'गजेंद्र ना गरीब थे ना कर्जदार'

Webdunia
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015 (12:23 IST)
- आभा शर्मा (दौसा से)
 
भरा-पूरा परिवार, सुखी गृहस्थी, संयुक्त परिवार की 35 बीघा से ज्यादा पुश्तैनी कृषि भूमि में बना हुआ फॉर्म हाउस। नांगल झामरवाडा, राजस्थान के गजेंद्र सिंह की छवि उन गरीब किसानों से कहीं मेल नहीं खाती जो कर्ज और बेहद गरीबी से मजबूर हो खुदकुशी करते हैं।
पर हकीकत तो यही है कि हजारों लोगों की भीड़ के सामने दिल्ली में उनकी जान गई। और यह खुशहाल दिखने वाला परिवार गम में डूब गया। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला गजेंद्र सिंह का बड़ा बेटा धीरेन्द्र परीक्षा देने नहीं जा सका।
 
मां-बाप गमजदा हैं और पत्नी सकते में। बेटी मेघा दुःख और रोष को दबाए गुमसुम है और दूसरी कक्षा में पड़ने वाले राघवेन्द्र को अभी तक यह समझ नहीं आया है कि उन दोनों भाइयों का सिर क्यों मूंड दिया गया है।
 
अंतिम संस्कार : दौसा जिले के इस गांव ने गाड़ियों की इतनी रेलमपेल, मीडिया का जमावड़ा और अधिकारियों की मौजूदगी शायद पहले कभी नहीं देखी जितनी गुरुवार को दिखी जब 42 वर्षीय गजेंद्र सिंह का अंतिम संस्कार किया गया।
गजेंद्र के चचिया ससुर भागीरथ सिंह चौहान ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी और प्रशासन की विशेष कमी रही कि 78 मिनट तक भाषण चलते रहे पर उसे आत्महत्या करने से नहीं रोका गया।
कथित सुसाइड नोट को भी सिरे से खारिज करते हुए कहा उन्होंने कहा, 'यह आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का 'मनगढ़ंत' काम है और परिवार में कोई वाद-विवाद नहीं है।'
 
मीडिया से शिकायत : गजेंद्र की व्यथित बुआ को भी मीडिया से शिकायत थी कि 'सब फोटो लेते रहे पर क्या कोई उसे बचा नहीं सकता था।' दाह संस्कार के पहले भी मीडिया की उमड़ी भीड़ और अफरा तफरी से गमजदा माहौल कुछ तनावग्रस्त हो गया।
 
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट, राज्य सरकार के सामाजिक अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी, राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष लोकेन्द्र सिंह कालवी आदि भी संवेदना के लिए नांगल झामरवाडा पहुंचे।
 
स्थानीय निवासी सुरजन सिंह ने बताया कि गजेंद्र अपने गांव में काफी लोकप्रिय थे और गांव की समस्याओं को हल करवाने के लिए तहसीलदार से लेकर कलेक्टर तक बात पहुंचाने को तैयार रहते थे।
गांव के एक विद्यार्थी लोकेन्द्र ने बताया, 'एक बार गांव में ट्रांसफार्मर की समस्या को लेकर गांव वाले परेशान थे। तो गजेंद्र साथ हो लिए और प्रशासन के सामने अड़ गए, अधिकारियों को खरी-खोटी भी सुनाई और काम पूरा होने पर ही हिले।'
नारे लिखने का शगल : गजेंद्र को इन वजहों से बड़ों की डांट भी खानी पड़ती थी। गजेंद्र के छोटे भाई के मित्र रविकांत बताते हैं, 'वे मनमौजी थे और उनके पिता अनुशासनप्रिय। गजेंद्र सामाजिक कार्यकर्ता की तरह खुद को देखते थे। नारे लिखना उनका शगल था। जैसे घर के अहाते में एक दरवाजे पर लिखा था, 'गुनाह करने से पहले अंजाम सोच ले।'
 
एक अन्य ग्रामीण ने गजेंद्र के बारे में कहा, 'वे आम आदमी की आवाज बुलंद करना चाहते थे। उनका किसी एक पार्टी से विशेष संबंध नहीं था।' वैसे कुछ वर्ष पहले गजेंद्र ने समाजवादी पार्टी से विधान सभा टिकट की मांग की थी और साइकिल पर घूम-घूमकर पार्टी का प्रचार भी किया था।
 
उनके चाचा गोपाल सिंह जो नांगल झामरवाडा के सरपंच भी हैं ने बीबीसी को बताया, 'उनके क्षेत्र में बेमौसम बारिश और ओले से 60 प्रतिशत से ज्यादा खराबी हुई है और गिरदावरी सही नहीं हुई है।'
 
फसल की खराबी : गोपाल सिंह ने कहा, 'गजेंद्र कुछ अरसे से इसको लेकर काफी व्यथित था। कहता था कि बर्बाद हो गए। हालांकि मैं बहुत हिम्मत बंधाता था कि हम फिर से मेहनत करेंगे।' हालांकि गांव के पटवारी दिनेश सैनी ने कहा, 'इस इलाके में 24 प्रतिशत ही खराबी की रिपोर्ट है। उन्हीं किसानों को मुआवजा मिल सकता है जिनके खेत में 33 प्रतिशत तक नुकसान हुआ हो।'
 
साफा बांधने की कला के बल पर गजेंद्र का बड़े राजनेताओं से लेकर संपन्न घरानों से संपर्क था। बिल क्लिंटन, अटल बिहारी वाजपेई और भैरोंसिंह शेखावत सहित कई हस्तियों के लिए उन्होंने साफा बांधा था। यह भी एक इत्तेफाक ही था कि बुधवार की किसान रैली में अमूमन मफलर और टोपी पहनने वाले अरविन्द केजरीवाल ने भी साफा पहना था।
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