अपने आपमें बलिष्ठ राशि है कुंभ

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
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धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों, शतभिषा के पूर्ण चरण के साथ पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों के मध्य कुंभ राशि बनती है। कुंभ राशि अपने आप में एक बलिष्ठ राशि है। इसका राशि स्वामी शनिदेव है। हम यहाँ मकर और मीन के मध्य विराजमान इस राशि और इस लग्न के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं ।

कुंभ लग्न में जन्म लेने वाले जातक के लक्षण नीचे दर्शाए गए हैं। कुंभ लग्न (जन्म के समय) हो तो माता का सिर पश्चिम को, जीर्ण वस्त्र, कुछ काले, कंबल ओढ़ा हो, साधारण शीतल भोजन किया हो, पिता घर पर न हो, स्त्रियाँ 4 या 2 और 1 स्त्री बाद में आई। इन स्त्रियों में एक गर्भिणी हो।

बालक थोड़ा कम रुदन क्रिया करे। बालक के होंठ मोटे, मस्तक लंबा और उसकी प्रकृति गर्म हो। ये सारे लक्षण कुंभ लग्न में जन्म लेने वाले बालक के होते हैं।

इस लग्न वाले के लिए बुध तथा शुक्र ग्रह शुभ फलदायक होते हैं। इसके विपरीत चंद्रमा, सूर्य, मंगल तथा गुरु दु:खदायक ग्रह होते हैं। इस लग्न में जन्म लेने वाले जातकों की वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला और मकर राशि वालों से मित्रता रहती है किंतु मेष, कर्क, सिंह व वृश्चिक राशि वालों से विरोध रहता है ।

इस लग्न में जन्म लेने वाले जातक अपने सिद्धांतों के लिए अडिग रहते हैं। ऐसे जातक को कभी-कभी पूर्वाभाष हो जाता है। कुंभ लग्न वाली जातक की कुंडली में सूर्य, बुध तथा गुरु तृतीय भाव में हों तो सूर्य की महादशा पूर्ण सुख-संपत्ति देती है। कुंभ लग्न में शुभ ग्रह होने पर जातक के यशस्वी होने का योग बनता है और नए कार्य व आविष्कार में सफलता दिलाता है।
  धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों, शतभिषा के पूर्ण चरण के साथ पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों के मध्य कुंभ राशि बनती है। कुंभ राशि अपने आप में एक बलिष्ठ राशि है। इसका राशि स्वामी शनिदेव है।      


कुंभ लग्न में लग्नाधिपति शनि तथा धनेश गुरु का परस्पर यदि स्थान परिवर्तित हो तो बृहस्पति की महादशा में जातक को मिश्रित फल मिलता है। तृतीय भाव में मंगल हो तो उच्च शिक्षा व वैज्ञानिक बनाने के योग बनाता है परंतु मंगल निम्न हो या ग्रसित हो तो मंगल की महादशा में दु:ख झेलना पड़ता है ।

कुंभ लग्न में छठा चंद्रमा हो तो जातक कमजोर होता है और रक्त तथा नेत्र रोगी हो सकता है और दुर्घटना अधिक होने का भय बना रहता है।

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