''वो हमारी शादी का तीसरा दिन था, हम घूमने के लिए मनाली गए थे, रात में वो मेरे सामने शराब पीकर आया और कुछ देर बाद मुझे मारने पीटने लगा।''
इतना बोलते-बोलते सपना (बदला हुआ नाम) का गला भर आता है, उनके शब्द टूटने लगते हैं और उनकी सांसों की आवाज़ के ज़रिए उनका दबा हुआ दर्द महसूस होने लगता है। एक बार फिर अपनी आवाज़ को समेटते हुए वो बताती हैं, ''शादी के वक़्त मैं पोस्ट ग्रेजुएशन में थी, मैं पढ़ाई में काफ़ी अच्छी थी लेकिन पापा चाहते थे कि शादी कर लूं। उन्होंने ही मेरे लिए ये रिश्ता ढूंढ़ा था।''
राजस्थान की रहने वाली सपना शादी के पहले से ही अपने ख़र्चे खुद उठा रही थीं, यानी वो दूसरों पर आर्थिक रूप से पूरी तरह निर्भर नहीं थीं। वो पढ़ी-लिखी थीं और बेबाक अंदाज़ में अपनी बात रखती थीं।
उस ख़राब शादी ने बेबाक सपना को अचानक तोड़कर रख दिया। शादी के महीने भर के अंदर सपना पति का घर छोड़ कर मायके लौट आईं। लेकिन जिस समाज में लड़की के ज़हन में यह बात बैठा दी गई हो कि 'शादी के बाद पति का घर की उसका अपना घर है' वहां एक पिता अपनी शादी-शुदा बेटी का यूं मायके लौटना कैसे स्वीकार करते।
मायके वाले भी साथ नहीं
सपना उस वक्त को याद करते हुए कहती हैं, ''एक हादसे में मेरे भाई की मौत हो गई थी, मेरी शादी को महीना भर ही हुआ था और मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद परेशान थी। मेरे पास अपने पिता के घर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। लेकिन मेरे मायके वालों ने भी मुझे बहुत परेशान किया, उन्हें यह गवारा नहीं था कि शादी के बाद मैं वापस मायके लौट आऊं।''
सपना कहती हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता के सामने अपना पूरा हाल बयां किया, फिर भी उनके पिता चाहते थे कि वो वापिस पति के पास चली जाएं। इसके लिए बक़ायदा उनके पिता ने उनके पति को फ़ोन कर घर भी बुला लिया था।
आख़िर घरवाले अपनी ही बेटी का दर्द क्यों नहीं समझ पाते और वापस उसी दलदल में क्यों भेजने को तैयार हो जाते हैं? इस पर सपना कहती हैं, ''दरअसल इसके पीछे हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी कुल मिलाकर पूरा समाज ज़िम्मेदार है। जब वो देखते हैं कि शादीशुदा लड़की वापस लौट आई है तो तमाम तरह की बातें बनाने लगते हैं, इन्हीं बातों का दबाव घरवालों पर पड़ता है और वो चाहते हैं कि चाहे जिस भी हाल में हो लड़की यहां से दूर अपने पति के पास ही रहे।''
ऐसा ही एक वाकया पिछले दिनों दिल्ली में भी हुआ जिसमें एक 39 साल की एयरहोस्टेस अनिशिया बत्रा ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली। अनिशिया के परिवार ने आरोप लगाए हैं कि अनिशिया का पति उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था।
पढ़ी-लिखी और पेशेवर रूप से सफल समझी जाने वाली अनीशिया का यूं अपनी ज़िंदगी समाप्त करने का फ़ैसला अभी सवालों के घेरे में हैं। उनके पति फ़िलहाल पुलिस हिरासत में हैं और इस मामले की जांच की जा रही है। इस घटना को सुनने और पढ़ने के बाद यही सवाल उठा कि आर्थिक रूप से आज़ाद महिलाएं आख़िर ये सब चुपचाप क्यों सहती हैं?
