भारत-चीन विवाद: रेलवे और टेलिकॉम सेक्टर में चीन को कितना तगड़ा झटका दे सकता है भारत

BBC Hindi
शनिवार, 20 जून 2020 (07:25 IST)
गुरप्रीत सैनी, बीबीसी संवाददाता
'बहुत क़रीब, लेकिन फिर भी बहुत दूर' भारत और चीन के आर्थिक और राजनीतिक रिश्तों के लिए अक्सर ये बात कही जाती है। दोनों के आर्थिक हित जुड़े हैं, लेकिन मन-मुटाव भी होते रहते है।
 
सामान के मामले में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हालांकि चीन भारत को सामान बेचता ज़्यादा है और ख़रीदता कम है। यानी चीन की भारत से कमाई ज़्यादा होती है।
 
फ़िलहाल सीमा पर तनाव की जो स्थिति बनी है, माना जा रहा है कि उसका असर आर्थिक रिश्तों पर भी पड़ सकता है। ये असर किन सेक्टरों पर पड़ सकता है, इसमें सबसे पहले रेलवे और टेलिकॉम का नाम आ रहा है।
 
गुरुवार को भारतीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बरे छापी गईं कि भारत ने जवाबी कार्रवाई के तौर पर चीन को कारोबारी झटका देने का मन बना लिया है।
 
ख़बरों में कहा गया कि चीन की एक बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी के हाथ से भारतीय रेलवे का अहम कॉन्ट्रेक्ट निकल सकता है। वहीं भारतीय दूरसंचार विभाग ने बीएसएनएल को कहा है कि वो अपने 4जी अपग्रेडेशन के लिए चीन में बने उपकरणों का इस्तेमाल ना करे।
 
रेलवे ने रद्द किया कॉन्ट्रेक्ट
इसके बाद गुरुवार को ही रेलवे ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि चीन को दिया 471 करोड़ रुपए का एक बड़ा कॉन्ट्रेक्ट रद्द कर दिया गया है।
 
ये कॉन्ट्रेक्ट जून 2016 में बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन ग्रूप को लिमि को दिया गया था। इसके तहत 417 किलोमीटर लंबे कानपुर-दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) सेक्शन में सिग्नलिंग और टेलिकम्यूनिकेशन का काम किया जाना था।
 
भारतीय रेलवे के डेडिकेटेड फ्रेट कोरीडोर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) ने ये कहते हुए इस कॉन्ट्रेक्ट को रद्द कर दिया है कि चीनी संस्था ने बीते चार साल में अबतक सिर्फ़ 20 प्रतिशत ही काम पूरा किया है और उसके काम के तरीक़े में बहुत सारी ख़ामियां हैं।
 
हालांकि इसके बाद एक रेलवे अधिकारी ने कहा कि ये कॉन्ट्रेक्ट रद्द करने का फ़ैसला अप्रैल में ही ले लिया गया था।
 
चीन के पास भारतीय रेल के कई कॉन्ट्रेक्ट
लेकिन फ़िलहाल चीन के साथ किया सिर्फ़ ये एक कॉन्ट्रेक्ट रद्द किया गया है, कहा जा रहा है कि ऐसे और भी कई कॉन्ट्रेक्ट टूट सकते हैं। अगर भारतीय रेलवे की ही बात करें तो कई बड़े कॉन्ट्रेक्ट चीनी कंपनियों को दिए जाते रहे हैं।
 
मेट्रो कोच और पुर्ज़े: इनवेस्ट इंडिया की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक़ रेल ट्रांसिट इक्विपमेंट सप्लाई करने वाली चीनी कंपनी सीआरआरसी को भारत में मेट्रो कोच और पुर्ज़े सप्लाई करने के सात से ज़्यादा ऑर्डर मिले हुए हैं। कोलकाता, नोएडा और नागपुर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए कंपनी को 112, 76, 69 मेट्रो कोच सप्लाई करने का ऑर्डर मिला था।
 
ट्रेक के रखरखाव के लिए मशीनें: इसी कंपनी के साथ मई 2019 में रेलवे ट्रेक के काम में इस्तेमाल होने वाली मशीन के 129 उपकरण खरीदने को लेकर 487,300 अमरीकी डॉलर का कॉन्ट्रेक्ट, 29 प्वाइंट्स क्रॉसिंग एंड टैम्पिंग मशीन खरीदने के लिए करीब पांच करोड़ डॉलर का कॉन्ट्रेक्ट, ट्रेक के लिए 19 मल्टी परपस टैम्पर खरीदने का एक अरब डॉलर से ज़्यादा का कॉन्ट्रेक्ट हुआ था।
 
