ित तथा गुप्त रोगी बनाता है। पुरुष की जन्म कुंडली में शुक्र स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व करता है अत: शुक्र से जितने पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट होता है, जातक के जीवन में उतनी ही स्त्रियों से हानिकारक और अपमानजनक संबंध होते हैं।
(4) किसी भी भाव का स्वामी होकर यदि उसके छठे या आठवें भाव में शुक्र हो तो उस भाव से संबंधित अशुभ फल प्राप्त होते हैं जबकि बारहवें भाव में स्थित शुक्र शुभ फल प्रदान करता है, क्योंकि बारहवां भाव व्यय भाव है तथा जातक अपने जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए ही व्यय करता है। अत: यदि बारहवां शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त या दुष्ट होगा तो शुभ व्यसनों या कार्यों पर व्यय होता है अन्यथा नहीं।
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शांति के उपाय:- (1)
स्नानादि :- जायफल, मैनसिल, पीपरामूल, केसर, इलायची, मूली बीज, हरड़, बहेड़ा, आंवला आदि में जो सामग्री उपलब्ध हो उनके मिश्रित जल से स्नान करने से शुक्र से उत्पन्न अरिष्ट शांत होते हैं।
(2)
पूजा-पाठ :- शुक्र का मंच, दुर्गा सप्तशती का विधिवत पाठ, शतचंडी का पाठ, शुक्र स्तोत्र या कवच का पाठ, आचार्य शंकर कृत सौंदर्य लहरी के श्लोक का पाठ, इंद्राक्षी कवच, अन्नपूर्णा स्तोत्र, विवाह बाधा उत्पन्न होने पर कन्याओं को कामदेव मंत्र और पुरुषों को मोहिनी कवच का पाठ उत्तम फल प्रदान करता है। साथ ही श्रीसूक्त, लक्ष्मी कवच आदि का पाठ करते रहना चाहिए।
(3)
रत्नादि :- शुक्र के अनिष्ट नाश और सुख प्राप्ति के लिए हीरा धारण किया जाता है। जरिकन युक्त शुक्र यंत्र धारण करने से पत्नी सुख, व्यापार और धन में वृद्धि होती है। कम से कम एक रत्ती हीरे को सात रत्ती सोने की अंगूठी में जड़वाना चाहिए।
सोने के अभाव में हीरे को विचित्र रंग के वस्त्र में बांधकर गले या भुजा में धारण करना चाहिए। हीरे के अभाव में उसके उपरत्न संग कांसला, संग दुतला, संग कुरंज या संग तुरमुली को भी धारण किया जा सकता है। इनके अलावा चांदी अथवा सिंहपुच्छी नामक पौधे की जड़ को भी धारण करने से लाभ होता है।