जब ससुराल की इज्जत की भेंट चढ़ा बहू का बिजनेस

Webdunia
गुरुवार, 28 दिसंबर 2017 (12:20 IST)
- कमलेश
दो साल तक वह एक बिजनेस की मालिक थीं और घर का पूरा ख़र्च उठाती थीं लेकिन एक झटके में सब ख़त्म हो गया और जिंदग़ी बस घर तक सिमटकर रह गई। ये कहानी है आरती तोमर की जो कहती हैं, ''मुझे उस वक्त बहुत अच्छा लगता था। मैं ही घर का खर्च चलाने लगी थी। पति की आय से अच्छी सेविंग हो जाती थी। मैं आगे की प्लानिंग भी करने लगी थी।''
 
आरती अलीगढ़ की रहने वाली हैं और उन्होंने करीब चार साल पहले टिफिन देने का बिजनेस शुरू किया था। धीरे-धीरे बिजनेस इतना बढ़ गया कि उन्होंने काम के लिए और लोग भी रख लिए। करीब 40-50 टिफिन जाने लगे थे।
 
आरती बताती हैं, ''जहां मैं रहती हूं वहां आस-पास बहुत से स्टूडेंट्स और जॉब करने वाले ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें खाने की समस्या होती थी।'' ''तब मेरे दिमाग में टिफिन सर्विस शुरू करने का आइडिया आया। मैंने अपने पति से बात की और उन्हें मनाया। इसके बाद काम शुरू कर दिया।'' आरती का काम अच्छा चल रहा था लेकिन तभी उनके जेठ का परिवार और सास साथ रहने आ गए।
 
आरती ने बताया, ''जेठ और सास को मेरे काम से दिक्कत होने लगी। उनका कहना था कि ये बिजनेस ठाकुरों के स्टेटस के बराबर नहीं है। इसे बंद कर दो। इसे लेकर रोज़-रोज़ की टोकाटोकी होनी लगी। कोई बाहर से आता तो मेरी सास टिफिन सर्विस के बारे में बताने से मना करतीं जैसे कि मैं कोई ग़लत काम कर रही हूं।''
 
''मुझे इससे बेइज़्ज़ती महसूस होने लगी क्योंकि मेरे काम में कोई बुराई नहीं थी तो मैं उसे क्यों छुपाती? फिर इस सबसे तंग आकर मैंने बिजनेस बंद कर दिया।'' आरती याद करते हुए कहती हैं कि बहुत बुरा लगता है क्योंकि बिजनेस उस वक़्त बंद करना पड़ा जब सब कुछ अच्छा चल रहा था। मैं रेस्त्रां शुरू करने के बारे में भी सोचने लगी थी। लेकिन, सब ठप्प पड़ गया।
 
''पति के साथ शायद ऐसा नहीं होता''
आरती ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी किया है और वह घर में अपने इस हुनर का इस्तेमाल करती रहती हैं। वह बुटीक खोलना चाहती हैं लेकिन इसमें भी कई मुश्किलें हैं।
 
उन्होंने बताया, ''बुटीक के लिए मुझे पूरे दिन बाहर रहना पड़ेगा। फिर घर और बच्चे संभालने में दिक्कत होगी इसलिए ये काम नहीं कर पाई। फिर पैसों की भी समस्या है।''
 
अगर उनके पति टिफिन का बिजनेस करते तो क्या तब भी घर वाले ऐसा ही कहते? इस सवाल के जवाब में आरती थोड़ा सोचते हुए कहती हैं, ''शायद ऐसा नहीं होता क्योंकि तब सिर्फ वही कमाने वाले होते। मुझसे ये भी कहा जाता था कि जब घर अच्छे से चला रहा है तो तुम्हें कमाने की क्या जरूरत है।''
 
आरती की सास शकुंतला तोमर से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''घर में सब ठीक है तो फिर वैसा काम क्यों करें जिससे बेइज़्ज़ती हो। हमारे यहां ये खाना देना नहीं सुहाता।'' हमारे देश में आरती जैसी कहानियां कम नहीं हैं। कई औरतें हैं जो या तो कारोबार शुरू ही नहीं कर पातीं या बीच में ही छोड़ना पड़ता है।
 
आज भी देश में महिला उद्यमियों की संख्या बहुत कम है। आंकड़ों की बात करें तो नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, देश में सिर्फ 14 फीसदी व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं जिन्हें महिलाएं चलाती हैं। छोटे-छोटे कारोबार जैसे जनरल स्टोर, ऑटोमोबाइल स्टोर, कपड़ों की दुकान आदि को चलाते हुए भी महिलाएं बहुत कम दिखती हैं।
 
हाल ही में बेंगलुरू में हुए ग्लोबल आंत्रप्रेन्योर समिट में भी महिला उद्यमियों की कम संख्या का मसला उठाया गया था और उनकी संख्या बढ़ाने पर चर्चा की गई थी। इस कम संख्या के पीछे के कारणों को समझने के लिए हमने कुछ महिला उद्यमियों और जानकारों से बात की।
पारिवारिक समस्या
इंटीरियर डिज़ाइनर और डेनोटेशन डिज़ाइन कंपनी की मालिक पूजा बंसल कहती हैं, ''कारोबार में महिलाओं की संख्या कम होने की वजहें हमारे समाज में गहरी समाई हैं। महिलाओं की प्राथमिकता उनका घर माना जाता है। उनसे पहले घर और बच्चों को संभालने की उम्मीद की जाती है और उसके बाद किसी और भूमिका में स्वीकारा जाता है।''
 
