'इसे प्यार नहीं बलात्कार कहते हैं!'

Webdunia
गुरुवार, 7 मई 2015 (15:17 IST)
- पारुल अग्रवाल
लगातार दुप्पटे से अपना मुंह ढंकने की कोशिश करते हुए वो बारबार पूछती है कि 'मेरा चेहरा छिप गया है न?' और मैं लगातार उसे यह विश्वास दिलाने की कोशिश करती हूं कि इंटरव्यू के दौरान उसकी पहचान किसी कीमत पर ज़ाहिर नहीं होगी।
लगभग अंधेरे से एक कमरे में, छिपे मुंह के साथ जब वह कैमरे के सामने बैठी तो बोली, 'दरअसल मेरे मकान मालिक को नहीं पता है कि मैं यह केस लड़ रही हूं, उन्हें पता लग गया तो वह मुझे घर से निकाल देंगे।'
 
पच्चीस साल की रश्मि (यह नाम उन्होंने बीबीसी के इंटरव्यू के लिए अपनाया) का कहना है कि शादी के बाद उनके पति ने कई बार उनके साथ बलात्कार किया और अब वह इंसाफ पाने की अदालती लड़ाई लड़ रही हैं।
 
'मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे। जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वह सेक्स के दौरान मुझे टॉर्चर करते थे। तबियत खराब होने पर अगर कभी मैंने न कहा तो उन्हें वह बर्दाश्त नहीं होता था।'
 
पवित्र बंधन !!! : भारत में 'वैवाहिक बलात्कार' यानी 'मैरिटल रेप' कानून की नजर में अपराध नहीं है। यानि अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के बगैर उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता।
पिछले दिनों केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथीभाई से राज्यसभा में सवाल किया गया कि भारत में 'वैवाहिक बलात्कार' को कानून बनाने के लिए क्या सरकार की ओर से पहल की जाएगी?
 
इसके जवाब में पारथीभाई ने कहा कि, 'वैवाहिक बलात्कार को जिस तरह विदेशों में समझा जाता है उस तरह भारत में लागू करना संभव नहीं क्योंकि हमारी सामाजिक, धार्मिक सोच, आर्थिक स्थितियां, रीति-रिवाज अलग हैं और हमारे यहां विवाह को एक पवित्र-बंधन माना जाता है।'
 
इससे पहले फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रश्मि की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून में बदलाव करना मुमकिन नहीं।
 
हालांकि पारथीभाई के बयान से वैवाहिक बलात्कार पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। नामी वकीलों, महिला अधिकारों के लिए काम करने वालों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के बीच सरकार की इस सोच को लेकर काफी आलोचना हुई। रश्मि अपने केस के जरिए आईपीसी की धारा 375 में संशोधन कर 'वैवाहिक बलात्कार' को दंडनीय अपराध बनाए जाने की लड़ाई लड़ रही हैं।
 
पूजा का बदला : लेकिन रश्मि अकेली ऐसी औरत नहीं जिन्हें लगता है कि शादीशुदा जिंदगी में उनके साथ बलात्कार हुआ। 42 साल की पूजा तीन बेटियों की मां हैं और शादी के 14 साल बाद उन्होंने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दायर किया। वह कहती हैं कि पति से अलग होने की बुनियादी वजह 'जबरन सेक्स' और 'यौन हिंसा' है।
 
पूजा कहती हैं, 'मैं पत्नी थी इसलिए मुझे न कहने का अधिकार नहीं था। पूरे घर का काम और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी मेरी थी। मेरे पति ने मेरे लिए एक नियम बना रखा था। घर में कितना भी काम हो और मैं कुछ भी कर रही हूं, हर रात दस मिनट मुझे उनके लिए तैयार रहना पड़ता था।'
 
'इसके बाद मैं बचा हुआ काम निपटाती थी और फिर सोती थी। थकान भरा शरीर और बेमन से किए जाने वाले सेक्स से मैं धीरे-धीरे ऊबने लगी। एक समय ऐसा आया जब मैं जिंदा लाश की तरह बस लेटी रहती थी, लेकिन तब मेरे पति सेक्स के दौरान और हिंसक हो गए।'
 
