ये हैं भारतीय रेल के रखवाले

BBC Hindi
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014 (12:14 IST)
- विकास पांडे

इलाहाबाद में तपती गर्मी में मैं रामदीन के साथ रेल ट्रैक के किनारे-किनारे चल रहा था। वे तल्लीनता से अपने काम के बारे में बता रहे थे। उनके दूसरे साथी भी अपने-अपने कामों में व्यस्त थे।


बगल के ट्रैक से ट्रेन गुजर रही थी और रामधीन के दोस्त बेसुध अपने काम में लगे थे। अचानक रामदीन मुझे थोड़ा इंतज़ार करने को कहते हुए काम में जुट गए।

विकास पांडे की रिपोर्ट : मैं पसीना पोंछते हुए उन्हें लोहे की भारी पटरियों को उठाते हुए देख रहा था। वे पुरानी पटरियों को नई पटरियों से बदल रहे थे। रामदीन और उनके साथी विशाल भारतीय रेल तंत्र के अंदर उन दो लाख कामगारों में शामिल हैं जो 110,000 किलोमीटर में फैले रेलवे ट्रैक की देखभाल करते हैं।

सेना की तरह : भारतीय रेल के प्रवक्ता अनिल सक्सेना का कहना है कि ट्रैकमैन भारतीय रेल के रीढ़ की हड्डी है जो सेना के जवान की तरह काम करते हैं। वे बताते हैं कि ठंड हो या गर्मी यहां तक कि खराब मौसम में भी ये ट्रैकमैन रेलवे ट्रैक पर अपनी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं।

बगल की ट्रैक पर गुजरते हुए ट्रेन को देखकर हुई मेरी चिंता पर रामदीन कहते हैं कि घबराइए नहीं कुछ नहीं होगा। हम सालों से यही काम करते आ रहे हैं। हम जानते हैं कि सुरक्षित क्षेत्र कौन-सा है और ट्रैक पर ट्रेन कैसे चलती है।

वे आगे बताते हैं, 'आप लोग सफ़र के दौरान ट्रेन के डिब्बों में जब आराम से सो रहे होते हैं तब आप लोगों में से बहुतों को नहीं पता होता हैं कि आप लोगों को सुरक्षित रखने के लिए हम कितनी कड़ी मेहनत करते हैं।'

प्रसाद का कहना है कि उन्हें अपने काम पर गर्व है लेकिन वे चाहते हैं कि लोग उनके काम के बारे में जाने कि ट्रैकमैन भारतीय रेल की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने में कितनी बड़ी भूमिका निभाते हैं।

खतरा : बच्ची लाल बातचीत में बताते हैं कि कई बार उन लोगों को वीरान जगहों पर भी काम करने जाना पड़ता है।

वे बताते हैं, 'एक बार ट्रैक की मरम्मत करने के लिए मुझे जंगली इलाके में जाना पड़ा था और वहीं रात में रुकना पड़ा था। हमें वहां जंगल से जानवरों की आवाजें सुनाई पड़ रही थी। हम लोगों के बीच मजबूत भाईचारा है। हम सब मुश्किल वक्त में एक दूसरे का साथ देते हैं। हम कई दिनों तक अपने परिवार से दूर रहते हैं लेकिन एक दल में काम करने पर हम उदास नहीं होते।'

ट्रैकमैन ट्रैकों की देखभाल, उनका निरीक्षण और मरम्मत करते हैं।

एक वरिष्ठ इंजीनियर ने मुझे बताया कि रेलवे विभाग ट्रैकों की देखभाल को तेजी से आधुनिक बना रहा है, लेकिन ट्रैकमैन की भूमिका काफी अहम है और यह सच्चाई कभी नहीं बदलेगी।

वे बताते हैं, 'कोई मायने नहीं रखता कि आपने कितनी आधुनिक तकनीक इस्तेमाल की है। हम ट्रैकमैन को नहीं हटा सकते। वे हमारे आंख और कान हैं। वे दिन में कम से कम एक बार ट्रैक के एक-एक इंच का निरीक्षण करते हैं।'

सुविधाएं : रेलवे उन्हें स्वास्थ्य और आवासीय सुविधांए मुहैया कराता है लेकिन वेतन के रूप में उन्हें आज भी बहुत कम पैसा मिलता है। एक नया बहाल हुआ ट्रैकमैन महीने का 15 हजार रुपया कमाता है।

रेल विभाग के एक पूर्व अधिकारी जयगोपाल मिश्रा का कहना है, 'वे रेलवे के काम में सबसे आगे रहने वाले लोग हैं और उनका काम भी खतरनाक है। उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है और दूसरे कामों में उन्हें नहीं लगाया जाना चाहिए। वाकई में उन्हें बहुत कम पैसा मिलता है।'

वेतन के मसले पर प्रसाद का कहना है कि हमारा काम बहुत मुश्किल है और हर कोई भारी वजन नहीं उठा सकता और ना ही तेज रफ्तार से गुजरती ट्रेन पास खड़ा हो सकता है लेकिन हम अपनी काम की अहमियत जानते हैं कि लाखों लोगों की जिंदगी हम पर निर्भर है।

प्रसाद बेहतर वेतन मिलने की उम्मीद करते हैं लेकिन ये भी मानते हैं कि उन्हें स्वास्थ्य सुविधा जैसा फायदा मिला हुआ है।

समस्या : इंजीनियर ने मुझे बताया कि नौकरी के दौरान कुछ ट्रैकमैन घायल भी होते हैं, जिन्हें रेलवे मुआवजा देता है और उनका इलाज कराता है। लेकिन उन्होंने यह बात मानी कि हम उनके लिए और भी कुछ कर सकते हैं मसलन उनकी काउंसिलिंग करना और ट्रैक पर काम के लायक नहीं होने पर और अधिक प्रशिक्षण देना।

इसमें से कुछ रेलवे की ओर से हाथ से सिग्नल देने के लिए भी तैनात किए जाते हैं। अभी भी कई इलाकों में सिग्नल सिस्टम स्वचालित नहीं हो पाया है।

मैं इलाहाबाद में ऐसे ही एक शख्स अरविंद कुमार से मिला। अपने साथियों की तरह वे भी अपने काम को लेकर खुश थे। मैंने जब उनसे पूछा कि खराब मौसम में उन्हें काम करने में परेशानी नहीं होती। उनका कहना है कि उनका काम ऐसा है कि उन्हें हर हाल में ट्रैक के पास रहना होता है।

सम्मान : वे कहते हैं, 'अधिक गर्मी और बारिश के मौसम में हमें अधिक सतर्क रहना होता है क्योंकि ऐसे मौसम में ट्रैक के क्षतिग्रस्त होने की संभावना ज्यादा होती है।' उनका घर पड़ोस के बिहार राज्य में है। वे अपने परिवार को बहुत याद करते हैं। उन्होंने अधिकारियों से ट्रांसफर करने की गुजारिश भी की है।

अरविंद की उम्मीदें ट्रैकमैन के काम को बेहतर ढंग से परिभाषित करती है। वे कहते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरा प्रयास करते हैं, फिर भी दुर्घटनाएं होती है लेकिन हम यात्रियों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।

उनका कहना है कि हम भी सेना के जवान की तरह सम्मान से याद रखे जाना चाहते हैं। आप नहीं जानते कि कब किसी दुर्घटना में हमारी मौत हो जाए। सुरक्षा के तमाम इंतजाम के बाद भी ये एक खतरनाक काम है।
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