''ऐसे में जो महिलाएं इस कड़े मानदंड पर खरी उतर जाती हैं या जिन्हें घर से सहयोग मिलता है वो ही बिजनेस कर पाती हैं। फिर हमारे समाज में तो लड़की का नौकरी करना तक शादी से पहले तय हो जाता है।''
 
पूजा बंसल ख़ुद इस दौर से गुज़र चुकी हैं। उन्होंने बताया, ''मैं इंटीरियर डिज़ाइनिंग में करियर बनाना चाहती थी लेकिन घर वालों का सोचना था कि मैं बस बेसिक ग्रेजुएशन करने के बाद शादी कर लूं। लेकिन, स्थितियां थोड़ा मेरे पक्ष में थीं। मेरा इंस्टीट्यूट घर के पास था इसलिए इंटीरियर डिज़ाइनिंग की इजाज़त मिल गई।''
 
इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन कहती हैं, 'घर वाले लड़के के लिए छोटा-मोटा बिज़नेस शुरू कर देते हैं क्योंकि वो अंत में उनका ही सहारा बनेगा। लेकिन, लड़की तो किसी और घर का पौधा है, वो उसे पानी क्यों देंगे? इसलिए लड़कियों को घर से ही मदद नहीं मिल पाती है।''
 
लोन की सिक्योरिटी के लिए संपत्ति नहीं
कोई भी व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे बड़ी ज़रूरत है पैसा। फंड जुटाना महिलाओं के लिए बहुत बड़ी समस्या बन जाती है। फिक्की लेडीज ऑर्गेनाइजेशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हरजिंदर कौर कहती हैं, ''जब महिलाओं को घर से पैसा नहीं मिलता तो वो बैंकों का रुख करती हैं लेकिन वहां भी महिलाओं के लिए अलग ही धारणा है।''
 
''पहले तो लोन वापस कर पाने को लेकर उन पर भरोसा मुश्किल से किया जाता है। अगर कर भी लिया जाए तो कोलेट्रल सिक्योरिटी की समस्या आती है। महिलाओं के पास लोन की जमानत देने के लिए अपनी कोई संपत्ति ही नहीं होती। अगर वो कुछ देना भी चाहें तो उन्हें घरवालों की सहमति की जरूरत पड़ती है।''
 
बाल विवाह से लेकर दलित होने तक का दंश झेल चुकीं कल्पना सरोज कहती हैं कि महिलाओं के सामने पैसा बहुत बड़ी समस्या है। हिम्मत जुटा भी लें तो भी इस मोड़ पर उम्मीद छूटने लगती है। अधिकतर मामलों में मायके और ससुराल दोनों जगह उनके नाम कोई संपत्ति नहीं होती। उनके सामने लोन की सिक्योरिटी का मसला खड़ा हो जाता है।
 
कल्पना सरोज 'कमानी ट्यूब्स' की मालिक हैं और बताती हैं कि जब उन्होंने बिजनेस करने के बारे में सोचा था तो बैंकों के नियमों पर ही खरा उतरना मुश्किल हो गया था।
 
महिलाओं की क्षमता पर भरोसा नहीं
महिलाएं एक और जिस बड़ी दिक्कत का सामना करती हैं वो है उनकी क्षमता पर भरोसा न हो।
 
ऐसी ही स्थितियों का सामना कर चुकीं हरजिंदर कौर कहती हैं, ''अमूमन लोग सोचते हैं कि ये औरत है तो काम की डिलिवरी दे पाएगी या नहीं। अगर एक पुरुष और महिला एक ही तरह की समान टर्नओवर वाली कंपनियों से हैं, तब भी ज्यादा झुकाव पुरुष की तरफ ही होता है जब तक कि महिला अपनी प्रेजेंटेशन से खुद को बेहतर साबित न कर दे।''
 
इन सभी रुकावटों से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है, इसके लिए हरजिंदर कौर का कहना है कि वित्तीय संस्थानों को आगे आने की जरूरत है। वह कहती हैं, ''सरकारी स्तर पर बहुत कुछ किया जा सकता है। जैसे सरकारी टेंडर में ईएमडी, टेंडर फीस की छूट दे दीजिए। आप एनएसआईसी और एमएसएमई रजिस्टर्ड कंपनियों के लिए काफी कुछ कर रहे हैं तो महिलाओं के लिए क्यों नहीं?''
 
कमला भसीन कहती हैं कि सरकार और समाज दोनों स्तर पर काम करने की जरूरत है। सबसे पहले महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकार को और सुनिश्चित करें। उत्तराधिकार का अधिकार है पर अब भी उन्हें संपत्ति नहीं मिल पाती। साथ ही महिलाओं के लिए लोन लेना और आसान किया जाए। कुछ स्टार्टअप ख़ास तौर पर औरतों के लिए बनाए जा सकते हैं। हालांकि, सामाजिक स्तर पर समानता के लिए ज्यादा सुधार करने की ज़रूरत है।

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