वापसी के बाद: राहुल के भाषण की 4 कमियां

Webdunia
सोमवार, 20 अप्रैल 2015 (15:58 IST)
- सिद्धार्थ वरदराजन (वरिष्ठ पत्रकार)

भारत की राजनीति रविवार के दिन उस वक्त और दिलचस्प हो गई जब कांग्रेस नेतृत्व ने भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की घोषणा कर दी।


नरेंद्र मोदी सरकार जमीन और गांव-देहात की मुश्किलों के इर्द गिर्द उभर रहे आंदोलन के सामने कमजोर दिख रही है। लेकिन ये भी साफ नहीं हो पा रहा कि कांग्रेस इस नाजुक स्थिति का किस तरह से फायदा उठा पाएगी।

कांग्रेस के भविष्य के नेता के तौर पर देखे जा रहे राहुल गांधी ठीक ऐसे वक्त गैर-हाजिर हो गए जब ये मुद्दा गरमा रहा था। राहुल की गैरहाजिरी की वजह अभी तक साफ नहीं हो पाई है। पढ़ें राहुल के भाषण की 4 कमियां...

1. बहाव और जुड़ाव की कमी : रविवार की रैली का समय राहुल की वापसी के लिहाज से तय किया गया था, लेकिन जो भाषण उन्होंने दिया, उसमें एक तरह का भटकाव था, बहाव जैसी कोई चीज नहीं थी और न ही सोनिया गांधी की तरह भावनात्मक अपील थी।

2. मुद्दा मनमोहन सरकार बनाम मोदी सरकार नहीं : रविवार की किसान रैली में राहुल के भाषण की सबसे बड़ी कमी थी कि इस बारे में देर तक बोलते रहे कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार किस तरह से मोदी सरकार से बेहतर थी।

यूपीए के शासनकाल में नरेगा जैसी योजनाएं और किसानों के लिए कर्ज माफी जैसे सराहनीय कदम उठाए गए थे, लेकिन इसके बावजूद मनमोहन सिंह का दौर भारतीय किसानों के लिए कोई सुनहरा वक्त नहीं था।

ये बात कांग्रेस से जुड़ी रहेगी। और ये भी कि 2014 चुनावों में यूपीए वो हार गई थी। इस बात का अब कोई तुक नहीं बनता कि उन्हीं मुद्दों को बार-बार उठाया जाए। जिस तरह से मोदी को ये समझना होगा कि उनकी सरकार के राजनीतिक भविष्य की गारंटी हमेशा बीते हुए कल पर नहीं खड़ी हो सकती, ठीक उसी तरह राहुल गांधी को भी ये समझना चाहिए कि अतीत की बाते करके वे कांग्रेस को कहीं नहीं ले जा सकते।

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3. राजनीतिक विरोध का खाका नहीं दिया : न तो राहुल और न ही सोनिया गांधी ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर कांग्रेस के विरोध का राजनीतिक खाका पेश किया। हालांकि एक सच ये भी है कि रैली करने के पीछे जाहिर है कांग्रेस की मंशा इस मु्द्दे को आगे ले जाने की है।

अगर सोनिया गांधी का भाषण सक्रिय राजनीति से रिटायर होने की कगार पर खड़ी एक नेता की तरह नहीं था, ठीक वैसे ही राहुल के भाषण से भी ऐसे संकेत मिले कि कांग्रेस का भविष्य अभी भी सुरक्षित हाथों में पहुंचने से थोड़ी दूर है।

4. राजनीति शौक नहीं, मोदी छुट्टी नहीं लेते :  राहुल के भाषण से ये स्पष्ट हो जाता तो अच्छा था कि राजनीति कोई शौक या विलासिता की चीज नहीं है। क्योंकि, असल में तो राजनीति एक जोखिम भरा खेल है।

मोदी कभी छुट्टी नहीं लेते। उनकी विदेश यात्राएं भी आधिकारिक होती हैं। वे अपनी पार्टी के विरोधियों से संघर्ष करने में यकीन रखते हैं। संसद के आगामी सत्र में ये जाहिर हो जाएगा कि कांग्रेस के वारिस नेतृत्व की जिम्मेदारियों को लेने में किस हद तक गंभीर हैं।
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