गांधी की हत्या पर क्या पाक भी रोया था?

Webdunia
शुक्रवार, 30 जनवरी 2015 (16:52 IST)
अदनान आदिल, वरिष्ठ पत्रकार, पाकिस्तान से

भारत में महात्मा गांधी के नाम से शायद ही कोई परिचित न हो, लेकिन पाकिस्तान की नई पीढ़ी के मानस से अहिंसा के इस पुजारी की छवि धूमिल हो गई है। नई पीढ़ी गांधी को यूं ही नहीं भूल गई बल्कि सरकार और अखबारों ने ही उन्हें भुला दिया।

हैरानी नहीं होनी चाहिए कि गांधी की हत्या के समय पाकिस्तान में मातम छा गया था। अखबारों में उनकी तारीफ में बड़े-बड़े लेख प्रकाशित हुए थे। लेकिन, उनके बारे में बाद में कई तरह की बातें होने लगीं, हालांकि अभी भी पुरानी पीढ़ी के लोग उन्हें पाकिस्तान का हमदर्द मानते हैं।

मैंने लाहौर में एक एमए पास लड़की से पूछा, 'गांधी के बारे में कुछ पता है?' वो कहने लगीं, 'इंदिरा गांधी जो भारत की प्रधानमंत्री थीं?' मैंने कहा, 'नहीं। वह गांधी जो इंडिया के फादर ऑफ नेशन हैं।'

वो कहने लगी, 'अच्छा वे पतले, दुबले, बूढ़े आदमी। नहीं मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानती। मोहनदास करमचंद गांधी भारत में तो महात्मा और बापू हैं, लेकिन पाकिस्तान की नई पीढ़ी उनसे शायद परिचित ही नहीं है। उनके बारे में राय रखना तो बहुत दूर की बात है। लेकिन पुरानी पीढ़ी के बचे-खुचे लोगों में गांधी की याद बाकी है।

छवि : और रहा इतिहास तो मैंने अपनी शिक्षा के दौरान गांधी का नाम केवल एक बार पढ़ा है। वह भी एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने मुसलमानों को धोखा दिया। हमारी 'पाकिस्तान अध्ययन' की किताब में खिलाफत आंदोलन पर एक चैप्टर था। बताया गया कि मोहम्मद अली जौहर और गांधी ने मिलकर अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग की एक मुहिम चलाई। जब हिन्दुओं और मुसलमानों का एकता संचालित आंदोलन जोरों पर था तो गांधी ने अचानक उसे समाप्त करने की घोषणा की। बहाना बनाया कि हिंसा की एक घटना हो गई है। यूं उन्होंने मुसलमानों को बीच मझधार में छोड़ दिया, उनके विश्वास को ठेस पहुंचाई। पाकिस्तान का विरोध करने वाला कोई नेता हमारे सरकारी इतिहास में उल्लेख के लायक ही नहीं। यह बताने के लिए भी नहीं कि उनका विचार क्या था।

गांधी और जिन्ना : मौलाना हुसैन अहमद मदनी और अबुल कलाम आजाद जैसे मुसलमान भी नहीं। गांधी तो हिन्दू नेता थे। पाकिस्तानियों ने तो खान अब्दुल गफ्फार खान को स्वीकार नहीं किया। उर्दू अखबार उनके नाम के साथ सीमांत गांधी का टाइटल व्यंग्य के रूप में लगाते थे। यह बताने के लिए कि वो पाकिस्तान से ज्यादा भारत से थे। बीस-पच्चीस साल पहले तक अखबारों के स्तंभों में गांधी का हल्का उल्लेख हो जाया करता था। गांधी अपनी बात मनवाने के लिए उपवास और मौन व्रत करते थे। बकरी का दूध पीते थे।

यह बकरी उनके साथ रहती थी। केवल धोती पहने रहते थे। चरखा चलाते रहते थे। लोगों को दिखाने के लिए ट्रेन की थर्ड क्लास में यात्रा करते थे, लेकिन हिन्दू पूंजीपति बिड़ला के दिए हुए पैसों से। हमारे कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना अपने पैसों पर प्रथम श्रेणी में यात्रा करते थे।

नेहरू से बेहतर : इस बात की चर्चा भी हो जाती थी कि गांधी इतने पक्के हिन्दू थे कि उन्होंने पंडित नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को सैयद हुसैन से शादी करने से रोक दिया था। उनकी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति महज एक दिखावा थी, मुसलमानों को चकमा देने के लिए। गांधी के बारे में पुरानी पीढ़ी के विचार उर्दू अखबारों से अलग हैं। वे कहते हैं कि गांधी की ब्रितानी राज के खिलाफ आजादी के आंदोलन में एक बड़ी भूमिका थी। और यह कि उन्होंने विभाजन के समय हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बंगाल में होने वाले खूनी दंगे रुकवाने के लिए मौन व्रत किया था। उन्होंने अपनी सरकार पर दबाव डालकर पाकिस्तान को उसके हिस्से की संपत्ति दिलवाई। वह मुसलमानों के पक्ष में नेहरू और पटेल की तुलना में बेहतर आदमी थे।

राजनीति में धर्म : एक कट्टर हिन्दू ने इसलिए उनकी हत्या कर दी कि वह मुसलमानों से नरमी बरत रहे थे। ये बातें केवल बूढ़े लोग करते हैं। इतिहासकार और विद्वानों के विचार इससे अलग हैं।

'पाकिस्तान कैसे बना?' नामक इतिहास की पुस्तक के लेखक हसन जाफर जैदी कहते हैं, 'गांधी ने अहिंसा आंदोलन बंगाल में जारी क्रांतिकारी आंदोलन को समाप्त करने के लिए चलाया जिसका लाभ ब्रितानी साम्राज्य को हुआ। वो कहते हैं, 'इसलिए ब्रिटेन के प्रेस ने उनकी अच्छी इमेज बनाई। बाद में उन्होंने कांग्रेस की राजनीति में हिन्दू धर्म को घुसा दिया। इस तरह मुसलमानों और हिन्दुओं में दूरी बढ़ गई।

अंग्रेजों का प्लान : जैदी के अनुसार, 'वर्ष 1946 में अंग्रेजों ने भारत को एक रखने के लिए जो कैबिनेट मिशन का जोनल प्लान दिया था उसे मुस्लिम लीग ने तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन गांधी ने इसे नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके मुताबिक, 'उन्होंने असम और पंजाब के हिन्दू और सिख नेताओं को इस योजना के खिलाफ उकसाया। गांधी ने धर्म को जिस तरह राजनीति में घुसाया आज के भारत में हिन्दुत्व की राजनीति उसी का परिणाम है। अखबार वाले और बुद्धिजीवी कुछ भी कहें एक तथ्य यह भी है कि जब 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या की गई तो पाकिस्तान में उदासी छा गई थी।

तारीफ : लाहौर के 80 वर्षीय प्रकाशक रियाज चौधरी कहते हैं, 'जब खबर आई कि गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी है तो देशभर में मातम छा गया। लोग रोने लगे। यह माना गया कि मुसलमानों का समर्थक नेता मर गया। वो कहते हैं, 'पाकिस्तान रेडियो ने उनकी सेवाओं को सराहते हुए उन पर बेहतरीन कार्यक्रम प्रसारित किए। अखबारों ने उन पर तारीफ के लेख छापे। फिर वह धीरे-धीरे पाकिस्तानियों के मन से रुखसत हो गए।
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