जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमले की सैटेलाइट तस्वीरों की हकीकत: फैक्ट चेक

Webdunia
रविवार, 10 मार्च 2019 (12:35 IST)
इन दो सैटेलाइट तस्वीरों को हमले से पहले और हमले के बाद की तस्वीर बताया गया है
मोदी सरकार के मंत्री गिरीराज सिंह ने एक बड़े हिन्दी न्यूज चैनल का वीडियो ‘भारतीय वायु सेना के हमले में ध्वस्त हुए तथाकथित चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कैंप’ का बताते हुए शेयर किया है।

गिरीराज सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा, “ये तस्वीरें साफ़-साफ़ बता रही हैं कि भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी आतंकी ट्रेनिंग कैंप के परखच्चे उड़ा दिए”।

इस वीडियो में दो सैटेलाइट तस्वीरें दिखाई गई हैं जिनमें से एक तस्वीर हमले से पहले (23 फरवरी) की बताई गई, जबकि दूसरी तस्वीर को हमले के बाद (26 फरवरी) का बताया गया है।
 
हज़ारों लोग सोशल मीडिया पर उनकी इस वायरल वीडियो को शेयर कर चुके हैं। जबकि असंख्य ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर चैट, व्हॉट्सऐप, ट्विटर और फेसबुक पर इन सैटेलाइट तस्वीरों को ‘भारतीय हमले में जैश के कैंप में हुए नुकसान’ के सबूत के तौर पर पेश किया है।

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 से ज़्यादा जवानों को खोने के बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमला किया था।

भारतीय वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ये साफ कर चुके हैं कि ‘वायु सेना ने दिए गए अधिकांश लक्ष्यों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया, लेकिन इस हमले में कितने लोग मरे ये गिनना उनका काम नहीं है।’

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह समेत कई अन्य बीजेपी नेता ये दावा कर चुके हैं कि इस हमले में 200 से ज़्यादा चरमपंथी मारे गये और जैश के कैंप को भारी नुकसान हुआ है।

लेकिन इसे सही साबित करने के लिए दक्षिणपंथी रुझान वाले अधिकांश ग्रुप्स में और केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह द्वारा जो दो सैटेलाइट तस्वीरें शेयर की गई हैं, उनसे जुड़े दावे बिल्कुल गलत हैं।

ये दो सैटेलाइट तस्वीरें रॉयटर्स द्वारा जारी की गईं उन तस्वीरों से भी मेल नहीं खातीं, जिन्हें भारतीय मीडिया ने एक बार फिर एयरस्ट्राइक में हुई क्षति को दिखाने के लिए इस्तेमाल किया है।

 
'ज़ूम अर्थ' वेबसाइट के संस्थापक पॉल नीव के अनुसार ये इस इमारत के निर्माण के समय की तस्वीर लगती है
तो कहाँ की हैं ये तस्वीरें...

रिवर्स इमेज सर्च से हम कुछ ऐसे फेसबुक और ट्विटर यूजर्स तक पहुँचे जिन्होंने इन सैटेलाइट तस्वीरों के ‘लाइव कोऑर्डिनेट्स’ भी शेयर किए हैं। यानी ये बताया है कि नक्शे पर ये जगह कहाँ स्थित है।

गूगल मैप्स पर जब हमने इसे खोजा तो पता चला कि ये न्यू बालाकोट के पास बसे जाबा में स्थित किसी इमारत की सैटेलाइट तस्वीर है।

भारतीय वायु सेना के हमले के बाद कुछ भारतीय इंटरनेट यूजर्स ने इस इमारत को नये नाम देने की कोशिश की है। फिलहाल इस लोकेशन पर ‘जैश मदरसा’ और ‘जैश ट्रेनिंग स्कूल’ भी लिखा हुआ दिखाई दे रहा है।

आशीष पांडे नाम के ट्विटर यूज़र ने केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह को ट्वीट किया कि उन्होंने स्कूल का नाम बदल दिया है
तस्वीरें कब की हैं?

गिरीराज सिंह के ट्वीट में जो वीडियो दिख रहा है, उसमें टीवी चैनल ने दावा किया है कि गूगल मैप पर दिख रही हमले से पहले की सैटेलाइट तस्वीर 23 फरवरी की है और दूसरी तस्वीर हमले के बाद की है। लेकिन ये दोनों ही दावे गड़बड़ हैं।

अपनी पड़ताल में बीबीसी ने पाया कि दूसरी तस्वीर ‘ज़ूम अर्थ’ नाम की वेबसाइट से ली गई है जो कि नासा और माइक्रोसॉफ्ट के बिंग मैप्स की मदद से सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती है।

इस वेबसाइट के संस्थापक हैं पॉल नीव जो लंदन में रहते हैं। पॉल नीव से बीबीसी संवाददाता प्रशांत चाहल ने इन तस्वीरों के बारे में बात की।

पॉल ने बताया, “जो तस्वीर सोशल मीडिया पर हवाई हमले के बाद ध्वस्त हुई बिल्डिंग की बताई जा रही है, वो एक पुरानी तस्वीर है।”

पॉल ने साफ कहा, “सिर्फ नासा ही रोजाना नई तस्वीरें अपडेट करता है। बिंग मैप्स की तस्वीरें रोज अपडेट नहीं होतीं। ऐसा करना मुश्किल काम है क्योंकि सभी सैटेलाइट तस्वीरें अपडेट करने में सालों का वक्त लगता है”।

लेकिन ये वायरल तस्वीर कितनी पुरानी होगी? इसके जवाब में पॉल ने कहा, “मैं इतना कह सकता हूँ कि ये कुछ दिन या महीनों नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी तस्वीर होगी। मेरे ख्याल से इस सैटेलाइट तस्वीर में दिख रही इमारत निर्माणाधीन है”।

‘ज़ूम अर्थ’ वेबसाइट के संस्थापक पॉल नीव ने सार्वजनिक तौर पर एक ट्वीट करके भी ये दावा किया है कि इन तस्वीरों का एयरस्ट्राइक से कोई लेना-देना नहीं है।

दूसरी तस्वीर और सवाल

अब बात पहली तस्वीर की जो कि गूगल मैप्स से ली गई एक सैटेलाइट तस्वीर है।

ये पाकिस्तान के जाबा में स्थित उसी जगह की है लेकिन इमारत के हालात को देखकर लगता है कि ये थोड़ी हालिया तस्वीर है।

टीवी चैनल ने दावा किया था कि ये सैटेलाइट तस्वीर एयरस्ट्राइक से पहले (23 फरवरी) की है।

लेकिन इस दावे पर कई सोशल मीडिया यूजर अब ये सवाल उठा रहे हैं कि अगर ये तस्वीर 23 फरवरी की है, तो उसके बाद गूगल मैप पर इस इमारत की दशा क्यों नहीं बदली?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कि केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह के दावे पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं।

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