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बिहार में शराब नीति की समीक्षा के लिए तैयार क्यों नहीं नीतीश कुमार?

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BBC Hindi

, शनिवार, 17 दिसंबर 2022 (08:06 IST)
चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, पटना (बिहार) से
"नशा मुक्ति का जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने अभियान चलाया है। आने वाली पीढ़ियों को बचाने के लिए उन्होंने जो बीड़ा उठाया है, मैं उनका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं बधाई देता हूं।"
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत (5 जनवरी, 2017)
 
"हमने साथ दिया है आज भी हम साथ हैं और शराबबंदी के पक्ष में हैं। लेकिन इस तरह की शराबबंदी जिसमें लाखों लोगों को जेल जाना पड़े और पूरा राज्य पुलिस राज्य में बदल जाए, उसकी समीक्षा तो मुख्यमंत्री जी को करनी चाहिए।"
-सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी (15 दिसंबर, 2022)
 
दोनों नेता यूं तो भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। दोनों के नाम में मोदी है। दोनों शराबबंदी के पक्ष में हैं। पर पाँच साल के अंतराल में बिहार के इस क़ानून की तारीफ़ के बाद मामला समीक्षा तक पहुँच चुका है।
 
एक अहम फ़र्क ये भी है कि 2017 में नीतीश बीजेपी के साथ बिहार की सत्ता में थे। वहीं 2022 में जब सुशील मोदी ने शराबबंदी क़ानून की समीक्षा की बात की तो बीजेपी राज्य में नीतीश के ख़िलाफ़ यानी विपक्ष में है।
 
यही वजह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बीजेपी के बयान में राजनीति की बू आ रही है। और वो ये मानने को तैयार नहीं कि बिहार में शराबबंदी क़ानून की समीक्षा की ज़रूरत है।
 
इसके लिए साफ़ शब्दों में उन्होंने भले ही इनकार नहीं किया, लेकिन पिछले दो दिन के बयान यही दर्शाते हैं।
 
16 दिसंबर को नीतीश कुमार ने कहा, "शराब पीकर और भी राज्यों में लोग मर रहे हैं। शराब पीना ग़लत है। हम तो कह रहे हैं जो पिएगा, वो मरेगा। दारू पीकर मरने वालों को हम कोई मुआवज़ा देंगे इसका सवाल ही नहीं उठता।"
 
15 दिसंबर को उन्होंने साफ़ कहा था कि इस क़ानून से राज्य की महिलाएं काफ़ी खुश हैं।
 
शराबबंदी क़ानून
बिहार राज्य में साल 2016 से शराबबंदी कानून लागू है। बिहार में शराब पीने से लेकर इसे ख़रीदने बेचने पर भी पाबंदी है। यहां तक कि कोई व्यक्ति बाहर से भी ख़रीदकर अपने पास शराब नहीं रख सकता है।
 
बिहार में शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए पुलिस और आबकारी विभाग को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।समय और सख़्ती के बावज़ूद भी बिहार में शराबबंदी क़ानून को तोड़ने के मामले कम होने की जगह हर साल बढ़ते जा रहे हैं।
 
ज़हरीली शराब से मौतें
यही नहीं बिहार में ज़हरीली शराब पीकर कई बार लोगों की मौत भी हो रही है। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक क़रीब 300 लोगों की मौत ज़हरीली शराब पीने से हुई है। बिहार के औरंगाबाद में इसी साल ज़हरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हो गई थी।
 
पिछले साल भी अक्टूबर-नवंबर महीने में राज्य के गोपालगंज, सिवान, और चंपारण में एक महीने के अंदर ज़हरीली शराब पीने से 65 से ज़्यादा लोगों की मौत के मामले सामने आए थे।
 
इसमें सबसे नया मामला सारण ज़िले के छपरा का है जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ ज़हरीली शराब से अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग गंभीर रूप से बीमार हैं।
 
इनका इलाज छपरा और पटना के हॉस्पिटल में चल रहा है। आशंका जताई जा रही है इसमें कई लोग बच भी गए तो उनकी आंख की रोशनी ख़त्म हो सकती है।
 
राजस्व का नुक़सान
शराबबंदी की समीक्षा की वकालत करने वाले बिहार को इससे होने वाले राजस्व नुक़सान को भी इसकी एक वजह बताते हैं।
 
नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और अब जेडीयू से अलग हो चुके आरसीपी सिंह का आरोप है कि शराबबंदी से बिहार को हर महीने क़रीब छह हज़ार करोड़ के राजस्व का नुक़सान हो रहा है।
 
विपक्ष में रहते हुए उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शराबबंदी से बिहार को हो रहे राजस्व के नुक़सान का मामला उठा चुके हैं।
 
वहीं बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्वीट में आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार के ही कार्यकाल में बिहार में शराब का टर्नओवर दो सौ करोड़ से चार हज़ार करोड़ तक पहुंचा था।
 
कई लोग ऐसा भी मानते हैं कि बिहार में उन अपराधियों की बड़ी कमाई हो रही है जो शराब का अवैध कारोबार करते हैं। यानी जो राजस्व सरकार के पास पहुंचना था उसका एक बड़ा हिस्सा अपराधियों की जेब में जा रहा है।
 
बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का आरोप है कि इसमें बहुत कमाई है, इसलिए शॉर्टकट में पैसे कमाने के लिए कम उम्र के बच्चे भी शराब की खेप यहां से वहां पहुंचा रहे हैं।
 
यूं तो इससे पहले आरजेडी अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी शराबबंदी को लेकर कई बार सवाल उठा चुके हैं और इसे पूरी तरह फ़ेल बता चुके हैं।
 
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी तो ताड़ी को शराब की कैटेगरी में ही रखने के ख़िलाफ़ हैं।
 
हाल में शराबबंदी क़ानून पर आरजेडी के विधायक और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस मामले की जांच सिटिंग जजों की कमेटी के कराने की मांग की है।
 
इससे पहले वो सदन में नीतीश कुमार के गुस्से को भी ग़लत बता चुके हैं। सुधाकर सिंह कैमूर की रामगढ़ सीट से विधायक हैं। उनके पिता जगदानंद सिंह आरजेडी के मुख्य रणनीतिकारों में गिने जाते हैं और बिहार आरजेडी के अध्यक्ष भी हैं।
 
महिलाओं का फ़ायदा
हालांकि नीतीश कुमार सरकार के इस नुक़सान को दूसरी तरह देखते हैं। वो कई बार कह चुके हैं कि शराबबंदी से कई परिवारों का जीवन बेहतर हुआ है। इससे महिलाओं के ऊपर घरेलू हिंसा कम हुई है और लोग खान-पान या बच्चों की पढ़ाई पर अच्छा ख़र्च कर पा रहे हैं।
 
नीतीश कुमार शराबबंदी के फ़ैसले को लेकर काफ़ी भावुक भी नज़र आते हैं। बुधवार को बिहार विधानसभा में शराबबंदी के मुद्दे पर वो बीजेपी पर बरसते भी नज़र आए थे।
 
वो कई बार शराब पीने पर पाबंदी को गांधी जी की इच्छा से भी जोड़ते रहे हैं। लेकिन यह भी माना जाता है कि बिहार में महिलाएं नीतीश कुमार के लिए हमेशा से बड़ा बोट बैंक रही हैं। साल 2006 में नीतीश कुमार ने राज्य में महिलाओं के लिए साइकिल योजना की शुरुआत की थी।
 
पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण की घोषणा करने वाला भी बिहार ही था। उसके बाद ही दूसरे राज्यों में लागू हुआ।
 
माना जाता है कि इस वजह से महिलाओं ने बड़ी संख्या में नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया था। साल 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार में महिला मतदाताओं ने पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा मतदान भी किया था।
 
महिलाओं का साथ
साल 2016 में नीतीश सरकार ने शराबबंदी क़ानून लागू किया था और इसके पीछे भी वो महिलाओं की मांग ही बताते हैं। नीतीश कुमार शराबबंदी के पीछे पुरुषों का शराब पीकर घर आना और झगड़े करना, बड़ी वजह बताते हैं।
 
सीएसडीएस के संजय कुमार बताते हैं, "आंकड़ों से दिखता है कि शराबबंदी की शुरुआत में नीतीश कुमार के पक्ष में महिला वोटरों ने वोटिंग की थी। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में ऐसा नज़र नहीं आ रहा है।"
 
