'फौरन निकल लो शहजादे, नहीं तो..'

Webdunia
बुधवार, 29 जुलाई 2015 (11:55 IST)
- वुसतुल्लाह खान (पाकिस्तान)
 
तीन महीने पहले मेरे घर की तरफ आने वाली मेन रोड पर 'गरीब होटल' के नाम से एक रेस्तरां खुला। रेस्तरां तो आस-पास भी बहुत से थे मगर गरीब होटल ने खुलते ही रफ्तार पकड़ ली। कारण बस इतना था कि उस पर एक बैनर टंगा हुआ था, 'आइए खाना खाइए, जितने पैसे दे सकते हैं दे दें, ना भी दे सकें तब भी खाना खाइए'।
 
जाहिर है कि गरीब होटल को तो हिट होना ही था। मैं सुबह-शाम आते-जाते देखता की एक जैसी भीड़ है, लेकिन आज सुबह जब मैं गुजरा तो देखा कि बैनर की जगह एक नोटिस लगा हुआ है, 'गरीब होटल बंद हो गया है आपका शुक्रिया, मोहम्मद इस्माइल।'

गरीब होटल की बगल में कायम अब्दुल्लाह पानवाले से मैंने पूछा, 'सब खैरियत तो है। यह होटल क्यों बंद है?' अब्दुल्लाह ने मुझे यह कहानी सुनाई:....
 
बिजनेस या ख़ैरात : इस्माइल अमेरिका वापस चला गया है। पागल था, अच्छी-भली नौकरी छोड़कर आया। कहता था कि मुझे पैसों की कोई कमी नहीं है। बस यहीं रहकर सस्ता होटल चलाना चाहता हूं ताकि लोगों की दुआएं ले सकूं।
 
'जैसे असलम टुंडा हमसे हफ्ता लेता है वैसे उसने इस्माइल से भी यह कहते हुए भत्ता लेना शुरू कर दिया कि तुम गरीबों को मुफ्त में खाना दे सकते हो तो हमें भी गरीब समझकर थोड़े से पैसे दे दो।'
 
पुलिस वालों ने आना-जाना शुरू कर दिया। गाड़ी भरकर हर शाम सिपाही आते और खुब खाना खाकर सौ-पचास डब्बे में डाल जाते। इस्माइल को मैंने उसी वक्त कहा कि यह सब बर्दाश्त करना पड़ेगा। लेकिन परसों यह हुआ भाई साहब कि सादा कपड़ों में इंटेलिजेंस वाले आ गए और उन्होंने इस्माइल के खाते चेक करने शुरू कर दिए।
 
उन लोगों ने उससे पूछा कि तुम अमेरिका से क्या ये होटल खोलने आए थे? और तुम सुबह से शाम तक जो सैकड़ों लोगों को खाना खिला रहे हो तो यह बिजनेस है, परोपकार, या फिर कोई दान-पान? अगर बिजनेस है तो घाटा कैसे बर्दाश्त कर रहे हो और अगर खैरात है तो तुमने इस काम का लाइसेंस लिया क्या?
 
'निकल लो शहजादे' : अच्छा यह बताओ कि तुम्हारे पीछे कौन है और तुम्हें पैसा कौन दे रहा है? सादा कपड़े वालों के जाने के बाद इस्माइल ने मुझसे पूछा, 'अब्दुल्लाह भाई मैं तो कुछ और सोच कर आया था, लेकिन लगता है कि मुसीबत में फंस गया हूं, क्या करूं?'
 
मैंने कहा कि फौरन निकल लो शहजादे, वर्ना और फंसते चले जाओगे। यह जगह तुम जैसों के लिए नहीं। तुम अमेरिका में ही रहकर वहां के गरीबों की मदद क्यों नहीं करते? हम लोग तो तुमसे पहले भी जी रहे थे, तुम्हारे बाद भी ऐसे ही जीते रहेंगे। तो यह है कहानी वुसत भाई।
 
मैंने इधर-उधर देखा। गरीब होटल के आजू-बाजू के दो रेस्तरां के बाहर फुटपाथ पर खाने के इंतजार में बैठे लोगों की लाइन फिर से लंबी होने लगी थी ताकि कोई मालदार ग्राहक तरस खाकर इनमें से तीन-चार को भी खाना खिला दे।
 
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