पूजा अब अपने पति से अलग रहती हैं। अपनी बेटियों की परवरिश के लिए कोर्ट के जरिए पति से उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं लेकिन वह उन्हें तलाक नहीं देना चाहतीं। वह कहती हैं, 'मैंने पति को तलाक दे दिया तो वह दूसरी शादी कर लेंगे। मैं नहीं चाहती कि जिस तरह उन्होंने मेरे शरीर को इस्तेमाल किया उस तरह वह किसी और की जिंदगी बर्बाद करें। मैं चाहती हूं उन्हें सजा मिले।'
 
'बलात्कारी में फर्क क्यों' : सुप्रीम कोर्ट की वकील और महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली करुणा नंदी सजा के इसी प्रावधान के लिए कानून में बदलाव की बात करती हैं।
 
वह कहती हैं, 'भारत में घरेलू हिंसा के मामले सिविल कोर्ट में निपटाए जाते हैं। घरेलू हिंसा कानून क्रूरता के आधार पर औरत को पति से तलाक लेने की छूट तो देता है, लेकिन पत्नी को नुकसान पहुंचाने और जबरन यौन संबंध बनाने का जो अपराध पति ने किया है उसकी सज़ा उसे कैसे मिलेगी?'
 
'बलात्कार एक अपराध है और बिना रजामंदी के किया गया सेक्स बलात्कार के दायरे में आता है। करने वाला पति है या कोई और इससे कानून पर असर नहीं पड़ना चाहिए।' कई सर्वे और अध्ययन यह साबित करते हैं कि पत्नी के साथ जबरन सेक्स और यौन हिंसा के मामले भारत में हर जगह हैं।
 
साल 2005-2006 में हुए 'नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे-3' के मुताबिक, भारत के 29 राज्यों में 10 फीसदी महिलाओं ने माना कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। 'इंटरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड' की ओर से साल 2014 में सात राज्यों में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक एक-तिहाई पुरुषों ने यह माना कि वह अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं।
 
बदतर हालत :लेकिन सवाल यह है घर की चारदीवारी में पति-पत्नी के अंतरंग क्षणों में क्या हुआ इसकी गवाही कौन दे सकता है? पति यह कैसे साबित कर सकता है कि सेक्स के दौरान पत्नी की रज़ामंदी शामिल थी या नहीं।
 
वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रहे लोगों को कानून के दुरुपयोग का ख़तरा बड़ा लगता है। पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सेव द फैमिली फाउंडेशन की प्रवक्ता ज्योति तिवारी कहती हैं, 'हमने देखा है कि घरेलू हिंसा कानून यानी 498ए का औरतों ने दुरुपयोग किया है।'
 
'महिला आयोग ने भी कहा कि रेप के कई झूठे मामले अदालतों तक पहुंचे हैं और इससे कई जिंदगियां बर्बाद हुई हैं। बेडरूम को अदालतों तक ले जाने की यह कोशिश बहुत खतरनाक साबित होगी।'
 
हालांकि वैवाहिक बलात्कार को कानून के दायरे में लाने की कोशिश कर रहे एडवोकेट अरविंद जैन के मुताबिक किसी कानून के दुरुपयोग का डर अन्याय या इंसाफ न दिए जाने की वजह नहीं हो सकता।
 
वह कहते हैं, 'अगर आप पति को कानूनन अपनी पत्नी के बलात्कार की इजाजत देते हैं तो घर में पत्नी का दर्जा सेक्स वर्कर से भी बदतर हुआ। कम से कम सेक्स वर्कर न तो कह सकती है। पत्नी को तो आपने न कहने का अधिकार भी नहीं दिया। उसकी सुनवाई कहां होगी, क्योंकि कानून आपने बनाया नहीं और इसलिए अदालतें बात सुनेंगी नहीं।'

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