राजीव गांधी से पीएम मोदी तक: वो 4 मौके, जब मालदीव के लिए भारत बना संकटमोचक

BBC Hindi
बुधवार, 10 जनवरी 2024 (07:55 IST)
अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे की तस्वीरों पर कुछ दिन पहले आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं। ये काम एक ऐसे पड़ोसी देश की मंत्री और नेताओं की तरफ से किया गया, जिसका साथ भारत ने कई बार मुश्किल वक्त में दिया है।
 
शायद यही वजह थी कि कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर बॉयकॉट मालदीव और एक्सपलोर लक्षद्वीप ट्रेंड करने लगा। न सिर्फ आम लोग बल्कि देश की बड़ी हस्तियों ने भी पीएम मोदी का साथ देते हुए मालदीव को घेरना शुरू कर दिया।
 
आनन-फानन में मालदीव की सरकार ने इन टिप्पणियों से किनारा करते हुए अपनी मंत्री और नेताओं को पद से निलंबित कर दिया।
 
अपने चुनाव प्रचार में 'इंडिया आउट' का नारा देने वाले मुइज़्ज़ू के नवंबर, 2023 में राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और मालदीव के संबंधों पर सवाल उठे हैं, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर दोनों देश के बीच दोस्ताना संबंध रहे हैं।
 
आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद मालदीव की पूर्व रक्षा मंत्री मारिया अहमद दीदी का दिया ये बयान इसकी तस्दीक करता है, जिसमें वे कहती हैं कि भारत हमारे लिए 911 कॉल की तरह है और जब भी हमें जरूरत होती है, हम भारत से मदद मांगते हैं।
 
इस कहानी में हम उन चार घटनाओं का जिक्र करने जा रहे हैं, जब संकट में फँसे मालदीव ने बढ़कर मदद मांगी और भारत ने आगे बढ़कर उसकी मदद की।
 
1- 'ऑपरेशन कैक्टस'
1988 की एक घटना दोनों देशों के संबंधों में मील का एक पत्थर मानी जाती है। उस वक्त मालदीव में एक विद्रोह हुआ था, जिसे भारत की फ़ौज की मदद से नाकाम किया गया था। उस अभियान का नाम था - 'ऑपरेशन कैक्टस'।
 
3 नवंबर, 1988 को मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम भारत यात्रा पर आने वाले थे। उनको लाने के लिए एक भारतीय विमान दिल्ली से माले के लिए उड़ान भर चुका था। अभी वो आधे रास्ते में ही था कि भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अचानक एक चुनाव के सिलसिले में दिल्ली से बाहर जाना पड़ गया। राजीव गांधी ने ग़यूम से बात कर ये तय किया कि वो फिर कभी भारत आएंगे।
 
लेकिन ग़यूम के ख़िलाफ़ विद्रोह की योजना बनाने वाले मालदीव के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफ़ी और उनके साथी सिक्का अहमद इस्माइल मानिक ने तय किया कि बग़ावत को स्थगित नहीं किया जाएगा।
 
उन्होंने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन 'प्लोट' (पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम) के भाड़े के लड़ाकुओं को पर्यटकों के भेष में स्पीड बोट्स के ज़रिए पहले ही माले पहुंचा दिया था।
 
देखते ही देखते राजधानी माले की सड़कों पर विद्रोह शुरू हो गया और सड़कों पर भाड़े के लड़ाकू गोलियां चलाते हुए घूमने लगे। इस मुश्किल वक्त में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम, एक सेफ हाउस में जा छिपे।
 
राष्ट्रपति गयूम ने उन्हें और उनकी सरकार बचाने के लिए भारत से मदद मांगी। अब तक राजधानी माले के हुलहुले हवाई अड्डे और टेलीफोन एक्सचेंज पर सैकड़ों विद्रोहियों कब्जा कर चुके थे।
 
ऐसी स्थिति में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव में भारतीय सेना भेजने का फैसला किया और कुछ ही देर में 6 पैरा के 150 कमांडो से भरे विमान ने आगरा के खेरिया हवाई अड्डे से मालदीव के लिए उड़ान भर दी।
 
थोड़ी देर में दूसरा विमान उतरा मालदीव पहुंचा और उसने आनन फानन में एटीसी, जेटी और हवाई पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर नियंत्रण कर लिया।
 
इसके बाद भारतीय सैनिकों ने राष्ट्रपति के सेफ हाउस को सुरक्षित किया। कुछ ही घंटों में भारतीय सैनिकों ने मालदीव की सरकार गिराने की कोशिश को नाकाम कर दिया।
 
2- तूफानी लहरों के बीच 'ऑपरेशन सी वेव्स'
26 दिसंबर, साल 2004 का आखिरी रविवार। समाचार चैनलों पर एक छोटी सी खबर दिखाई दी कि चेन्नई में भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं, लेकिन देखते ही देखते यह एक ऐसी त्रासदी में बदल गया, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
 
दरअसल उस दिन समुद्र के अंदर भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता शुरू में 6.8 नापी गई लेकिन बाद में इसकी तीव्रता का अनुमान 9।3 तक लगाया गया।
 
इस भूकंप ने करीब 55 फीट ऊंची लहरों को पैदा किया, जिसने इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड, तंजानिया और मालदीव जैसे देशों के तटों को तबाह कर दिया।
 
इस भूकंप के बाद आई सुनामी में जिन देशों में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं, उनमें मालदीव भी एक था और इस मुश्किल समय में भारत मदद के लिए आगे आया और उसने 'ऑपरेशन सी वेव्स' चलाया।
 
विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत का तटरक्षक डोर्नियर विमान और वायु सेना के दो एवरोस विमान राहत सामग्री लेकर 24 घंटे के अंदर यानी 27 दिसंबर को मालदीव पहुंचे। राहत अभियान जारी रहे उसके लिए ये विमान मालदीव में ही रुके रहे।
 
अगले दिन यानी 28 दिसंबर को 20 बिस्तरों वाले अस्पताल की सुविधाओं के साथ आईएनएस मैसूर और दो हेलीकॉप्टर मालदीव पहुंचे।
 
मंत्रालय के मुताबिक इस राहत अभियान को अगले दिन आईएनएस उदयगिरि और आईएनएस आदित्य का साथ मिला और इन जहाजों ने मालदीव के सबसे अधिक प्रभावित इलाके दक्षिण एटोल में काम किया।
 
इन जहाजों की मदद से खाने-पीने से लेकर मेडिकल का सामान पहुंचाया गया और हेलीकॉप्टरों की मदद से लोगों को रेस्क्यू किया गया।
 
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, इस राहत अभियान में करीब 36।39 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसके बाद जब साल 2005 में मालदीव के राष्ट्रपति गयूम ने भारत से कहा कि सुनामी के बाद व्यवस्था को ठीक करने में उन्हें पैसों की दिक्कत आ रही है तो भारत ने मालदीव को 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी।
 
इसके अलावा साल 2007 में एक बार फिर भारत ने मालदीव को 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की।
 
3- 'ऑपरेशन नीर' ने कैसे बुझाई मालदीव की प्यास
4 दिसंबर 2014 को मालदीव की राजधानी माले में सबसे बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में आग लग गई थी, जिसके बाद माले के करीब एक लाख लोगों के सामने पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया था।
 
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक मालदीव के पास अपनी स्थाई नदियां नहीं हैं, जहां से वह पानी ले पाए। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स की मदद से ही वह पानी को पीने योग्य बनाता है और अपने नागरिकों तक पहुंचाता है। प्लांट के फिर से चालू होने तक पूरे शहर को हर रोज 100 टन पानी की जरूरत थी।
 
इस मुश्किल वक्त में मालदीव की विदेश मंत्री दुन्या मौमून ने तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को फोन किया और मदद मांगी।
 
मालदीव के मदद के लिए भारत ने ‘ऑपरेशन नीर’ चलाया। भारतीय वायुसेना ने तीन सी-17 और तीन आई एल-76 विमानों के जरिए पैक किया हुआ पानी दिल्ली से अराक्कोनम और फिर वहां से माले रवाना किया।
 
संकट के बाद शुरुआती बारह घंटे में भारत के विमान पानी लेकर मालदीव पहुंच गए थे। इस दौरान वायु सेना ने 374 टन पानी माले पहुंचाया।
 
इसके बाद भारतीय जहाज आईएनएस दीपक और आईएनएस शुकन्या की मदद से करीब 2 हजार टन पानी मालदीव पहुंचाया गया।
 
इतना ही नहीं भारत ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को ठीक करने के लिए अपने जहाज से स्पेयर पार्ट्स भी भेजे।
 
4- कोरोना में कैसे काम आया भारत
साल 2020, जब पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में थी, उस वक्त भारत ने पड़ोसी प्रथम नीति के तहत बढ़-चढ़कर मालदीव की मदद की।
 
मालदीव में भारतीय हाई कमीशन के मुताबिक भारत सरकार ने कोविड-19 की स्थिति से निपटने के लिए एक बड़ी मेडिकल टीम भेजी, जिसमें पल्मोनोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, चिकित्सक और लैब-तकनीशियन शामिल थे।
 
16 जनवरी, 2021 को पीएम मोदी ने देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के अगले 96 घंटों के अंदर भारत ने सबसे पहले मालदीव में वैक्सीन पहुंचाने का काम किया था।
 
मालदीव वो पहला देश था, जहां भारत ने 20 जनवरी, 2021 को एक लाख कोविड वैक्सीन की खुराक गिफ्ट भेजीं। इन वैक्सीन की मदद से मालदीव की सरकार ने दुनिया के सबसे तेज टीकाकरण अभियानों में से एक की शुरुआत की और करीब पचास प्रतिशत आबादी को वैक्सीन लगाई।
 
इसके बाद 20 फरवरी 2021 को विदेश मंत्री डॉ। जयशंकर जब मालदीव गए तो 1 लाख भारत निर्मित कोविड वैक्सीन की दूसरी खेप गिफ्ट के तौर पर दी गई।
 
कोविड वैक्सीन की जब दूसरी डोज लगाने का समय आया, उस वक्त भी भारत ने मालदीव का साथ दिया।
 
6 मार्च को 12 हजार और 29 मार्च 2021 को भारत ने 1 लाख कोविड वैक्सीन मालदीव भेजीं। विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत ने कुल 3 लाख 12 हजार वैक्सीन डोज मालदीव भेजी हैं, जिसमें से 2 लाख वैक्सीन खुराक गिफ्ट की गईं।
 
इस दौरान भारत ने मालदीव को 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी करीब 2 हजार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की, जो किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा थी। इस बात का जिक्र मालदीव के तत्कालीन विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी किया था। उन्होंने कहा था कि इस मुश्किल वक्त में सबसे अधिक आर्थिक मदद हमारी भारत ने की है।

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