अफगानिस्तान: फिर होगा तालिबान का राज?

Webdunia
बुधवार, 31 दिसंबर 2014 (10:56 IST)
- रहीमुल्लाह यूसुफजई (पेशावर से)

अफगान तालिबान ने सोमवार को ये घोषणा कर आने वाले दिनों में टकराव की नई आशंकाओं को हवा दी कि वो विदेशी सेनाओं के जाने के बाद अफगानिस्तान में 'शुद्ध इस्लामी प्रणाली' लागू करेंगे।


रविवार को अंतरराष्ट्रीय सहायता सुरक्षा बल (आईएसएएफ़) के युद्धक मिशन को खत्म करने की घोषणा पर तालिबान ने कहा कि नैटो बल हार गए हैं और बीते 13 साल में कुछ हासिल किए बिना ही उन्होंने अपना 'झंडा लपेट लिया है।'

तालिबान का कहना है कि वो 'बाकी बचे हमलावरों को खदेड़कर एक शुद्ध इस्लामी राज्य की स्थापना करेंगे।' ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का कब्जा हो सकता है? और यदि अफगानिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो इसका भारत और पाकिस्तान पर क्या असर होगा?

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अफगानिस्तान में फिलहाल पहले वाली स्थिति नहीं है जिसमें तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।

कैसा होता है तालिबान के साए में रहना?
उस समय अफगन मुजाहिद्दीन के कई नेता थे और वो आपस में बंटे हुए थे। वे आपस में लड़ रहे थे जिससे तालिबान को मौका मिल गया। यहां के लोग मुजाहिद्दीन और उनकी लड़ाइयों से तंग आ चुके थे। सफर करना मुश्किल हो गया था। सड़कों पर चेक-प्वाइंट थे जहां पैसे वसूल किए जाते थे। मगर अब अफगानिस्तान में हालात बदल चुके हैं। अभी यहां सरकार है और वो काफी मजबूत हो गई है।


मजबूत सरकार:
अमेरिकी इतिहास का 'सबसे लंबा युद्ध खत्म'

अब अफगानिस्तान की अपनी सेना है जिसमें साढ़े तीन लाख सैनिक हैं। फिर अमेरिकी सेना है। नैटो के भी तकरीबन 13 हजार सैनिक अफगानिस्तान में बने रहेंगे। उनके प्रशिक्षण और मदद से अफगान फौज इतनी काबिल हो पाएगी कि तालिबान से निपट सके।

अफगानिस्तान के पास बॉर्डर मिलिशिया है, उसकी अपनी वायु सेना भी बन गई है। अभी भले ये छोटी है लेकिन उसमें भी इजाफा हो रहा है। इनके पास हर तरह के हथियार हैं। कमी बस एक बात की है कि इनका प्रशिक्षण अभी पूरी नहीं हुआ है। वैसे अमेरिका और पश्चिमी देश अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा नहीं होने देंगे। देखा जाए तो तालिबान के कब्जे में अभी एक शहर भी नहीं है।

तालिबान को कहां से ताकत मिलती है?
भारत पर असर : भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निमाण के लिए लगभग ढाई अरब डॉलर का निवेश किया है। इसीलिए भारत कभी नहीं चाहेगा कि वहां पर तालिबान मजबूत हो। यही वजह है कि भारत अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की मौजूदा सरकार की पुरजोर हिमायत करेगा।

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इस बात की संभावना नहीं है कि तालिबान वहां से मुक्त होकर भारत या भारत प्रशासित कश्मीर पर हमला करेगा। वे अफगानिस्तान में ही व्यस्त रहेंगे।

पाकिस्तान पर असर : ये सही है कि पाकिस्तान पर आरोप लगते रहे हैं कि वो अफगानिस्तान में तालिबान को एक पूंजी मानता है। लेकिन अब पाकिस्तान में सरकार और विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और उनकी सरकार बन गई तो पाकिस्तानी तालिबान काफी मजबूत हो जाएंगे और वो भी चाहेंगे कि पाकिस्तान में भी वे ऐसा करें।

क्या पाकिस्तान हमेशा के लिए बदल जाएगा?
इससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ेंगी। पेशावर आर्मी स्कूल हमले में जिस तरह बच्चों को मारा गया, उसके बाद तो तालिबान खासतौर पर पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ यहां काफी नफरत है। पाकिस्तान में ये भी कहा जाता है कि अफगान तालिबान तकरीबन इसी तरह के लोग हैं।

आवाज उठाएं अफगान औरतें: रूला गनी
हालांकि पाकिस्तान ये तो चाहता है कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार में शामिल हो जाए और वहां पर गठबंधन सरकार बन जाए। लेकिन पाकिस्तान शायद ये नहीं चाहेगा कि वहां पर केवल तालिबान की सरकार हो। बाकी कोई उसमें शामिल ना हो।
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