क़ासिम सुलेमानी की मौत का बदला अमेरिका से कैसे लेगा ईरान?

BBC Hindi
शनिवार, 4 जनवरी 2020 (09:47 IST)
जॉनाथन मार्कस (बीबीसी)
 
इराक़ की राजधानी बग़दाद में ईरान के बहुचर्चित कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या ने अमेरिका और ईरान के बीच चल रहे निम्नस्तरीय संघर्ष को नाटकीय ढंग से एक उछाल दे दिया है जिसके परिणाम काफ़ी गंभीर हो सकते हैं।
ALSO READ: ईरान की अमेरिका को धमकी, सुलेमानी की मौत का बदला लेंगे
उम्मीद की जा रही है कि ईरान इसका जवाब देगा। पर प्रतिशोध और प्रतिक्रियाओं की यह श्रृंखला दोनों देशों को सीधे टकराव के क़रीब ला सकती है। अब इराक़ में अमेरिका का भविष्य क्या होगा, यह सवाल तो उठेगा ही, पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्य-पूर्व क्षेत्र के लिए अगर कोई रणनीति बनाई हुई है तो उसका परीक्षण भी अब हो जाएगा।
 
फ़िलिप गॉर्डन, जो कि बराक ओबामा की सरकार में व्हाइट हाउस के लिए मध्य-पूर्व और फ़ारस की खाड़ी के सह-समन्वयक रहे, ने कहा है कि सुलेमानी की हत्या अमेरिका का ईरान के ख़िलाफ़ 'युद्ध की घोषणा' से कम नहीं है।
 
कुद्स फ़ोर्स ईरान के सुरक्षा बलों की वो शाखा है, जो उनके द्वारा विदेशों में चल रहे सैन्य ऑपरेशनों के लिए ज़िम्मेदार है और सुलेमानी वो कमांडर थे जिन्होंने वर्षों तक लेबनान, इराक़, सीरिया समेत अन्य खाड़ी देशों में योजनाबद्ध हमलों के ज़रिए मध्य-पूर्व में ईरान और उसके सहयोगियों के प्रभाव को बढ़ाने का काम किया।
 
अमेरिका ने सुलेमानी पर हमले का फ़ैसला अभी क्यों लिया?
 
पर अमेरिका के लिए जनरल क़ासिम सुलेमानी के हाथ अमेरिकियों के ख़ून से रंगे थे, वहीं ईरान में सुलेमानी किसी हीरो से कम नहीं थे। व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका के चलाए गए व्यापक अभियान और प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई का सुलेमानी ने नेतृत्व किया।
 
पर अधिक आश्चर्य की बात ये नहीं है कि सुलेमानी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर थे, बल्कि ये है कि अमेरिका ने सुलेमानी पर हमले का फ़ैसला इस वक़्त ही क्यों किया? इराक़ में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर निचले स्तर के रॉकेटों से किए गए सिलसिलेवार हमलों का दोषी ईरान को ठहराया गया था। इन हमलों में एक अमेरिकी ठेकेदार की मौत हो गई थी।
 
इससे पहले ईरान ने खाड़ी में टैकरों पर हमला किया, अमेरिका के कुछ मानवरहित हवाई वाहनों को गिराया, यहां तक कि सऊदी अरब के एक बड़े तेल ठिकाने पर हमला किया। इन सभी पर अमेरिका ने कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
एक तीर से दो निशाने
 
रही बात इराक़ में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर रॉकेटों से हमले की, तो अमेरिका ने ईरान समर्थक सैन्य गुटों को इन हमलों का मास्टरमाइंड मानते हुए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी। इस कार्रवाई ने बग़दाद स्थित अमेरिकी दूतावास परिसर में संभावित हमले को प्रेरित किया था।
 
सुलेमानी को मारने का फ़ैसला क्यों किया गया, यह समझाते हुए अमेरिका ने न सिर्फ़ उनके पिछले कारनामों पर ज़ोर दिया, बल्कि ज़ोर देकर यह भी कहा कि उनकी हत्या एक निवारक के तौर पर की गई है। अमेरिका ने अपने आधिकारिक बयान में लिखा भी है कि कमांडर सुलेमानी सक्रिय रूप से इराक़ और उससे लगे क्षेत्र में अमेरिकी राजनयिकों और सेवा सदस्यों पर हमला करने की योजनाएं विकसित कर रहे थे।
 
