सोने की माइनिंग इतनी मुश्किल क्यों होती जा रही है?

Webdunia
मंगलवार, 8 दिसंबर 2020 (09:08 IST)
क्रिस बारानिक, बीबीसी फ़्यूचर
कोविड-19 महामारी के दौर में सोने के दाम आसमान छूने लगे। अचानक सोने की क़ीमत में उछाल आया।
 
पिछले साल ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के उत्पादन में एक प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। सोने के उत्पादन में आई ये पिछले एक दशक की सबसे बड़ी गिरावट है।
 
कुछ जानकारों का तर्क है कि खदानों से सोना निकालने की सीमा अब पूरी हो चुकी है। जब तक सोने की खदानों से खनन पूरी तरह से बंद नहीं किया जाएगा, सोने का उत्पादन गिरता रहेगा।
 
सोने के ऊंचे दाम होने की वजह भी यही है कि अमेज़न के जंगलों में सोने की खदानों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन का काम हुआ है।
 
सोने की क़ीमत में उछाल भले ही आ गया हो, लेकिन इसकी मांग में कोई कमी नहीं आई है। CFR इक्विटी रिसर्च के एक्सपर्ट जानकार मैट मिलर का कहना है कि सोने की जितनी मांग इन दिनों है, उससे ज़्यादा पहले कभी नहीं थी।
 
मिलर के मुताबिक़ दुनिया में पाए जाने वाले कुल सोने का लगभग आधा हिस्सा जूलरी बनाने में इस्तेमाल होता है।
 
इसमें वो हिस्सा शामिल नहीं है, जो ज़मीन में दफ़न है। बाक़ी बचे आधे सोने में से एक चौथाई केंद्रीय बैंकों से नियंत्रित किया जाता है जबकि बाक़ी का सोना निवेशकों या निजी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।
 
सोना - भरोसेमंद संपत्ति
मिलर का कहना है कि कोविड-19 की वजह से पूरे विश्व का आर्थिक तंत्र चरमरा गया है। अमेरिकी डॉलर से लेकर रुपया तक कमज़ोर हुआ है।
 
लगभग सभी देशों के सरकारी ख़जाने का बड़ा हिस्सा महामारी नियंत्रण पर ख़र्च हो रहा है। करंसी की छपाई के लिए भारी रक़म उधार ली जा रही है।
 
जानकारों का कहना है कि इसी वजह से करंसी का मूल्य ज़्यादा अस्थिर हो गया है। वहीं दूसरी ओर निवेशक सोने को भरोसेमंद संपत्ति मानते हैं।
 
कोरोना महामारी ने सोने के खनन कार्य को भी प्रभावित किया है। निकट भविष्य में इसकी आपूर्ति बढ़ने की संभावना भी नहीं है।
 
मिलर का कहना है कि सोने की मांग अभी इसी तरह बढ़ती रहेगी और बाज़ार में अभी जो सोना आ रहा है वो ज़्यादातर रिसाइकिल किया हुआ है।
 
मिलर तो यहां तक कहते हैं कि आने वाले समय में रिसाइकिल सोना, सोने के सिक्के यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सर्किट बोर्ड में इस्तेमाल होने वाला सोना भी भविष्य में इस धातु का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन जाएगा।
 
एक रिसर्च से पता चलता है कि पिछले 20 वर्षों में सोने की जितनी आपूर्ति हुई है, उसका 30 फ़ीसद हिस्सा रिसाइकिलिंग से ही आया है।
 
खनन का विरोध
सोने की रिसाइकिलिंग में कुछ ज़हरीले रसायनों का इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण के लिए घातक हैं। फिर भी ये सोने के खनन की प्रक्रिया से कम ही घातक है।
 
जर्मनी की गोल्ड रिफ़ाइनरी की हालिया रिसर्च बताती है कि एक किलो सोना रिसाइकल करने में 53 किलो या उसके आसपास कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है। जबकि खान से इतना ही सोना निकालने में 16 टन या उसके बराबर कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है।
 
सोने के खनन से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए दुनिया भर में जहां कहीं भी सोने की खाने हैं, वहां के स्थानीय लोग इसके खनन का विरोध करते हैं।
 
इस विरोध की वजह से भी सोने के उत्पादन में भारी कमी आ रही है। मिसाल के लिए चिली में पास्कुआ-लामा खदान में खनन का काम इसलिए रोक दिया गया कि वहां के स्थानीय पर्यावरण संरक्षक कार्यकर्ता विरोध करने लगे थे।
 
