चंद्र देव से जुड़ी 10 विशेष बा‍तें, जरूर पढ़ें

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1. श्रीमद्भागवत के अनुसार चन्द्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। 
2. इनका वर्ण चमकीला गौर है। 
 
3. इनके वस्त्र, अश्व और रथ श्वेत रंग के हैं। शंख के समान उज्जवल दस घोड़ों वाले अपने रथ पर यह कमल के आसन पर विराजमान हैं। 
 
4 . इनके एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ वरमुद्रा में है। इन्हें सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। 
 
5 . भगवान श्रीकृष्ण ने इनके वंश में अवतार लिया था, इसीलिए वे भी सोलह कलाओं से युक्त थे। समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के कारण मां लक्ष्मी और कुबेर के भाई भी माने गए हैं। भगवान शंकर ने इन्हें मस्तक पर धारण किया है। 
 
6 . ब्रह्माजी ने इन्हें बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा मनोनीत किया है। इनका विवाह दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ है, जो सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में जानी जाती हैं। 
 
7. इस तरह नक्षत्रों के साथ चन्द्रदेव परिक्रमा करते हुए सभी प्राणियों के पोषण के साथ-साथ पर्व, संधियों व मासों का विभाजन करते हैं। 
8. इनके पुत्र का नाम बुध है जो तारा से उत्पन्न हुआ है। 
 
9. इनकी महादशा दस वर्ष की होती है तथा ये कर्क राशि के स्वामी हैं। इन्हें नवग्रहों में दूसरा स्थान प्राप्त है। इनकी प्रतिकूलता से मनुष्य को मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। कहते हैं कि पूर्णिमा को तांबे के पात्र में मधुमिश्रित पकवान अर्पित करने पर ये तृप्त होते हैं। जिसके फलस्वरूप मानव सभी कष्टों से मुक्ति पा जाता है।
 
10. इनका सामान्य मंत्र :- "ॐ सों सोमाय नम:" है। इसका एक निश्चित संख्या में संध्या समय जाप करना चाहिए।
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