अब बड़ा सवाल ये है कि आगे क्या होता है? राष्ट्रपति ट्रंप ज़रूर यह सोच रहे होंगे कि उन्होंने इस नाटकीय कार्रवाई के ज़रिए एकसाथ दो निशाने लगा लिए हैं। पहला तो यह कि इस हमले के ज़रिए अमेरिका ने ईरान को धमकाया है और दूसरा यह कि मध्य-पूर्व में अमेरिका के सहयोगी सऊदी अरब और इसराइल, जिनकी बेचैनी पिछले कुछ वक़्त से लगातार बढ़ रही थी, उन्हें अमेरिका ने यह जता दिया है कि अमेरिका के तेवर अभी भी क़ायम हैं, वो उनके साथ है, उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।
 
ईरान अब क्या कर सकता है?
 
हालांकि यह लगभग अकल्पनीय है कि ईरान इसके जवाब में कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं देगा। इराक़ में तैनात 5,000 अमेरिकी सैनिक संभवत: ईरान के लक्ष्य पर होंगे। ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है, क्योंकि अतीत में ईरान और उसके समर्थकों ने जवाबी कार्रवाई के तौर पर ऐसा किया है। खाड़ी में अब तनाव बढ़ेगा, ऐसा लगता है और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इसका प्रारंभिक प्रभाव तेल की कीमतों में वृद्धि के तौर पर दिखाई देगा।
 
अमेरिका और उसके सहयोगी अब अपने बचाव पर ध्यान दे रहे हैं। अमेरिका ने पहले ही बग़दाद स्थित अपने दूतावास को छोटी मात्रा में सहायता भेज दी है, साथ ही ज़रूरत पड़ने पर वो इस क्षेत्र में अपने सैन्य बेड़ों की संख्या को भी बढ़ा सकता है।
 
और क्या करेगा ईरान?
 
लेकिन यह इतना सीधा-सपाट नहीं होगा कि ईरान एक हमले का जवाब दूसरे हमले से ही दे। माना जा रहा है कि इस बार ईरान की प्रतिक्रिया असंयमित होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो आशंका यह भी है कि ईरान सुलेमानी के बनाए गए और फंड किए गए गुटों से व्यापक समर्थन हासिल करने का प्रयास करे।
 
उदाहरण के लिए ईरान बग़दाद स्थित अमेरिकी दूतावास पर घेराबंदी को नया रूप दे सकता है। वो इराक़ी सरकार को और भी मुश्किल स्थिति में डाल सकता है। साथ ही इराक़ में अन्य जगहों पर प्रदर्शनों को भड़का सकता है ताकि वो इनके पीछे अन्य हमले कर सके।
 
सुलेमानी को मारने का अमेरिकी फ़ैसला कितना सही?
 
ईरान की बहुचर्चित कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या स्पष्ट तौर पर अमेरिकी फ़ौज की इंटेलिजेंस और उनकी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन है। पर क्या राष्ट्रपति ट्रंप का इस कार्रवाई को अनुमति देना सबसे बुद्धिमानी का फ़ैसला कहा जा सकता है?
 
क्या अमेरिका इस घटना के बाद के परिणामों को झेलने के लिए पूरी तरह तैयार है? और क्या इससे मध्य-पूर्व को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की समग्र रणनीति के बारे में पता चलता है? क्या इसमें किसी तरह का बदलाव हो गया है? क्या ईरानी अभियानों के प्रति यह एक नए स्तर की असहिष्णुता है? या सिर्फ़ ये एक राष्ट्रपति द्वारा एक ईरानी कमांडर को सज़ा देने तक सीमित है जिसे वो एक 'बहुत बुरा आदमी' कहते आए हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

Realme के 2 सस्ते स्मार्टफोन, मचाने आए तहलका

AI स्मार्टफोन हुआ लॉन्च, इलेक्ट्रिक कार को कर सकेंगे कंट्रोल, जानिए क्या हैं फीचर्स

Infinix Note 40 Pro 5G : मैग्नेटिक चार्जिंग सपोर्ट वाला इंफीनिक्स का पहला Android फोन, जानिए कितनी है कीमत

27999 की कीमत में कितना फायदेमंद Motorola Edge 20 Pro 5G

Realme 12X 5G : अब तक का सबसे सस्ता 5G स्मार्टफोन भारत में हुआ लॉन्च

अगला लेख