जनता दल यूनाइटेड-बीजेपी गठबंधन को सबसे बड़ी जीत साल 2010 में मिली थी। तब गठबंधन को 39.1 फीसदी मत मिले थे।
 
सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक़ 2010 के चुनाव में एनडीए को 39 प्रतिशत महिलाओं का वोट मिला था, जो उनके औसत वोट जितना ही था। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के राजद से हाथ मिलाया और प्रभावी जीत दर्ज की।
 
उस चुनाव में 41.8 फीसदी मतों के साथ वो सत्ता में आए। इस चुनाव में भी गठबंधन को, जिसका चेहरा नीतीश कुमार ही थे, 42 फीसदी महिलाओं का ही वोट मिला।
 
शराबबंदी के बाद महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध?
शराबबंदी के पक्ष में नीतीश कुमार अक्सर यह भी कहते हैं कि इससे महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध कम हुए हैं।
 
गुरुवार को भी नीतीश ने कहा कि 'पहले शराब पीकर लोग आते थे और घर में महिलाओं के साथ मारपीट करते थे, हमने महिलाओं की मांग पर शराबबंदी की है, वो इससे बहुत खुश हैं।'
 
दूसरी तरफ एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो 2016 में जिस साल शराबबंदी लागू हुई उस साल महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध कम मामले सामने आए थे। लेकिन बाद में ऐसे मामले बढ़ते गए।
 
भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर 4 फ़ीसदी हो गया था।
 
लेकिन फिर वह 2019 में बढ़कर 4।6 फ़ीसदी पर पहुंच गया। इस हिसाब से भारत में बिहार राज्य महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में आठवें पायदान पर पहुँच गया।
 
हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि सरकारी योजनाओं और स्वयं सहायता समूहों की वजह से महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं, इसलिए अब अपने ख़िलाफ़ होने वाले अपराध को दर्ज कराने लगी हैं।
 
राजनीतिक नुक़सान
बिहार की राजनीति पर पकड़ रखने वाले जानकार मानते हैं कि कुढ़नी उप-चुनाव में शराबबंदी क़ानून नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ गया।
 
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी ने कुढ़नी विधानसभा के नतीजों के बाद बीबीसी से बातचीत में कहा था, "शराबबंदी के बाद गिरफ़्तार किए गए लोगों में बड़ी संख्या कमज़ोर तबके के लोगों की है। पिछड़े वर्ग के लाखों लोग जेल में हैं और यह नाराज़गी कुढ़नी में हुई वोटिंग में भी रही है।"
 
इतना ही नहीं बिहार में आबकारी विभाग और पुलिस ने शराबबंदी क़ानून को तोड़ने के जुर्म में अब तक साढ़े छह लाख से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया है। इनमें क़रीब चालीस हज़ार लोग फ़िलहाल जेल में हैं।
 
इन मामलों में सज़ा की दर भी काफ़ी कम है। इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पुलिस पकड़े गए लोगों में से पांच फ़ीसदी से कम को सज़ा दिला पाती है।
 
इस तरह के लाखों मामलों में पुलिस, आरोपी, गवाह या सूचना देने वाले की कोर्ट में गवाही होती है। इस तरह से कोर्ट के समय का बर्बाद होना भी बिहार में एक बड़ी समस्या बताई जाती है।
 
ज़हरीली शराब पीकर मरने वाले हों या अवैध शराब के कारोबार में जेल जाने वाले, इनमें बड़ी तादाद ग़रीबों और दलितों की होती है। सारण में हुई घटना में भी ऐसे लोग सबसे ज़्यादा पीड़ित हुए हैं। इस वजह से धीरे धीरे नीतीश कुमार को इसका राजनीतिक नुक़सान हो रहा है।
 
पटना में पीटीआई के पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, "शराबबंदी क़ानून में लोगों की गिरफ़्तारी के अलावा जो लोग ज़हरीली शराब से मरते हैं, उन्हें कोई सरकारी मुआवज़ा भी नहीं मिलता है क्योंकि शराब पीना ग़ैर-क़ानूनी है। ये सारी बातें अब बैकफ़ायर कर रही हैं। इसलिए नीतीश कुमार को ख़ुद इस बहस में उतरना पड़ा है।"
 

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