हौज काजी मंदिर विवाद से पुरानी दिल्ली में क्या बदला? फ़ैक्ट चेक

Webdunia
शुक्रवार, 12 जुलाई 2019 (12:58 IST)
- प्रशांत चाहल और प्रीतम रॉय, फ़ैक्ट चेक टीम, पुरानी दिल्ली से
 
चावड़ी बाज़ार चौराहे से हौज़ क़ाज़ी होते हुए लाल कुआँ बाज़ार तक पहुँचने वाली मेन सड़क, कंधे से कंधा छूकर गुज़रने वाली भीड़, तरह-तरह की आवाज़ें और बाज़ार की अपनी मुख़्तलिफ़ गंध। यहाँ रहने वाले कहते हैं- ये इस बाज़ार का आम नज़ारा है। लेकिन, एक सप्ताह पहले पुरानी दिल्ली के इस बाज़ार में हालात ऐसे नहीं थे।
 
 
यहां कर्फ़्यू की स्थिति थी। पैरा-मिलिट्री की कई कंपनियाँ और 20 से ज़्यादा थानों की पुलिस इस इलाक़े में तैनात करनी पड़ी थी। कारण था एक दुपहिया वाहन की पार्किंग को लेकर कुछ लड़कों में हुआ मामूली झगड़ा जिसे धार्मिक रंग मिला तो इलाक़े में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया। इसी दौरान एक मंदिर पर पथराव की घटना सामने आई जिसपर काफ़ी राजनीति भी हुई।
 
बीबीसी ने मंदिर में पथराव की इस घटना के बाद ग्राउंड पर जाकर एक रिपोर्ट की थी और पाया था कि कैसे एक घटना ने इस इलाक़े में आदमी से आदमी के फ़ासले को बढ़ा दिया है।
 
इस मंगलवार को खंडित मंदिर की मरम्मत और मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा का काम पूरा कर लिया गया था, लेकिन सोशल मीडिया पर इस इलाक़े से जुड़ी तमाम तरह की अफ़वाहें सामने आती रहीं। इसलिए हमने एक बार फिर पुरानी दिल्ली का दौरा किया और पाया कि स्थानीय लोगों ने आपसी समझदारी से स्थिति को संभाल लिया है।
 
मंदिर में नई सजावट : शाम के क़रीब 5 बजे, मंदिर की आरती से पहले जब नई मूर्तियों से पर्दे हटाए गए तो स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि मंदिर के सभी दरबार नये सिरे से सजाए गए हैं।
 
क़रीब 15 फ़ीट चौड़ी 'गली दुर्गा मंदिर' में घुसते ही दाहिनी दीवार पर दुर्गा, शिव और राम दरबार समेत अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की झांकियां लगी हुई हैं और यही गली में रहने वाले लोगों के आने-जाने का आम रास्ता भी है, जहां पैरा-मिलिट्री के कई जवान अब भी तैनात हैं। सैनिकों की तैनाती को लेकर चर्चा है कि 15 अगस्त तक उन्हें इसी गली के आसपास रखा जाएगा।
'गली दुर्गा मंदिर' मूल रूप से हिन्दू हलवाइयों का मोहल्ला है जिसमें बड़े ठेकेदारों (कैटरर्स) से लेकर दिहाड़ी मजदूर तक रहते हैं। तारा चन्द सक्सेना (बिट्टू) इस गली के प्रधान हैं और दुर्गा मंदिर कमेटी के अध्यक्ष भी। उन्होंने ही मंदिर कमेटी की तरफ से मंगलवार को पुरानी दिल्ली के इलाक़े में 'शोभा यात्रा' आयोजित की थी और लोगों के लिए भंडारा लगाया था।
 
तारा चन्द ने बताया कि "सब कुछ शांति से हुआ, इस बात से गली के लोग ख़ुश हैं। मंदिर ठीक होने से हम संतुष्ट हैं। हमें अच्छा लगा कि अमन कमेटी के लोगों ने हमारे सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। हमारे यहां जो लोग छोटा रोज़गार करते हैं, वो लोग बेसब्री से चीज़ों के सामान्य होने का इंतज़ार कर रहे थे।"
 
