थप्पड़ या फिर घूंसा?

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मनुष्य के हाथ मारधाड़ के लिए बने हैं न कि काम धाम करने के लिए। सुनने में यह बात थोड़ी अजीब-सी लगती है, लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। कम से कम अमेरिका में किए गए इस अध्ययन के बाद तो बिलकुल नहीं।

उटा विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने मार्शल आर्ट के लोगों के हाथों की ताकत और गति को मापने के लिए इस समय एक यंत्र का इस्तेमाल किया जब मार्शल आर्ट के खिलाड़ी पंच बैग पर घूंसे बरसा रहे थे। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि मुक्के की बनावट उंगलियों के जोड़ों को वो ताकत देती है, जिससे मुक्का मारने की क्रिया को बल मिलता है।

इस अध्ययन को ‘एक्सटर्नल बायोलॉजी’ नाम की एक पत्रिका में प्रमुखता से छापा गया है।

मुक्का नहीं थप्पड़ है जोरदार : हाथों की बनावट अगर इस तरह की होती है कि उसका बेहतर इस्तेमाल मारधाड़ में हो सकता है तो फिर यह जानना और दिलचस्प हो जाता है कि किस तरह की माड़धाड़ में।

वैज्ञानिकों से जब बीबीसी संवाददाता ने यह पूछा कि आखिर किसी को आघात पहुंचाने के लिए थप्पड़ ज्यादा कारगर है या फिर मुक्का। इस सवाल पर एक अध्ययनकर्ता डेविड करियर ने बताया कि थप्पड़ ज्यादा ज़ोरदार लगता है और संवाददाता ने इसे महसूस भी किया।

उनका कहना था कि वाकई यह आश्चर्यजनक था, क्योंकि पहला प्रहार जो मुक्के से किया गया था उसमें दम नहीं था जबकि दूसरा प्रहार काफी ताकतवर था जो हथेली से किया गया था। दरअसल, प्रहार के लिए जब हाथ (थप्पड़) का इस्तेमाल होता है तो उसकी सतह ज्यादा होती है जिसकी वजह से चोट ज्यादा लगती है और खुले हाथ से किया गया प्रहार ज्यादा बलशाली प्रतीत होता है।

मुक्के की तुलना में खुले हाथ से किया गया प्रहार शरीर के ऊतकों को ज्यादा क्षति पहुंचा पाता है क्योंकि खुली हथेली की सतह बंद मुठ्ठी के मुकाबले अधिक जगह घेरती है। इस टीम ने अध्ययन के दौरान पाया कि बंधी हुई मुठ्ठी, हाथ की कोमल हड्डियों को ताकत प्रदान करती है।

मुठ्ठी बनाने के क्रम में जो हाथों में अकड़न होती है, उससे हाथों के जोड़ों को सुरक्षात्मक सहारा मिलता है।

हथेली का इस्तेमाल : उटा विश्विद्यालय के प्रोफेसर करियर और माइकल एच मुरगन का कहना है कि मानव हथेली का निर्माण कुछ इस तरह से हुआ है कि वो ‘हस्त कौशल’ का इस्तेमाल कर सके। हालांकि इन वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि कई हाथों की बनावट ऐसी भी है कि जिसकी उपयोगिता समानों को इधर-उधर करने मात्र के लिए ही होती है।

प्रोफेसर करियर कहते हैं कि मुझे लगता है कि प्राकृतिक तौर पर इंसान एक ‘आक्रामक जानवर’ की तरह होता है। करियर यह भी मानते हैं कि इंसान आने वाले समय में हिंसा को रोकने में सफल होंगे।

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