सरोज सिंह (बीबीसी संवाददाता)
'एक बात बताओ दीदी, कोरोनावायरस रात में ही सबसे ज़्यादा एक्टिव होता है क्या?' दफ़्तर से देर रात घर लौटते हुए राशि ने मुझसे पूछा। रात के क़रीब साढ़े दस बज रहे थे। मैं खाना खाने के बाद घर के बाहर टहल रही थी और राशि देर शाम की नौकरी ख़त्म कर घर लौट रही थी। रास्ते में पुलिस वाले से राशि की कुछ बक-झक हो गई।
दिल्ली सरकार ने 6 अप्रैल से 30 अप्रैल तक रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ़्यू लगाने का एलान किया है। हालांकि इसमें ज़रूरी सेवाओं को छूट दी गई है। बुधवार को पंजाब सरकार ने भी नाइट कर्फ़्यू का एलान किया। वहां पर नाइट कर्फ़्यू रात 9 बजे से ही शुरू हो जाएगा।
दिल्ली से पहले महाराष्ट्र सरकार ने रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक के लिए नाइट कर्फ़्यू लगाया है। देश के कई दूसरे राज्यों ने पहले भी ऐसा किया है। पिछले साल केंद्र सरकार ने भी नाइट कर्फ़्यू के आदेश जारी किए थे। लेकिन नाइट कर्फ़्यू लगाने के पीछे लॉजिक क्या है? क्या राज्य सरकारें एक दूसरे को देखकर ऐसा कर रही हैं या केंद्र सरकार की सलाह पर, ये किसी राज्य सरकार ने नहीं बताया।
बीबीसी मराठी संवाददाता मयंक भागवत के मुताबिक़ महाराष्ट्र सरकार की दलील है कि लोग रात में बड़ी संख्या में घर से बाहर एंजॉय करने निकलते हैं, नाइट क्लब जाते हैं, रेस्तरां में खाना खाने निकलते हैं। सरकार लोगों को ऐसा करने से मना करने के लिए नाइट कर्फ़्यू लगा रही है।
दिल्ली सरकार के आर्डर में इस फ़ैसले के पीछे कोई दलील नहीं दी गई है। बीबीसी ने दिल्ली सरकार से इस बारे में सवाल किया जिसका आधिकारिक जवाब नहीं आया है। नाम ना छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि दिल्ली के उप-राज्यपाल की अध्यक्षता में डीडीएमए की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया।
लेकिन नाइट कर्फ़्यू के पीछे लॉजिक या तर्क क्या है इस पर चर्चा हुई या नहीं, इस बारे में कुछ नहीं कहा गया। आम जनता के मन में भी नाइट कर्फ़्यू को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। बीबीसी ने तीन जानकार डॉक्टर्स से नाइट कर्फ़्यू के लगाने के पीछे तर्क क्या है? इस बारे में पूछा। तीनों के जवाब बिलकुल अलग हैं।
पहले जानकार हैं- एम्स में कम्यूनिटी मेडिसिन के प्रोफे़सर डॉक्टर संजय राय
'कोरोनावायरस पर क़ाबू पाने का नाइट कर्फ़्यू बहुत प्रभावशाली तरीक़ा नहीं है। ये केवल बताता है कि सरकारें चिंतित हैं और सरकार कुछ ना कुछ करती हुई दिखना चाह रही है। ये केवल जनता के आंखों में धूल झोंकने वाली बात है।
कोरोना तीन तरीके से फैलता है। सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण ड्रॉपलेट की वजह से फैलता है। जब हम बात करते हैं, छींकते हैं, पास जाकर एक दूसरे से बात करते हैं तो ड्रापलेट के ज़रिए कोरोना फैल सकता है। लेकिन ड्रापलेट दो मीटर से ज़्यादा नहीं जाता है। संक्रमण के इस तरीक़े से बचने के लिए मास्क पहनने और दूसरों से दो ग़ज की दूरी रखने की सलाह इसलिए दी जाती है।
दूसरा तरीक़ा है फोमाइट के ज़रिए संक्रमण फैलने का। इसमें ड्रॉपलेट जा कर सतह पर चिपक जाते हैं। संक्रमण के इस तरीक़े से बचने के लिए बार-बार हाथ धोने की सलाह दी जाती है। हालांकि इस तरह से संक्रमण फैलने के प्रमाण भी कम ही हैं।
तीसरा तरीक़ा है एरोसोल के ज़रिए संक्रमण फैलने का। कुछ ड्रॉपलेट बहुत ही छोटे होते हैं, जो कुछ समय तक हवा में सस्पेंडेड रहते हैं। ये छोटे ड्रॉपलेट खुले में कम और बंद कमरे में ज़्यादा संक्रमण फैला सकते हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के इस तरह से फैलने के उदाहरण सबसे कम देखे गए हैं। चूंकि ज़्यादातर कोरोना ड्रॉपलेट से फैलता है, इसलिए दुनियाभर में मास्क पहनने, दो ग़ज की दूरी और हाथ धोने की सलाह दी जा रही है।'
