'बहुत से बंद देखे रे भैया, का पता था सब लुट जाएगा'

Webdunia
बुधवार, 4 अप्रैल 2018 (11:11 IST)
- फ़ैसल मोहम्मद अली (ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से)
 
राकेश टमोटिया हर दिन की तरह उस दिन भी रोटी और तली मिर्च का लंच लेकर मज़दूरी की तलाश में गए थे, लेकिन फिर कभी वापस नहीं आए। ग्वालियर शहर के द्वारकाधीश मंदिर के पास जहां शहर के मज़दूर काम की तलाश में रोज़ सुबह इकट्ठा होते हैं, वो वहां हर दिन से ज़्यादा वक़्त तक रुके रहे कि शायद कोई काम मिल जाए। तभी कहीं पास से चली गोली उनके सीने में आ लगी और वो गिर पड़े।
 
'पुलिसवाले अस्पताल नहीं ले गए'
"वो वहीं पड़ा तड़पता रहा, पुलिसवाले उसे अस्पताल तक न ले गए, ये भी न किया कि अपनी गाड़ी से ही उसे भेज दें, आख़िर उसने दम तोड़ दिया", बड़े भाई लाखन सिंह टमोटिया जो ख़ुद उस वक़्त वहां मौजूद नहीं थे दूसरों की कही बातें बयान करते हैं।
 
दवा के एक थोक व्यापारी के यहां पैकिंग का काम करने वाले लाखन को मालिक ने भाई के साथ हुए हादसे की ख़बर मिलने के बावजूद बस थोड़ी देर की मोहलत दी थी, 'इस हिदायत के साथ कि वो जल्द से जल्द वापस आ जाएं।'
 
तो क्या दलित संगठनों के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी उत्पीड़न क़ानून पर आए फ़ैसले के विरोध में दो अप्रैल को बुलाए गए बंद में लाखन और उनका परिवार शामिल नहीं थे? इस सवाल पर उन्होंने कहा, "नहीं। हम काम पर थे और मेरा भाई भी हर दिन की तरह काम की तलाश में गया था।"
 
पीले रंग की साड़ी पहने पत्नी रामवती का चेहरा साफ़ नहीं दिखता, लंबे घूंघट ने चेहरे का बड़ा हिस्सा छुपा रखा है, और शायद बहते आंसुओं को भी जो अभी भी शायद कभी-कभी छलक आते हों।
 
'बंद के दौरान जाने से मना किया था'
लगातार रोने से बैठ गए गले से वो कहती हैं, "वो रोज़ काम पर जाते समय तली मिर्च लेकर जाते थे और उसे पन्नी में लपेटकर पॉकेट में रख लिया करते थे।" "बंद के दिन भी वही किया, सुबह साढ़े आठ बजे घर से निकले, लेकिन फिर वापस न आए।"
 
बैठे गले में भी उनके दर्द को तब मैं पूरी तरह महसूस कर पाया।
 
मां राजाबेटी पास ही पत्थर के फ़र्श पर बैठी हैं। सिसकते हुए कहती हैं, "मना किया था का पतो बंद है, की होवे, न जा रे बेटा। तो बोलने लगा कि शॉर्ट गेट से कट जाऊंगा।"
 
अपने तीनों बच्चों के साथ बैठी रामवती कहती हैं, "बहुत से बंद देखे रे भैया, हमको लगता था कि ई वाला भी ख़त्म हो जाएगा, लेकिन का पता था कि हमरा सब लुट जाएगा इसमें, जबकि हमरा कुछ लेना-देना नहीं था इससे।"
 
'अंतिम संस्कार के लिए दबाव बनाया गया'
तो क्या उन्हें पता नहीं कि दलितों ने बंद किस लिए किया था, "हमको का पता का कारण थो बाबू!"
 
राकेश का अंतिम संस्कार पुलिस और प्रशासन की देख-रेख में दो अप्रैल की देर रात को ही कर दिया गया। हालांकि, लाखन सिंह कहते हैं कि जल्दी से अंतिम संस्कार करने का उन पर दवाब बनाया गया था। वो कह रहे थे कि इससे हिंसा और भड़क सकती है।
 
लेकिन मां का मन इन बातों को कब जाने!
 
राजबेटी फफक उठती हैं, "मिल भी नहीं पाये, जाने ही न दिया पुलिस वालों ने...."

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

प्रियंका गांधी ने वायनाड सीट पर तोड़ा भाई राहुल गांधी का रिकॉर्ड, 4.1 लाख मतों के अंतर से जीत

election results : अब उद्धव ठाकरे की राजनीति का क्या होगा, क्या है बड़ी चुनौती

एकनाथ शिंदे ने CM पद के लिए ठोंका दावा, लाडकी बहीण योजना को बताया जीत का मास्टर स्ट्रोक

Sharad Pawar : महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों से राजनीतिक विरासत के अस्तित्व पर सवाल?

UP : दुनिया के सामने उजागर हुआ BJP का हथकंडा, करारी हार के बाद बोले अखिलेश, चुनाव को बनाया भ्रष्टाचार का पर्याय

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

सस्ता Redmi A4 5G लॉन्च, 2 चिपसेट वाला दुनिया का पहला 5G स्मार्टफोन

Vivo Y19s में ऐसा क्या है खास, जो आपको आएगा पसंद

क्या 9,000 से कम कीमत में आएगा Redmi A4 5G, जानिए कब होगा लॉन्च

तगड़े फीचर्स के साथ आया Infinix का एक और सस्ता स्मार्टफोन

Infinix का सस्ता Flip स्मार्टफोन, जानिए फीचर्स और कीमत

अगला लेख