वो अंडे जो करेंगे कैंसर का ख़ात्मा

Webdunia
गुरुवार, 31 जनवरी 2019 (17:23 IST)
- पल्लव घोष
 
ब्रिटेन में वैज्ञानिकों के एक दल ने लंबे अरसे तक शोध करने के बाद ऐसे अंडों का उत्पादन करने में सफ़लता प्राप्त की है जिनमें कैंसर का ख़ात्मा करने वाले प्रोटीन होंगे।
 
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन अंडों से निकलने वाले वाले प्रोटीन से कैंसर के ख़ात्मे के लिए दवाइयां बनाई जा सकती हैं और इस प्रक्रिया के तहत दवाइयां बनाने का ख़र्च प्रयोगशालाओं में बनाई जाने वाली दवाइयों के मुकाबले सौ गुना सस्ता होगा।
 
 
इसके लिए मुर्गियों में जेनेटिक बदलाव करके वह जीन डाले गए हैं जो कि कैंसर रोधी प्रोटीन पैदा करते हैं। शोधार्थियों की टीम मानती है कि कुछ समय में इन अंडों का व्यापक स्तर पर उत्पादन करना संभव होगा।
 
 
कैसे बनेंगी ये दवाइयां?
एडिनबरा में स्थित रोसिन टेक्नोलॉजीज़ नाम की कंपनी से जुड़ीं डॉ. लिसा हेरॉन के मुताबिक़, शोध के दौरान इन मुर्गियों को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि पॉल्ट्री फार्म के मुर्गियों की तुलना में इन मुर्गियों का ख़ास ध्यान रखा गया।
 
 
डॉ. हेरॉन बताती हैं, "कुछ पेशेवरों की टीम इन मुर्गियों की ख़ास देखभाल करती है, इनके खाने-पीने का ध्यान रखा जाता है, और आम मुर्गियों के मुक़ाबले ये काफ़ी आरामदायक ढंग से रह रही हैं। अगर अंडे देने की बात करें तो मुर्गियां सामान्य अंदाज में ही अंडे दे रही हैं।"
 
 
इससे पहले के शोधों में ये बात सामने आई है कि बकरियों, खरगोशों और मुर्गियों में जेनेटिक बदलाव करके उनके दूध एवं अंडों से रोगों की रोकथाम करने वाले प्रोटीन हासिल किए जा सकते हैं। शोधार्थियों के मुताबिक़, ये नया तरीका काफ़ी प्रभावशाली और किफ़ायती है, और पुराने तरीकों की अपेक्षा इससे कहीं ज़्यादा मात्रा में प्रोटीन का उत्पादन किया जा सकता है।
 
 
डॉ. हेरॉन कहती हैं, "मुर्गियों की मदद से प्रोटीन का उत्पादन फैक्ट्रियों में होने वाले उत्पादन की अपेक्षा दस गुना से लेकर सौ गुना सस्ता है। ऐसे में उम्मीद है कि दवाइयों के उत्पादन में होने वाले कुल ख़र्च से कम से कम दस गुना कम ख़र्च पर इन अंडों का उत्पादन कर सकते हैं।"
 
 
क्यों सस्ता है ये तरीका?
इस प्रक्रिया में सबसे ज़्यादा बचत आधारभूत ढांचे से जुड़ी है। लैब में इन दवाइयों को बनाने के लिए जीवाणुरहित प्रयोगशालाओं का निर्माण करना होता है। वहीं, इन दवाइयों वाले अंडों के लिए सामान्य मुर्गियों के बाड़े की ज़रूरत होती है।
 
 
कई बीमारियों की वजह ये होती है कि बीमार व्यक्ति का शरीर प्राकृतिक रूप से कोई एक कैमिकल या प्रोटीन का उत्पादन नहीं कर पाता है। ऐसे में शरीर में एक निश्चित प्रोटीन की आपूर्ति करने वाली दवाओं से इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है।
 
 
फार्मास्युटिकल कंपनियां ऐसी दवाओं को प्रयोगशालाओं में बनाती हैं जो कि एक बेहद ख़र्चीली प्रक्रिया है। डॉ. हेरॉन और उनकी टीम ने मुर्गियों के अंडों के सफेद हिस्से को बनाने वाले डीएनए के हिस्से में उस इंसानी जीन को डाला जिससे ये प्रोटीन पैदा होता है। डॉ. हेरॉन की टीम ने जब इन मुर्गियों से हुए अंडों को तोड़कर सफे़द हिस्से की जांच की तो पता चला कि उनमें काफ़ी ज़्यादा मात्रा में कैंसर रोधी प्रोटीन मौजूद थे।
 
 
कौन से हैं ये प्रोटीन?
इस टीम ने दो प्रोटीनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए ज़रूरी होते हैं। इनमें से पहला प्रोटीन IFNalpha2a है जो कि संक्रमण और कैंसर के खिलाफ़ काफ़ी प्रभावी है।
 
 
वहीं, दूसरा प्रोटीन macrophage-CSF है जो कि क्षतिग्रस्त उत्तकों (टिश्यू) को अपने आप ठीक करने के विकसित किया जा रहा है। ऐसे में तीन अंडों से एक बार की खुराक पैदा की जा सकती है और मुर्गियां एक साल में तीन सौ अंडे दे सकती हैं।
 
 
वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर पर्याप्त संख्या में मुर्गियां पैदा की जा सकें तो इन दवाइयों का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से दवाइयों के उत्पादन और उनके नियामक संस्थाओं की सहमति मिलने में दस से बीस साल का समय लगेगा।
 
 
जानवरों के लिए भी दवाइयां
वैज्ञानिक इस शोध के बाद उम्मीद करते हैं कि मुर्गियों की मदद से जानवरों के लिए भी दवाइयां बनाई जा सकती हैं। इस तरह से उन दवाओं का उत्पादन किया जाएगा जो कि खेतों में काम करने वाले जानवरों के लिए एंटी-बायोटिक दवाइयों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा सकेंगी।
 
 
डॉ. हेरॉन के मुताबिक़, इससे उन कीड़ों और कीटाणुओं के पैदा होने का जोख़िम भी कम होगा जो कि समय के साथ एंटी-बायोटिक का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं। इसके साथ ही macrophage-CSF की मदद से पालतू जानवरों का इलाज़ करने में भी मदद मिलेगी।
 
 
वह बताती हैं, "मान लीजिए, हम इस तरह से ऐसे पालतू जानवरों की लीवर और किडनियों के अपने आप विकास करने में सक्षम बना सकते हैं जिनके इन अंगों का नुकसान हुआ हो। इस समय ये काम करने वाली दवाइयां बेहद महंगी हैं। हमें उम्मीद है कि हम इस दिशा में भी काम करने में सक्षम होंगे।"
 
 
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के रॉसलिन इंस्टीट्यूट से जुड़ीं प्रोफेसर हेलन सांग कहती हैं, "हम इस समय लोगों के लिए दवाएं नहीं बना रहे हैं। लेकिन ये अध्ययन बताता है कि मुर्गियां बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नई दवाइयों के विकास के लिए प्रोटीन के उत्पादन के लिए व्यापारिक रूप से उपयुक्त हैं।"
 
 
फ़िलहाल, इन अंडों का शोध के लिए उत्पादन किया जा रहा है और बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं।
 

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