इसी तरह उत्तरी आयरलैंड के देश टाइरोन में लोग सड़कों पर उतर आए। इस इलाक़े में सोने की खदानें हैं। कई कंपनियां यहां प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती हैं। लेकिन, स्थानीय कार्यकर्ता इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।
 
उनका कहना है कि खनन से इलाक़े को जो नुक़सान होगा, उसकी भरपाई स्थानीय लोगों को करनी पड़ेगी।
 
हालांकि इस इलाक़े में पिछले तीस साल से लोग रोज़गार की कमी से जूझ रहे हैं। कंपनी ने उन्हें रोज़गार के साथ अन्य सुविधाएं देने का वादा किया है, फिर लोग राज़ी नहीं हैं।
 
खदानों वाली जगह पर बदली ज़िंदगी
लेकिन एक सच ये भी है कि जहां सोने की खदानें स्थापित हो गई हैं वहां के लोगों की ज़िंदगी बदल गई है।
 
अमेरिका के नेवाडा सूबे की गोल्ड माइन दुनिया की सबसे बड़ी सोने की खदान है। यहां से हर साल लगभग 100 टन से ज़्यादा सोना निकाला जाता है।
 
इस इलाक़े के आसपास के लोगों को न सिर्फ़ इन खदानों की वजह से नौकरी मिली है, बल्कि उनका रहन सहन भी बेहतर हुआ है।
 
सोने की खदान से सिर्फ़ सोना ही नहीं निकलता, बल्कि इसके साथ अन्य क़ीमती धातुएं जैसे तांबा और सीसा भी निकलते हैं।
 
उत्तरी आयरलैंड के क्यूरेघिनाल्ट खदान से सोना निकालने में खुद आयरलैंड के सियासी हालात भी काफ़ी हद तक रोड़ा बने रहे हैं। देश में फैले आतंक और हिंसा के चलते भी यहां काम करना काफ़ी मुश्किल था।
 
क्यूरेघिनाल्ट, ब्रिटेन में पाई गई अब तक की सबसे बड़ी सोने की खदान है। खदान के आसपास करीब 20 हज़ार लोगों की आबादी है। ये इलाका क़ुदरती ख़ूबसूरती से भरपूर है। आसपास घने जंगल और खेत हैं। यहां काम करने वाली कंपनी लोगों को हर तरह से मनाने की कोशिश कर रही है।
 
कंपनी ने एक खुले गड्ढे वाली शैली की परियोजना के बजाय एक भूमिगत खदान का निर्माण और विदेशों में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के सहारे छड़ें निकालने की योजना भी बनाई है। कंपनी ने लोगों से यहां तक कहा कि पानी का 30 फ़ीसद हिस्सा कम इस्तेमाल किया जाएगा।
 
कार्बन उत्सर्जन भी 25 फ़ीसद तक नियंत्रित करके इसे यूरोप की पहली कार्बन न्यूट्रल माइन बनाया जाएगा।
लेकिन लोग किसी भी सूरत में राज़ी नहीं हैं। थक हार कर कंपनी ने 2019 में प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

5वें चरण में 57.40 फीसदी मतदान, बारामूला में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड, जानें कहां कितने प्रतिशत पड़े वोट

वाइस प्रेसिडेंट मुखबेर ईरान के अंतरिम राष्ट्रपति बने, भारत में 1 दिन का शोक

भीषण गर्मी में लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में सुस्त रही मतदान की रफ्तार, आदित्य ठाकरे ने निर्वाचन आयोग पर उठाए सवाल

AAP की मुश्किलें बढ़ीं, ED की चार्जशीट में खुलासा अमेरिका, ईरान, यूएई जैसे देशों से मिली करोड़ों की फंडिंग

दिग्विजय सिंह का दावा, I.N.D.I.A. गठबंधन को वैसा ही समर्थन मिल रहा, जैसा 1977 में...

50MP कैमरा, 5000mAh बैटरी के साथ भारत में लॉन्च हुआ Motorola Edge 50 Fusion, जानिए क्या है कीमत

iQOO Z9x 5G : लॉन्च हुआ सबसे सस्ता गेमिंग स्मार्टफोन, धांसू फीचर्स

Realme का सस्ता 5G स्मार्टफोन, रोंगटे खड़े कर देंगे फीचर्स, इतनी हो सकती है कीमत

15000 में दुनिया का सबसे पतला स्मार्टफोन, 24GB तक रैम और 60 दिन चलने वाली बैटरी

53000 रुपए की कीमत का Google Pixel 8a मिलेगा 39,999 रुपए में, जानिए कैसे

अगला लेख