पति ने नहीं दिया साथ तो हुई अलग
उत्तराखंड की रहने वाली दिप्ती (बदला हुआ नाम) का रिश्ता भी शादी के कुछ सालों बाद पटरी से उतर गया। हालांकि उनके साथ पति ने उनके साथ शारीरिक हिंसा तो नहीं की लेकिन उनके ससुर ने उनका यौन शोषण करने की कोशिश ज़रूर की।
दिप्ती की शादी उत्तर प्रदेश में की गई थी और उनके ससुर अपने इलाके की राजनीतिक में अच्छी पैठ रखते थे। दिप्ती बताती हैं शादी के वक़्त वो ग्रेजुएशन के प्रथम वर्ष में थीं। सगाई से शादी के बीच का जो वक़्त होता है इस दौरान उनकी अपनी सास से बहुत अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी।
इसी दौरान उन्हें पता चला कि उनके सास-ससुर की आपस में नहीं बनती और दोनों अलग-अलग रहते हैं।
करीब 15 साल पहले हुई अपनी शादी को याद करते हुए दिप्ती बताती हैं, ''शादी के पहले साल तक सबकुछ ठीक था, एक दिन शराब के नशे में ससुर ने मेरा यौन शोषण करने की कोशिश की। जब मैंने यह बात अपने पति को बताई तो उन्होंने अपने पिता से इस बारे में कोई शिकायत तक नहीं की। ये मेरी उम्मीद के बिलकुल उलट था।''
पति की तरफ से ऐसे रवैये से हैरान दीप्ती टूट चुकी थीं, लेकिन फिर भी वो अपना रिश्ता बरकरार रखना चाहती थीं। कुछ साल बाद एक बार फिर ससुर ने वैसी ही हरक़त दोहराई और इस बार दीप्ती ससुराल छोड़कर अपने मायके लौट आईं।
आखिरकार लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद दिप्ती और उनके पति के बीच तलाक़ हो गया। तलाक़ के एक साल के भीतर ही उनके पति ने दूसरी शादी कर ली जबकि दिप्ती आज भी अकेली हैं।
क्या उन्हें दोबारा शादी करने की इच्छा नहीं हुई, तब भी नहीं जब उनके पति ने दूसरी शादी कर ली?
इसके जवाब में दिप्ती कहती हैं, ''पहला रिश्ता खराब होने की वजह से मेरे भीतर शादी और प्यार जैसी भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची। मैं चाहकर भी अब लोगों पर जल्दी भरोसा नहीं कर पाती। मैंने अपनी शादी बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन इस पूरी प्रक्रिया ने मुझे अंदर से तोड़ दिया।''
शादी तोड़ दें या बरकरार रखें?
महिलाओं के इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमने बीबीसी हिन्दी के फेसबुक पेज पर महिलाओं से जुड़े एक ग्रुप पर सवाल पूछा कि 'क्या रिश्तों में हिंसा के बाद शादी तोड़ देनी चाहिए?'
ज़्यादा महिलाओं ने इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखा कि हिंसक रिश्तों के बाद महिलाओं को उसमें से निकल जाना चाहिए। हालांकि कुछ महिलाओं ने इस बात से सहमति जताई कि रिश्तों को टूटने से बचाने के लिए एक मौक़ा ज़रूर देना चाहिए।
आपसी रिश्तों में अनबन के बढ़ते मामलों के बाद शहरों में मैरिज काउंसलिर का सहारा भी लिया जाने लगा है। दिल्ली में मैरिज काउंसलिर के तौर पर काम करने वालीं और मनोचिकित्सक डॉक्टर निशा खन्ना का कहना है कि वैसे तो अब शादियों में घरेलू हिंसा के मामले बहुत कम आते हैं और जो कुछ मामले होते हैं उनमें दोनों पक्षों की तरफ़ से हिंसा शामिल होती है।
हालांकि निशा इस बात पर सहमत हैं कि महिलाएं अक्सर शादी को बचाने की कोशिश ज़्यादा करती हैं।
इसके पीछे डॉ। निशा चार प्रमुख वजह बताती हैं। वे कहती हैं, ''लड़कियां अधिक भावुक होती हैं, रिश्तों के प्रति उनका लगाव अधिक होता है। दूसरा वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होतीं, तीसरा उन्हें अपने परिवार की तरफ से समर्थन नहीं मिलता और चौथा शादी से अलग होने वाली महिलाओं को समाज को 'हमेशा उपलब्ध' रहने वाली महिला के तौर पर देखता है।''
आर्थिक रूप से आज़ाद महिलाएं भी क्यों घबराती हैं?
