बीजेपी से नफ़रत और RSS से मोहब्बत, ममता बनर्जी के नए बयान के मायने क्या हैं?

BBC Hindi
शनिवार, 3 सितम्बर 2022 (08:09 IST)
"आरएसएस पहले बुरी नहीं थी। मुझे नहीं लगता कि आरएसएस उतनी बुरी है। अब भी आरएसएस में कई अच्छे और सच्चे लोग हैं और वे बीजेपी को सपोर्ट नहीं करते। एक दिन वे भी अपनी चुप्पी तोड़ेंगे।"
 
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर दिया ये ताज़ा बयान आजकल सुर्खियों में है। उनके इस बयान का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।
 
इस वीडियो को कांग्रेस और वामपंथी नेता भी खूब शेयर कर चुटकी भी ले रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि आरएसएस की तारीफ़ ममता बनर्जी ने पहली बार की है।
 
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आरएसएस की तारीफ वाला इस बार का वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि साल 2003 में भी ममता बनर्जी ने आरएसएस को देशभक्त कहा था। बदले में आरएसएस ने उन्हें दुर्गा कहा था। आरएसएस हिंदू राष्ट्र चाहती है। आरएसएस का इतिहास मुसलमान विरोधी 'हेट क्राइम' से भरा है।
 
ओवैसी ने ये भी कहा कि गुजरात दंगों के बाद ममता बनर्जी ने संसद में बीजेपी सरकार का बचाव किया था। उन्होंने तंज़ करते हुए लिखा है, "उम्मीद है कि टीएमसी के मुस्लिम नेता ममता बनर्जी की ईमानदारी को लेकर उनकी सराहना करेंगे।"
 
साल 2003 में ममता ने क्या कहा था?
ओवैसी ममता बनर्जी के जिस 'देशभक्त' वाले बयान का जिक्र कर रहे थे, वो वाकया भी दिलचस्प है। उस समय ममता बनर्जी एनडीए का हिस्सा बनी ही थीं। तब उनको केंद्र सरकार में कोई पद भी नहीं मिला था।
 
वो सितंबर 2003 का महीना था। 'कम्युनिस्ट टेररिज़्म' की किताब के विमोचन में उन्हें उस समय 'पाञ्चजन्य' के संपादक तरुण विजय ने बुलाया था। मंच पर आरएएसएस के कई दिग्गज मदन दास देवी, मोहन भागवत और एचवी शेषाद्री मौजूद थे। बीजेपी के राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज भी वहां थे।
 
'दि टेलिग्राफ' की रिपोर्ट के मुताबिक, उस किताब के विमोचन में ममता बनर्जी ने मंच पर मौजूद नेताओं के सामने कहा, "अगर आरएसएस एक फीसदी भी हमें सपोर्ट करे तो हम 'लाल' आतंक से लड़ने में कामयाब होंगे।"
 
उस समय तरुण विजय ने जब ममता बनर्जी को मंच पर भाषण देने के लिए बुलाया था तो उन्हें 'बंगाल की दुर्गा' कह कर संबोधित किया था। उसके बाद उस वक़्त के राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने भी ममता बनर्जी को 'दुर्गा' कह कर संबोधित किया था।
 
बीबीसी से बातचीत में बलबीर पुंज कहते हैं, "उस दौर में सीपीएम की पश्चिम बंगाल में बहुत अच्छी पकड़ थी। बंगाल में उन्हें चुनौती देने की किसी और की हिम्मत नहीं थी। ममता बनर्जी ने वो हिम्मत दिखाई।"
 
"उस हिम्मत के कारण मेरे जैसे लोग उनके मुरीद हो गए। बहुत ही सिम्पल लाइफ़ स्टाइल है उनकी।"
 
"मुझे याद है। एक बार वो अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने प्रधानमंत्री निवास पर आईं। वो लंगड़ाते हुए आ रही थीं। मैं और अटल जी बैठे हुए थे। मैंने पूछा, क्या हुआ पैर में? उन्होंने कहा, मैं गाड़ी में बैठ रही थी। मेरी चप्पल टूट गई। वापस भी जाना है। क्या आप इसे ठीक करवा सकते हैं।"
 
"मैंने आदमी बुलवा कर उनके साइज़ की दूसरी चप्पल मंगवा दी। नई चप्पल देख कर उन्होंने कहा, इसकी ज़रूरत क्या थी, पुरानी वाली ही बनवा देते।" "उनकी इसी सादगी से मेरे जैसे लोग काफी प्रभावित रहते थे।"
 
साल 2003 का ज़िक्र बीस साल बाद क्यों?
साफ़ है कि 2003 से 2022 तक लगभग 20 साल बीत चुके हैं। तब ममता बनर्जी बंगाल में वामपंथियों से लड़ रही थीं। बीस साल बाद अब वहां ममता बनर्जी की लड़ाई बीजेपी से है। पश्चिम बंगाल में विपक्ष में वामपंथी और कांग्रेसी अब कहीं नहीं टिकते। ना तो विधानसभा में और ना ही लोकसभा के चुनाव में।
 
ऐसे में ओवैसी द्वारा आरएसएस पर दिया ममता बनर्जी का बीस साल पुराना बयान याद दिलाना - क्या अहमियत रखता है...
 