वहीं अप्रैल 2019 में रेलवे ट्रेक के लिए इस्तेमाल होने वाली प्वाइंट्स क्रॉसिंग एंड टैम्पिंग मशीन की खरीददारी का कॉन्ट्रेक्ट चीन की जेमैक इंजीनियरिंग मशीनरी कंपनी को दिया था। ये कॉन्ट्रेक्ट एक करोड़ डॉलर से ज़्यादा का था। वहीं रेलवे ट्रैक की मरम्मत और ट्रैक की गिट्टी को सेट करने का काम करने वाली ब्लास्ट रेगुलेटिंग मशीन का कॉन्ट्रेक्ट हेवी ड्यूटी मशीनरी कंपनी हुबेई को दिया हुआ है, जो करीब छह लाख डॉलर की कीमत का है।
 
यात्री ट्रेनों के टायर: इसके अलावा यात्री ट्रेनों के टायर भी चीन की कंपनियों से खरीदे जाते हैं। जैसे 2017 में पैसेंजर ट्रेन के करीब साढ़े 27 हज़ार टायर खरीदने के लिए चीन की ताइयुआन हेवी इंडस्ट्री रेलवे ट्रांसिट इक्विपमेंट को। लिमि। के साथ करीब 96 लाख डॉलर का कॉन्ट्रेक्ट हुआ था।
 
टेलिकॉम सेक्टर
भारतीय टेलिकॉम सेक्टर की बात करें तो ख्वावे, ज़ेडटीई और ज़ेडटीटी जैसी चीनी कंपनियां भारतीय टेलिकॉम इंडस्ट्री के लिए बड़े पैमाने पर उपकरण सप्लाई करती हैं। उनके लिए भारत बड़ा बाज़ार है, क्योंकि भारत की टेलिकॉम इंडस्ट्री 1.2 अरब सब्सक्राइबर बेस के साथ दुनिय की दूसरी सबसे बड़ी टेलिकॉम इंडस्ट्री है।
 
हाल में ख़बर आई है कि भारत ज़ेडटीई जैसी चीनी कंपनियों से टेलिकॉम स्पलाई लेना बंद कर सकता है। भारतीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बर चलाई गई कि दूरसंचार विभाग सरकारी टेलिकॉम बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए चीनी कंपनियों से टेलिकॉम सप्लाई पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा सकता है।
 
इकॉनोमिक टाइम्स के मुताबिक़ विभाग से जुड़े एक शख़्स ने बताया, "बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए शुरू होने वाले 4जी यानी फ़ोर्थ जनरेशन नेटवर्क के लिए चीनी कंपनियों से उपकरण, पार्ट और पुर्ज़े नहीं लेने का फैसला लिया जा रहा है।"
 
भारत चीन के मौजूदा तनाव का असर शेन्झेन स्थित ज़ेडटीई के भारत में कारोबार पर पड़ सकता है। भारत का स्टेट-रन टेलिकॉम इस चीनी कंपनी का सबसे बड़ा ग्राहक है और वो भारत में इसके छह सर्कल का रखरखाव करती है।
 
इकॉनोमिक टाइम्स के मुताबिक़, बीएसएलएल बोर्ड ने 49,300 2जी और 3जी साइट्स को 4जी तकनीक में बदलने के लिए चीनी ज़ेडटीई और फिनिश नोकिया को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन दूरसंचार विभाग ने इसपर मुहर नहीं लगाई।
 
वहीं बीएसएनएल मार्च में नया टेंडर निकाला था, जिसकी डेडलाइन अब जून 24 तक बढ़ा दी गई है, जो पहले 25 मई थी। इसमें एमटीएनएल के लिए दिल्ली और मुंबई की सात हज़ार नई साइट को भी शामिल किया गया है।
 
इंडस्ट्री का अनुमान है कि मौजूदा वक़्त में भारतीय दूरसंचार के लिए उपकरणों का सालाना बाज़ार लगभग 12,000 करोड़ रुपये है। जिसमें चीनी कंपनियों की क़रीब एक चौथाई हिस्सेदारी है। बाक़ी का मार्केट स्वीडन की एरिक्सन, फ़िनलैंड की नोकिया और कोरिया की सैमसंग के हाथ में है। कहा जा रहा है कि प्राइवेट मोबाइल ऑपरेटर को भी ख्वावे और ज़ेडटीई से पुर्जे लेने से रोका जा सकता है।
 
सीमा पर ताज़ा तनाव के बाद चीनी सामान के बहिष्कार की मुहीम छिड़ी हुई है। आम लोग भी लगातार इस मुहीम से जुड़कर चीन को आर्थिक झटका देने के पक्ष में हैं। इसके अलावा लोकल से वोकल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे के साथ ये माँग भी उठ रही है कि अब देश में बने सामान को ही ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल में लाया जाए।

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