कई बार देखा गया है कि आर्थिक रूप से आज़ाद होने के बावजूद भी महिलाएं हिंसक शादियों से अलग होने का फ़ैसला नहीं ले पातीं। आख़िर इसके पीछे क्या वजह है।
इसके जवाब में वकील अनुजा कपूर कहती हैं, ''ज़रूरी नहीं कि महिलाएं आर्थिक रूप से आज़ाद हैं या नहीं, असल में वे भावनात्मक रूप से दूसरे व्यक्ति से जुड़ जाती हैं, वे उस इंसान के परे जाकर कुछ सोच ही नहीं पाती, उन्हें लगता है कि इनके अलावा कोई दूसरा पुरुष उन्हें प्यार नहीं कर पाएगा और इन्हीं सब कारणों से वो सभी दर्द सहते हुए शादी बचाने की कोशिशें करती रहती हैं।''
भारतीय न्याय व्यवस्था में तलाक़ की प्रक्रिया के बारे में अनुजा विस्तार से बताती हैं। उनके अनुसार पहले तो सहमति से तलाक़ लेने के लिए भी कम से कम 6 महीने का वक़्त दिया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। फिर भी अलग तलाक़ का मामला चलता है तो उसमें 4 सा 5 साल आराम से लग जाते हैं।
अनुजा बताती हैं, ''तलाक़ के साथ-साथ और भी बहुत से केस एक साथ चलते हैं जैसे घरेलू हिंसा, संपत्ति से जुड़ा मामला, अगर बच्चे हैं तो उनके अधिकारों का मामला आदि। इन सभी मामलों को पूरा करने में लंबा वक़्त लग जाता है।''
वहीं मैरिज़ काउंसलर डॉ. निशा सलाह देती हैं कि तलाक़ की नौबत सबसे अंत में आनी चाहिए। वे कहती हैं, ''मैं अपने क्लाइंट को मानसिक और आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए कहती हूं। अगर बिना बैकअप के कोई महिला शादी तोड़ देगी तो उसके लिए कई मुश्किलें पैदा हो जाएंगी, इसलिए मैं उन्हें पहले खुद पर काम करने के लिए कहती हूं और तलाक़ की सलाह सबसे अंत में देती हूं।''
उनके मुताबिक, अगर घरेलू हिंसा होती है तो सबसे पहला क़दम पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज करवाना होता है, वहां भी काउंसलर होते हैं जो दोनों पक्षों को सुनते हैं।
दिल्ली से सटे नोएडा में एक महिला थाने की एसएचओ अंजू सिंह से हमने उनके अनुभव जानना चाहा। अंजू ने बताया कि उनके पास रोज़ाना 5-6 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत लेकर पहुंचती हैं। उन महिलाओं को वो सलाह देने का काम भी करती हैं।
घरेलू हिंसा की शिकार इन महिलाओं की परेशानियों के बारे में अंजू ने बीबीसी को बताया, ''सभी महिलाओं की अलग-अलग तरह की समस्याएं होती हैं। किसी की पति से अनबन हो जाती है तो कोई घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन एक बात है कि अधिकतर महिलाएं अपनी शादी को बचाने की ही कोशिश करती हैं, हालांकि जब मामला बहुत बढ़ जाता वो अलग होने का फ़ैसला कर पाती हैं।''
अंजू यह भी मानती हैं महिलाओं का यूं अपनी शादियों को बचाने की कोशिश करना उनकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है। महिलाओं को शुरुआत से ही किसी दूसरे पर निर्भर रहना सिखा दिया जाता है जिस वजह से वह पति से अलग होने का बड़ा क़दम उठाने से घबराती है।