वरिष्ठ पत्रकार महुआ चटर्जी कहती हैं, "ओवैसी की बात कोई मायने नहीं रखती। उनको तव्वजो देने की ज़रूरत नहीं है। वो सिर्फ़ बंगाल के मुसलमानों को भड़काने के लिए ऐसा कह रहे हैं। ममता बनर्जी उनकी बातों से भड़कने वाली नहीं हैं। "
 
पश्चिम बंगाल की राजनीति मुसलमान वोटरों को नाराज़ करके नहीं की जा सकती। बंगाल की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 फ़ीसद है। ये बात वहां का हर राजनेता और पश्चिम बंगाल का हर वोटर जानता है।
 
ऐसे में महुआ पूछती हैं, "बंगाल में मुसलमान वोटरों की अहमियत जब हम और आप तक जानते हैं, क्या ममता बनर्जी नहीं जानती होंगी? ममता बनर्जी ने जो कुछ कहा है उसमें ऐसा कुछ नहीं कि मुसलमान नाराज़ हो। उन्होंने केवल इतना ही कहा है कि आरएसएस में भी कुछ अच्छे लोग हैं। ममता बनर्जी की पॉलिटिक्स पर निशाना साधने वाले ओवैसी कौन होते हैं, जिन पर ख़ुद बीजेपी के ए, बी , सी टीम का तमगा सालों से लगता रहा है। ममता पर ओवैसी का निशाना साधना इस वजह से मायने नहीं रखता।"
 
ममता ने आरएसएस का ज़िक्र क्यों किया?
हालांकि, महुआ ये ज़रूर कहती हैं कि आरएसएस की याद ममता बनर्जी को 20 साल बाद यूं ही नहीं आई है। ममता बनर्जी जैसी मंझी हुई राजनेता के मुँह से कोई भी वाक्य अनायास नहीं निकलता।
 
आरएसएस का ज़िक्र इस तरह से छेड़ना उनकी रणनीति का हिस्सा है। वो अपने राज्य की राजनीति कर रही हैं। उनको इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कौन विरोधी क्या कहता है।
 
उनके बयान का विश्लेषण करते हुए महुआ कहती हैं, "ममता अपने बयान से आरएसएस और बीजेपी के बीच एक दरार पैदा करना चाहती हैं। ममता को लगता है कि इससे बीजेपी राज्य में थोड़ा असहज होगी क्योंकि बंगाल में बीजेपी की असली ताकत ही आरएसएस है।"
 
बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने 2017 में पश्चिम बंगाल में आरएसएस के विस्तार पर एक विस्तृत रिपोर्ट की थी।
 
बीबीसी की उस रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि किस तरह से साल 2011 में पश्चिम बंगाल में मात्र 530 आरएसएस की शाखाएं लगती थीं ये आंकड़ा 2015-16 में बढ़कर 1500 के पार जा चुका है।
 
मार्च 2017 में कोयंबटूर में हुए अपने अधिवेशन में संघ ने 'पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की घटती संख्या और कट्टरवादी तत्वों का बढ़ना एक बड़ा ख़तरा' घोषित किया था।
 
यूं तो शुरू से बंगाल हिंदू राष्ट्रवाद का केंद्र रहा है। स्वामी विवेकानंद से लेकर भारतीय राष्ट्रीयता का आंदोलन यहीं से शुरू हुआ। स्वतंत्रता के बाद भी देश के बारे में सोचने वाली बात श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बंगाल से देश भर में ले कर गए।
 
राज्य की राजनीति को दशकों से कवर करने वाले पुलकेश घोष कहते हैं, "ममता को साल 2024 से पहले पंचायत चुनाव भी देखना है जो 2023 में होने वाले हैं। पंचायत चुनाव में भी उनका मुकाबला बीजेपी से होगा। इसलिए ज़रूरत है कि बंगाल में बीजेपी थोड़ा कमज़ोर हो। जो जगह पश्चिम बंगाल में विपक्ष में बीजेपी ने हथिया ली है, ममता अब उस पर लेफ्ट को दोबारा लाना चाहती है। उन्हें मालूम है कि बीजेपी की असली ताकत बंगाल में आरएसएस का ग्राउंड वर्क है।"
 
केंद्रीय राजनीति में ममता के आरएसएस वाले बयान के मायने
लेकिन क्या आरएसएस की तारीफ़ करके ममता मुसलमानों को नाराज़ नहीं कर रहीं? क्या इस तरह के बयान से राष्ट्रीय राजनीति की उनकी महत्वकांक्षा को झटका नहीं लगेगा?
 
महुआ कहती हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में ममता अपना रुतबा बनाना चाहती हैं, वो बात सही है। लेकिन अभी 2022 ही है।
 
राज्य की राजनीति में बंगाल में इस समय बहुत कुछ हो रहा है। दिल्ली जहाँ आम आदमी पार्टी के पास 70 में से 62 विधायकों का समर्थन है, वहाँ भी बीजेपी पर विधायकों के जोड़-तोड़ के आरोप लग रहे हैं।
 
हर रोज़ ईडी, आईटी, सीबीआई जैसी जाँच एजेंसियां बंगाल में छापेमारी कर रही है। बीजेपी, ममता सरकार में दरार डाल कर उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार घोषित करने की फिराक में है।
 
ऐसे में ममता को अपने ही राज्य में पार्टी और सरकार को मज़बूती से एकजुट रखने का जुगाड़ पहले करना है।
 
इसलिए ऐसे बयानों के सहारे ममता, बीजेपी पर 'काउंटर अटैक' करके बीजेपी को भी संभलने का मौका नहीं देना चाहती और अपनी हर मोर्चे पर लोहा लेने के लिए तैयार रहने वाली छवि ही दिखाते रहना चाहती हैं। ऐसा महुआ का मानना है।
 
महुआ का ये भी मानना है कि ममता बनर्जी की राजनीति को केवल पश्चिम बंगाल के संदर्भ में देखने की ज़रूरत नहीं है।
 
भारत के दूसरे राज्यों में क्या कुछ चल रहा है, और उसमें बाकी मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं और ममता क्या कर रही हैं, इस संदर्भ में भी ममता की राजनीति को देखने की ज़रूरत है।

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