दूसरे जानकार हैं - सीएसआईआर के महानिदेशक डॉक्टर शेखर सी मांडे
इस महामारी में हो रही अलग-अलग रिसर्च पर उनकी संस्था बारीकी से नज़र रखती है। डॉक्टर संजय राय की ही बात को वो अलग तरह से बताते हैं और उनसे अलग राय रखते हैं।
'कोरोना फैलने का एक कारण होता है- जब लोग ज़्यादा बंद जगहों पर जाते हैं। जहां वेंटिलेशन ज़्यादा हो वहां कोरोना फैलने की आशंका कम होती है और जहां बंद कमरे हों वहां कोरोना फैलने की आशंका ज़्यादा होती है जैसे रेस्तरां, बार, जिम। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात को माना है।
नाइट कर्फ़्यू लगाने के पीछे का वैज्ञानिक आधार यही है कि लोग रात में इन बंद जगहों पर बाहर ना जाएं। अगर लोग इन जगहों पर ख़ुद जाना कम कर दें तो सरकारों को ऐसा करने की नौबत ही ना आए। जब लोग नहीं मानते तो सरकारें नाइट कर्फ़्यू जैसा क़दम उठातीं हैं। दूसरी बात ये कि रात को ज्यादातर लोग मनोरंजन के लिए घरों से बाहर निकलते हैं, काम के लिए कम। दिन में काम के लिए लोग ज़्यादा बाहर निकलते हैं, मनोरंजन के लिए कम।
नाइट कर्फ़्यू के अलावा ऑफ़िस को बंद करके, कुछ आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाकर भी कोरोना पर क़ाबू पाया जा सकता है। लेकिन उससे अर्थव्यवस्था को नुक़सान होता है। इस वजह से दोनों के बीच के एक तालमेल बिठाना भी ज़रुरी है। इस लिहाज़ से नाइट क़र्फ्यू बेहतर विकल्प हो सकता है।'
तीसरे एक्सपर्ट हैं - दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के हेड डॉक्टर जुगल किशोर
'नाइट कर्फ़्यू कोरोना के ख़िलाफ़ सरकार की बड़ी रणनीति का एक छोटा हिस्सा हो सकता है। बड़ी रणनीति ये हो सकती है कि बिना बात के लोग एक जगह से दूसरी जगह ना जाएं। इस पर अमल करने के कई तरीक़े हो सकते हैं।
मसलन लोग ख़ुद ये समझें और बाहर ना जाएं। दूसरा तरीक़ा हो सकता है कंटेनमेंट ज़ोन बना कर लोगों की आवाजाही को रोका जाए। कंटेनमेंट ज़ोन का तरीक़ा एक छोटे क्षेत्र में ही असरदार होता है, इससे बाक़ी इलाक़े में फ़र्क़ नहीं पड़ता। तीसरा तरीक़ा हो सकता है, ऐसे समारोह पर रोक लगाएं जहां लोग एकजुट हो रहे हों जैसे शादी, बर्थडे पार्टी, पब, बार।
तीसरे तरीक़े के तौर पर राज्य सरकारें नाइट कर्फ़्यू का इस्तेमाल कर रही हैं। कोरोना रोकने के लिए ये बहुत प्रभावशाली तरीक़ा नहीं है, लेकिन इससे जनता में एक संदेश ज़रूर जाता है कि समस्या गंभीर रूप ले रही है और लोग अब भी नहीं संभले तो हालात और बिगड़ सकते हैं। ऐसे समय में ऐसे संदेश भी मायने रखते हैं।
सिर्फ़ नाइट कर्फ़्यू लगाने से कोरोना को कितना कम किया जा सकता है, इसके बारे में कोई स्टडी नहीं हुई है। लेकिन लोगों की आवाजाही कम करने से कोरोना पर क़ाबू किया जा सकता है इसके वैज्ञानिक प्रमाण हैं। लोगों की आवाजाही कम करने से R नंबर (वायरस का रिप्रोडक्टिव नंबर) धीरे-धीरे कम होता है। ज़रूरत है इसके साथ दूसरे कड़े क़दम उठाने की।'
चौथी जानकारी ख़ुद केंद्र सरकार की तरफ़ से आई है
15 मार्च 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने एक चिट्ठी महाराष्ट्र सरकार को भेजी थी। चिट्ठी के आख़िरी हिस्से में साफ़ कहा गया है कि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में वीकेंड लॉकडाउन और नाइट कर्फ़्यू का बहुत ही सीमित असर है। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ़ से जारी कड़े कंटेनमेंट स्ट्रैटेजी पर ही ध्यान देना चाहिए।
इस चिट्ठी से साफ़ हो जाता है कि इस बार का नाइट क़र्फ्यू केंद्र सरकार के कहने पर नहीं बल्कि राज्य सरकारों के निर्देश पर जारी किया जा रहा है।