ईडी का बुलाना और केजरीवाल का नहीं जाना, इसका अंत कहां होगा?

BBC Hindi
सोमवार, 4 मार्च 2024 (09:04 IST)
-दिलनवाज़ पाशा (बीबीसी संवाददाता)
 
दिल्ली में कथित शराब घोटाले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने जांच में शामिल होने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 4 मार्च को फिर से बुलाया है। ये ईडी का केजरीवाल को 8वां समन है। केजरीवाल अभी तक ईडी की जांच में शामिल नहीं हुए हैं। केजरीवाल ने ईडी के समक्ष पेश होने के बजाय लिखित जवाब दिए हैं।
 
केजरीवाल अब तक 7 समन को नज़रअंदाज़ कर चुके हैं। बहुत संभव है कि वो सोमवार को भी ईडी की जांच में शामिल ना हों। प्रीवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के सेक्शन 50 क्लाज़ 3 के तहत प्रवर्तन निदेशालय के पास जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति को समन करने का अधिकार है।
 
इस प्रावधान के तहत 'समन पर बुलाए गए व्यक्ति के लिए स्वयं या अपने एजेंट के ज़रिए' जांच में शामिल होना और संबंधित विषय पर बयान देना और मांगे गए दस्तावेज़ उपलब्ध करवाना अनिवार्य होता है।
 
अरविंद केजरीवाल की दलील
 
अरविंद केजरीवाल को जब 7वीं बार समन किया गया था और 26 फ़रवरी को ईडी के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया था, तब उन्होंने जांच में शामिल होने से इनकार कर दिया था। आम आदमी पार्टी की तरफ़ से कहा गया था कि प्रवर्तन निदेशालय को समन जारी करने के बजाय अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करना चाहिए।
 
अरविंद केजरीवाल ने ईडी की तरफ़ से जारी सभी समन को अवैध क़रार दिया है। केजरीवाल ने ईडी को पत्र लिखकर इन समन को ख़ारिज करने के लिए भी कहा है। 7वें समन के बाद आम आदमी पार्टी ने बयान जारी करके कहा था कि मुख्यमंत्री ईडी के समक्ष पेश नहीं होंगे।
 
दिल्ली की एक अदालत के ईडी के समन की वैधता को लेकर चल रहे मुक़दमे में अब 16 मार्च को सुनवाई करनी है। ईडी ने ही अदालत में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समन को 'जानबूझकर नज़रअंदाज़' करने को लेकर याचिका दायर की है। आम आदमी पार्टी ने कहा था कि ईडी को समन भेजने के बजाय अदालत का फ़ैसला आने का इंतज़ार करना चाहिए।
 
ईडी के समन पर अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि एजेंसी ने अभी तक उन्हें ये जानकारी नहीं दी है कि उन्हें एक अभियुक्त के रूप में बुलाया जा रहा है, चश्मदीद के रुप में बुलाया जा रहा है या फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री या आम आदमी पार्टी के प्रमुख की हैसियत से बुलाया जा रहा है।
 
समन पर हाज़िर ना हों तो क्या हो सकते हैं गिरफ़्तार?
 
ये सवाल उठ रहा है कि अगर केजरीवाल बार-बार समन पर पेश नहीं होते हैं तो क्या होगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही इससे सीधे तौर पर उन्हें गिरफ़्तार ना किया जाए लेकिन ये ज़रूर समझा जा सकता है कि वो जानबूझकर जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसे आधार बनाकर गिरफ़्तारी की संभावना बन सकती है।
 
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े कहते हैं, 'समन की ऐसी कोई तय संख्या नहीं है, जिनके नज़रअंदाज़ करने के बाद गिरफ़्तारी अनिवार्य हो जाती है। ये ईडी पर निर्भर करता है कि वो गिरफ़्तारी करना चाहती है या नहीं। यदि ईडी के पास पर्याप्त कारण हैं तो वो बिना समन किए भी सीधे गिरफ़्तार कर सकती है।'
 
संजय हेगड़े कहते हैं, 'ईडी किसी आम आदमी को पहले समन के बाद या फिर बिना समन किए ही गिरफ़्तार कर लेती है। ये मामला हाई प्रोफ़ाइल है, इसलिए ईडी सावधानी से चल रही है। ईडी की जांच में अगर ईडी को कभी भी लगता है कि गिरफ़्तारी ज़रूरी है तो वो गिरफ़्तार कर लेती है। अगर ऐसी धाराएं लगाई गई हैं, जिनमें 7 साल से कम सज़ा का प्रावधान हो तो पहले समन किया जाता है और ज़रूरत होने पर गिरफ़्तार किया जाता है।'
 
संजय हेगड़े कहते हैं, 'आमतौर पर समन अगर नज़रअंदाज़ किए जाते हैं तो इसका नतीजा गिरफ़्तारी ही होती है। लेकिन यहां शायद ईडी नहीं चाहती होगी कि मामले पर राजनीति हो इसलिए वो गिरफ़्तारी से बच रही होगी।' आमतौर पर समन जांच में शामिल होने या जांच में मदद करने के लिए दिया जाता है।
 
अभियुक्त या चश्मदीद को पूछताछ के लिए समन किया जा सकता है। संजय हेगड़े कहते हैं, 'जांच के दौरान अगर जांचकर्ता को ये लगता है कि समन किया गया व्यक्ति अपराध में शामिल है तो चश्मदीद को भी अभियुक्त में बदला जा सकता है।'
 
क्या है कथित शराब घोटाला?
 
दिल्ली में हुए कथित शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह समेत कई लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। सीबीआई ने 26 फ़रवरी 2023 को मनीष सिसोदिया को दिल्ली की आबकारी नीती में कथित अनियमितताओं की जांच के दौरान गिरफ़्तार किया था।
 
मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में नवंबर 2021 में दिल्ली में नई आबकारी नीति को लाया गया था। हालांकि अगस्त 2022 में दिल्ली सरकार ने इस नई शराब नीति को रद्द कर दिया था। आरोप हैं कि इस नीति को लागू करने में बड़ा घोटाला हुआ है। इस नई नीति के तहत दिल्ली सरकार को दिल्ली में शराब के कारोबार से पूरी तरह बाहर होना था और शराब का कारोबार निजी कंपनियों के हाथ में आना था।
 
जब ये नई नीति लाई गई थी तब सरकार ने दावा किया था कि इसका मक़सद राजस्व बढ़ाना, शराब की कालाबाज़ारी रोकना, बिक्री लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाना और शराब ख़रीदने के अनुभव को बेहतर करना है। इस नई नीति के तहत शराब की होम डिलीवरी करने जैसे नए क़दम भी शामिल थे। यही नहीं शराब विक्रेताओं को शराब के दाम में छूट देने की अनुमति भी दी गई थी।
 
जुलाई 2022 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार ने उपराज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में शराब नीति में कई अनियमितताओं का दावा किया था और आरोप लगाया था कि मनीष सिसोदिया ने विक्रेताओं को लाइसेंस देने के बदले रिश्वत ली है।
 
इस रिपोर्ट के आधार पर उपराज्यपाल ने सीबीआई से मामले की जांच करने का अनुरोध किया था और दिल्ली सरकार को नई शराब नीति को वापस लेना पड़ा था। सीबीआई ने अगस्त 2022 में मनीष सिसोदिया समेत 15 लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था। इसी मामले में प्रवर्तन निदेशालय अलग से जांच कर रहा है। ईडी ने इस जांच के दौरान कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया है।

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