पहले तेजस्वी, अब अर्जित के कारण सियासी ताप झेलते नीतीश

Webdunia
- मनीष शांडिल्य
 
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे के बेटे और भाजपा नेता अर्जित शाश्वत के ख़िलाफ़ बीते सप्ताह ही गिरफ़्तारी का वारंट जारी हुआ था। इस वारंट के बाद वो पटना की सड़कों पर जुलूस में शामिल हुए। मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं, लेकिन नीतीश सरकार की पुलिस अब तक उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर पाई है।


अर्जित शाश्वत पर भागलपुर के नाथनगर इलाक़े में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का आरोप है। बिहार में इस मामले को लेकर सियासत गर्म है। अश्विनी चौबे के साथ केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह खुलकर अर्जित का बचाव कर रहे हैं। वहीं विपक्ष इस मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर ले रहा है। क्या अर्जित को लेकर जेडीयू और नीतीश कुमार बैकफुट पर हैं?

इस सवाल पर भाजपा प्रवक्ता संजय सिंह 'टाइगर' ने बीबीसी से कहा, ''क़ानून अपना काम कर रहा है। इसे लेकर सरकार बिलकुल असहज नहीं है। घटनाओं को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है, लेकिन जांच के बाद सच सामने आ जाता है। जो सच है वो सामने आएगा।'' सोमवार को बिहार विधानमंडल में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने अर्जित शाश्वत मामले में नीतीश सरकार पर तीखा हमला बोला था।

उन्होंने कहा, ''क़िस्सा कहा जाता है कि सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। उनका (अर्जित का) तो भारत सरकार भी है और यहां भी सरकार है तो उनको कौन चीज़ का डर है।'' विधान मंडल परिसर में ही जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री श्याम रजक ने कहा कि उनकी सरकार न किसी को फंसाती है और न ही बचाती है। क़ानून से कोई बच नहीं पाएगा।

वहीं जानकारों का मानना है कि सूबे की हाल की सांप्रदायिक घटनाओं से नीतीश सरकार पर सवाल ज़रूर खड़े हो रहे हैं, लेकिन अर्जित के मामले को नीतीश कुमार अब अपने तरीक़े से अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं। जेडीयू के भी सूत्र बताते हैं कि पटना में रामनवमी के मौक़े पर अर्जित के मौजूद रहने की जानकारी के बावजूद पुलिस ने उन्हें इस कारण से गिरफ़्तार नहीं किया क्योंकि प्रशासन को हालात बिगड़ने की आशंका थी। इसके साथ ही जेडीयू नेता यह भी बताते हैं कि नीतीश इस मामले को समय के साथ एक रूटीन मामले की तरह शांत होने देना चाहते हैं।

आख़िर क्या था पूरा मामला? : हिंदू नववर्ष की शोभा यात्रा के दौरान 17 मार्च को भाजपा ने भागलपुर के सैंडिस कंपाउंड से जुलूस निकाला था जिसका नेतृत्व अर्जित भी कर रहे थे। पुलिस के मुताबिक़ यह जुलूस बिना अनुमति के निकाला गया था। यही जुलूस जब भागलपुर के नाथनगर पहुंचा था तो आपत्तिजनक गाने को लेकर दो पक्षों के बीच पत्थरबाज़ी, आगजनी और हिंसा की घटना हुई थी।

इसमें पुलिस के भी जवान घायल हुए। इस घटना को लेकर बीते दिनों दो मामले दर्ज कराए गए। इसमें अर्जित समेत क़रीब दर्जन भर लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। इसके बाद बीते शनिवार को पुलिस ने अर्जित शाश्वत चौबे समेत नौ लोगों के ख़िलाफ़ अदालत से गिरफ़्तारी वारंट हासिल किया।

अर्जित शाश्वत ने विदेश में पढ़ाई की है। 2015 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता की पुरानी विधानसभा सीट भागलपुर से बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ने वाले अर्जित ने ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है।

भागलपुर की घटना से पहले अररिया में भारत विरोधी नारे वाले कथित वायरल वीडियो और दरभंगा में कथित रूप से मोदी चौक के नाम को लेकर हुई हत्या को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें हुई हैं। वहीं बीते दिनों नीतीश कई बार यह दोहरा चुके हैं कि उनकी सरकार सूबे में सदभाव कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

इतना ही नहीं 22 मार्च को बिहार दिवस के मौक़े पर उन्होंने पटना के गांधी मैदान में कहा था, ''राज्य में कुछ लोग गड़बड़ी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को सतर्क रहने की ज़रूरत है। मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं कि झगड़ा लगाने वालों के जाल में न फंसे।

क़रीब एक साल पहले नीतीश कुमार अपने तब के गठबंधन सहयोगी आरजेडी पर भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण विपक्ष के निशाने पर थे। तब वे अपने गठबंधन सहयोगी लालू प्रसाद यादव के साथ-साथ उनके बेटे तेजस्वी यादव पर लग रहे आरोपों के कारण आलोचना झेल रहे थे। क़रीब एक साल बाद फिर विपक्ष एक दूसरे तरह के मामले में उन पर हमलावर है। लेकिन एक समानता ये है कि इस बार भी वे अपने सहयोगी दल के नेता के बेटे के कारण ही सियासी ताप झेल रहे हैं।

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