अटल जी पर कविता : हां! ये मेरा अटल विश्वास है...

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- डॉ. प्रीति सुराना
 
तुम्हारी देह और हमारे मन को 
जलाते अंगारों में
हवा में घुल चुके तुम्हारे ही विचारों में
आकाश के तारों में
आंखों की नमी में
इसी सरजमीं में
तुम कहीं नहीं गए यहीं आसपास हो,..
 
सब कह रहे हैं 
तुम पंच तत्व में विलीन हो गए
या 
ये कि तुम ब्रह्म में लीन हो गए
पर सच कहूं
आज तुम जहां भी हो
तुम्हारी आत्मा जहां भी कर रही है विश्राम
एक लंबे और अनुकरणीय सफर ने 
जिस पड़ाव पर आकर लिया है विराम...
 
मुझे पूरा विश्वास है
तुम्हारे आत्मीय
तुम्हारे प्रियजन
या वो सभी जिनके दिलों में तुम्हारा वास है,
धरती, आकाश, अग्नि, जल और वायु 
इन पंचतत्वों से बनी दुनिया में 
आज जिनका भी आवास है,
सच तो ये है तुम चले गए ये सिर्फ आभास है,
अब तो धरा के कण कण में तुम्हारा निवास है...
 
दे गए हो जाते-जाते तुम एक और सबक दुनिया को
चाहे देह मरे या आत्मा सृष्टि में विलीन हो जाए
वो कभी नहीं मर सकता जिसने
परंपराओं को तोड़कर नव समाज रचा हो,
शान से जीया जीवन और जी भर जीकर मरा हो,
जिसने अपने कर्म से खुद रचा अपना अटल इतिहास है।
 
हां! ये मेरा अटल विश्वास है...। 

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