अटल जी की कविता : जीवन की ढलने लगी सांझ

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जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
 
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शांति बिना खुशियां हैं बांझ।
 
सपनों से मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।

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