उन्होंने बताया कि कई तरह की अफ़वाहों ने इस मामले को बाहर के लोगों के लिए बड़ा बना दिया था। जैसे कुछ मीडिया के लोगों ने यह ग़लत सूचना फैलाई कि मंदिर पर पथराव के बाद हिन्दू समुदाय के एक 17 वर्षीय लड़के को भीड़ हमारी गली से उठाकर ले गई थी। जबकि उस लड़के के गायब होने और वापस घर लौट आने से मंदिर की घटना का कोई संबंध नहीं था।"
 
भंडारा संभालते मुसलमान : 'गली दुर्गा मंदिर' के सामने 'गली चाबुक सवार' स्थित है जो एक मुस्लिम बहुल मोहल्ला है। इसी मोहल्ले में रहने वाले कई लोगों की तस्वीरें शोभा-यात्रा के बाद से सोशल मीडिया पर 'एक ज़िंदा मिसाल' बताकर शेयर की जा रही हैं।
 
इनमें से एक हैं 52 वर्षीय अब्दुल बाक़ी जो इस मुस्लिम मोहल्ले के सदर भी हैं। वो 'पानवालों' के नाम से जाने जाते हैं और शोभा यात्रा के दौरान उन्होंने दुर्गा मंदिर के सामने पानी का काउंटर लगाया हुआ था। सोशल मीडिया पर उनकी जो तस्वीर शेयर की जा रही है, उसमें वो श्रद्धालुओं को खाना परोसते हुए दिखते हैं।
 
अब्दुल बाक़ी ने बताया, शोभा यात्रा में शामिल होने के लिए हमारे हिन्दू भाई हमें लेने आए थे। हम जानते हैं कि इस घटना से उनके दिल टूटे थे। इसलिए ऐसे मौक़े पर सेवा करने से हम ख़ुद को नहीं रोक पाए। ये गुरुद्वारे में श्रद्धालुओं की सेवा करने जैसा था।"
 
वायरल तस्वीरों के बारे में अब्दुल बाक़ी और उनके सहयोगियों ने बताया, "जिस समय दुर्गा मंदिर से शोभा-यात्रा शुरु हुई, उस समय हिन्दू मोहल्ले के ज़्यादातर लोग काफ़िले के साथ आगे बढ़ गये थे। तब हमने बैरों के साथ मिलकर भंडारे का काम संभाला।" लोगों ने कहा कि पुरानी दिल्ली में ईद के दौरान हिन्दू भी इसी तरह छबील (पानी के काउंटर) लगाते आए हैं। ये आपसदारी का लिहाज़ है।
फिर कैसे बदल गई थी ये तस्वीर... : गंगा-जमुनी तहज़ीब की 'लिहाज़ और आपसदारी' वाली यह तस्वीर जब इतनी ख़ूबसूरत लगती है तो 30 जून की रात कहां चूक हो गई? यह सवाल हमने दोनों मोहल्लों में पूछा। डॉक्टर इशरत कफ़ील ने कहा कि कुछ दोष तो सोशल मीडिया और अफ़वाहों का है, लेकिन ज़्यादा दोष हमारी उम्र के लोगों का है।
 
उन्होंने कहा कि जिस दिन ये घटना हुई पुरानी दिल्ली के लोगों को सोशल मीडिया के ज़रिये यही पता लगा था कि तबरेज़ अंसारी की तरह पुरानी दिल्ली में भी मॉब लिंचिंग की घटना हुई है। शुरुआती घंटों में किसी को नहीं मालूम था कि झगड़ा पार्किंग को लेकर शुरू हुआ।
 
51 वर्षीय डॉक्टर कफ़ील पेशे से यूनानी डॉक्टर हैं। 20 साल से ज़्यादा समय से पुरानी दिल्ली के इस इलाक़े में प्रैक्टिस कर रहे हैं और सम्मान से बताते हैं कि उनके 75 फ़ीसद से ज़्यादा मरीज़ हिन्दू हैं।
 
