मेक इन इंडियाः कितनी हकीकत, कितना फसाना

Webdunia
गुरुवार, 30 अप्रैल 2015 (17:37 IST)
- जुबैर अहमद (नई दिल्ली)
 
नरेंद्र मोदी भारत के शायद पहले प्रधानमंत्री हैं जो एक बेहतरीन सेल्समैन हैं। वो इन दिनों, देश के भीतर या बाहर जहां भी जाते हैं, कहते हैं, 'आइए, भारत में बनाइए और पूरी दुनिया में बेचिए। मेक इन इंडिया।' प्रधानमंत्री मोदी के इस विशेष अभियान का मकसद भारत को चीन की तरह मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है।
लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार की वजह से भारत दुनिया भर में निवेश करने वालों के लिए पसंदीदा देशों की सूची में काफी नीचे है। मोदी के अभियान की वजह से इतना तो जरूर हुआ है कि देसी-विदेशी कारोबारियों की दिलचस्पी 'मेक इन इंडिया' में पैदा हुई है। वे जानना चाहते हैं कि नई कोशिश के तहत सचमुच कुछ करने की गुंजाइश कितनी है।
 
निवेशकों को 'फील गुड' : भारत के उद्योगपतियों और कारोबारियों के प्रमुख संगठन फिक्की के प्रमुख दीदार सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री के शब्द निवेशकों के कान में मिसरी घोल रहे हैं। दीदार के मुताबिक, 'भारत में घरेलू बाजार में मांग है, देश में लोकतंत्र है और काम करने लायक बहुत बड़ी युवा आबादी है।'
विदेशी निवेश और विकास दर में लगातार गिरावट के दौर में विकास और बेहतर शासन के वादे के साथ मोदी भारी बहुमत से सत्ता में आए हैं। और 'मेक इन इंडिया' के अलावा वो बड़े जोर-शोर से ' डिजिटल इंडिया' और 'स्किल्ड इंडिया' की बात कर रहे हैं। आगे चलकर ये तीनों अभियान एक दूसरे से जुड़कर चलेंगे।
 
'मेक इन इंडिया' का काम आगे बढ़ाने के लिए 25 ऐसे क्षेत्र चुने गए हैं, जिनमें बेहतर प्रदर्शन की संभावना है। इनमें ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, कंस्ट्रक्शन और फार्मा जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
 
आशंकाएं और चुनौतियां : लोग सबसे पहले तो यही समझना चाहते हैं कि 'मेक इन इंडिया' में प्रचार और विज्ञापन कितना है, और असली काम कितना होगा?
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन खुलकर सरकार को अगाह कर चुके हैं कि सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देने से बात नहीं बनेगी। उनका मानना है कि 'मेक इन इंडिया' की निर्भरता निर्यात पर होगी, जबकि दुनिया भर में मांग में कमी की वजह से निर्यात घटा है।
 
अर्थशास्त्री मिहिर शर्मा कहते हैं कि 'मेक इन इंडिया' की सबसे बड़ी चुनौती कुशल कामगारों की कमी है। उनका मानना है कि भारत में इंस्पेक्टर राज खत्म नहीं हुआ है और यह निवेशकों को चिंतित करता है।
 
भूमि अधिग्रहण की चुनौती : औद्योगिक विकास के लिए जमीन चाहिए और भारत में जमीन का अधिग्रहण एक बड़ा मुद्दा है जिसका विरोध किसान और आदिवासी पुरजोर तरीके से कर रहे हैं।
इस समस्या का हल निकालना मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
'मेक इन इंडिया' के कर्ताधर्ता अमिताभ कंठ कहते हैं कि सरकार लाल फीताशाही को खत्म करने और निवेशकों को सिंगल विंडो क्लियरेंस देने की दिशा में लगातार काम कर रही है, 'डिजिटल इंडिया' और 'स्किल्ड इंडिया' की वजह से मौजूदा समस्याएं दूर हो सकेंगी।
 
भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की नजर इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर है, जिसमें संभावनाएं और चुनौतियां दोनों एक जैसी बड़ी हैं।
Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

Realme के 2 सस्ते स्मार्टफोन, मचाने आए तहलका

AI स्मार्टफोन हुआ लॉन्च, इलेक्ट्रिक कार को कर सकेंगे कंट्रोल, जानिए क्या हैं फीचर्स

Infinix Note 40 Pro 5G : मैग्नेटिक चार्जिंग सपोर्ट वाला इंफीनिक्स का पहला Android फोन, जानिए कितनी है कीमत

27999 की कीमत में कितना फायदेमंद Motorola Edge 20 Pro 5G

Realme 12X 5G : अब तक का सबसे सस्ता 5G स्मार्टफोन भारत में हुआ लॉन्च