....वो 15 मिनट जिसने एक पिता की ज़िंदगी बदल दी

Webdunia
मंगलवार, 12 सितम्बर 2017 (14:12 IST)
- फ़ैसल मोहम्मद अली (गुरुग्राम)
755 से 8.10 के बीच का वो वक़्त- वो 15 मिनट; जब वो पिता को बाय कहकर स्कूल गेट से भीतर गया और फिर जब रायन इंटरनेशनल स्कूल से उसकी मां को फ़ोन आया!
 
'स्कूल रिसेप्शन से हमसे जूनियर विंग की सुपरवाइजर से बात करने को कहा गया, जिन्होंने बताया कि....बच्चा हमें बाथरूम के बाहर मिला है और उसको बहुत ब्लीडिंग हो रही है और हम उसे अस्पताल ले जा रहे हैं....।'
 
उस क्षण को याद करते हुए बरुण चंद्र ठाकुर कहते हैं कि उन्हें लगा कि 'कहीं अंदरूनी चोट लग गई होगी और नाक से ख़ून आ रहा होगा लेकिन मां को शायद अहसास हो गया था और वो रोने लगी थी...।'
 
दिल्ली से सटे शहर गुरुग्राम के प्राइवेट रायन इंटरनेशनल स्कूल में शुक्रवार सुबह एक बच्चे का बाथरूम में मर्डर कर दिया गया था जिसके आरोप में पुलिस ने स्कूल के एक बस कंडक्टर को गिरफ्तार किया है।
 
गाड़ी में बरुण ठाकुर जब स्कूल की ओर जा रहे थे तब उन्हें स्कूल से फिर फ़ोन आया कि उनके बच्चे को आरटिमिस अस्पताल ले जाया जा रहा है और वो वहां पहुंचे।
 
कुछ देर पहले ही सुप्रीम कोर्ट पर अपनी याचिका की सुनवाई के बाद दूसरी कई जगहों के चक्कर लगाते घर पहुंचे बरुण ठाकुर के चेहरे पर एक साथ कई भाव तैर रहे थे- खोने का और उस दिन को याद करने का दुख, जीवन संगिनी पर जो बीत रहा है उसको न कम कर पाने का दुख, और बेपनाह थकान।
कहते हैं 'इंटरव्यू दे-देकर मैं बहुत थक गया हूं लेकिन लड़ाई जारी रखनी है तो  करना होगा।' कमरे की पलंग पर पड़ा बिना चादर का फूलदार गद्दा, तकियों पर आधे चढ़े कवर और उस पर फैले बेतरतीब कपड़े साफ़ बयां कर रहे हैं कि उस घर पर क्या बीत रही है जिसने अपना सात साल का बच्चा खो दिया है।
 
मेरी तरफ़ देखते हुए वो कहते हैं कि जब वो इमरजेंसी वॉर्ड में पहुंचे तो डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके बेटे की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले हो गई थी। लंबी सांस लेते हुए वो कहते हैं 'जिस तरह की चोट का निशान था अगर वो मेरा बच्चा न होता तो मैं देखने नहीं गया होता।' 'इतना बुरा था ज़ख़्म कि कोई आदमी एक बार देखने के बाद दोबारा देखने की हिम्मत नहीं कर सकता था।'
 
वो कहते हैं कि जब कोई इस तरह के स्कूल में अपने बच्चे को देता है तो अच्छे भविष्य की उम्मीद के साथ-साथ एक और बात जो सामने होती है- वो है सुरक्षा कि 'बच्चा जो छह सात घंटा स्कूल में रहेगा तो सेफ़ रहेगा।'
 
बेटे का स्कूल में दाख़िला करवाने में बरुण ठाकुर को बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी क्योंकि 'वो बहुत होशियार था।' 'बड़ा हंसमुख भी था, उस दिन स्कूल जाते वक़्त भी वो बहुत ख़ुश था, उसके दोस्त का बर्थ-डे था उस दिन,' पुरानी कुछ यादें शायद उनकी आंखों के सामने घूम गई हों!
 
फिर जैसे कटु सत्य उन्हें झझकोरता है, वो कहते हैं, 'मेरा बच्चा तो अब वापस नहीं आएगा लेकिन मैं चाहता हूं कि कम से कम किसी और के बच्चे को साथ ऐसा न हो।' सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उन्होंने मांग भी की है कि ऐसे दिशा निर्देश तय हो और ऐसी व्यवस्था क़ायम हो कि इस तरह के मामलों में ज़िम्मेदारी निर्धारित की जा सके।
 
मैं पूछता हूं कि उनकी बेटी भी रायन स्कूल में ही पढ़ती है उसके बारे में क्या सोचा है उन्होंने?
उनका जवाब कुछ उलझा-उलझा सा है, ऐसी हालत में किसी भी मां-बाप की तरह, 'उस स्कूल में कम से कम तो नहीं रहने दूंगा लेकिन किसी दूसरे स्कूल में भी देने में डर लगेगा।'
 

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