उन्होंने कहा, "ऐसी घटनाएं जहालत का नतीजा हैं। वीडियो में जो लड़के मंदिर पर पथराव करते दिखाई देते हैं वो अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए होंगे और अल्लाह का नाम लेकर किसी की इबातगाह पर पत्थर फेंक रहे हैं। कुरान में ऐसा करना पाप है। पर क्या उनके मां-पिता ने कभी उन्हें बताया कि यहां हिन्दुओं के साथ उनके क्या रिश्ते रहे हैं, वो कैसे साथ पले-बढ़े हैं। उन्हें बताना चाहिए था कि यहां की तहज़ीब क्या है।"
 
वहीं हिन्दू मोहल्ले के एक बुज़ुर्ग ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर कहा कि "बीते 25 सालों में यहां बाहर से आए लोगों की संख्या और मूल निवासियों की संख्या में बड़ा बदलाव हुआ है। यहां के लोग बाहर जा रहे हैं और किराए पर रहने के लिए बाहर के लोग यहां आ रहे हैं। तो ये मोहल्ले अब वो नहीं रह गए जो 60-80 के दशक में हुआ करते थे। मोहल्ले टूट रहे हैं, तहज़ीब खो रही है। बाहर से आए जिन लोगों के बच्चे आज यहां जवान हुए हैं, वो नज़र की शर्म करने के अलावा सब कुछ करते हैं।"
 
लाल कुआं बाज़ार के व्यापारी कहते हैं कि बीते नौ दिन में तीन दिन बाज़ार पूरी तरह बंद रहा। बाकी दिनों में कोई काम नहीं हुआ। कई रातें जागकर गुज़ारनी पड़ीं क्योंकि हमें चिंता थी कि कहीं मामला कोई गंभीर मोड़ न ले ले। लेकिन पुलिस के सहयोग से परिस्थितियां काबू में रहीं।
 
इस इलाक़े में जिन सीनियर लोगों से हमारी बात हुई, उन्होंने पुराने जख़्मों को याद करके बताया कि "1986-87 में और 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी इन पुराने बाज़ारों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ था और कुछ जगह टकराव भी हुआ, लेकिन हमारे यहां किसी भीड़ ने मंदिर या मस्जिद के बाहर लगे बल्ब को भी नहीं तोड़ा था।"
 
बाहर के लोग, कई तरह की बातें : हौज़ क़ाज़ी थाने के पास लोगों ने हमें बताया कि मंगलवार को पुरानी दिल्ली के नया बांस, खारी बावली, फ़तेहपुरी, कटरा बड़ियान जैसे बाज़ारों से जो शोभा-यात्रा निकाली गई थी, उसमें काफ़ी लोग बाहर से आए थे और उन्होंने भड़काऊ भाषण दिए, नारेबाज़ी भी की।
 
इनमें से एक थे विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र जैन जिन्होंने दुर्गा मंदिर के पास ही बने एक मंच से कहा कि "हम हौज़ क़ाज़ी को अयोध्या बना सकते हैं। अब हिन्दू पिटेगा नहीं। ये उनको समझ लेना चाहिए।"
 
डॉक्टर कफ़ील के मुताबिक़ जिस समय यह भाषणबाज़ी हो रही थी, उस समय वो अपने साथियों के साथ मंच के पास ही सेवा में खड़े थे। क्या उन्हें यह सुनकर बुरा लगा होगा? यह सवाल आप पर छोड़ते हैं। लेकिन 30 मिनट लंबे उस भड़काऊ भाषण को सुनने के बाद एक स्थानीय हिन्दू शख़्स ने बीबीसी से जो कहा, उसे पढ़िये।
 
वो बोले, "इसी गली दुर्गा मंदिर के अंदर, पांच साल पहले, एक पूरी बिल्डिंग ज़मीन में मिल गई थी। उस बिल्डिंग में 21 ग़रीब परिवार रहते थे। सभी हिन्दू थे। उन्होंने मदद के लिए सबके आगे हाथ फैलाए। फिर धीरे-धीरे सब तितर-बितर हो गए। उनमें से कुछ परिवार आज भी पास की एक सराय में रहते हैं। ये धर्म पढ़ाने वाले तब कहाँ थे?"

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