मतदान से एक दिन पहले बुधवार को लोहानीपुर मोहल्ले में चंदेल परिवार का मकान ढूंढने में ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। अपने बड़े आकार के कारण जल्द ही हमें उस मकान तक पहुंचने का पता विस्तार से बता दिया गया जिसके बाहर ‘चंदेल निवास’ का एक छोटा-सा बोर्ड लगा है।
लगभग साढ़े तीन कट्ठे में बने इस निवास के बीच एक गली छोड़ी गई है जिसके दोनों ओर चार मंजिला मकान खड़े हैं। इस मकान में चंदेल परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं।
पढ़ाई के लिए आए पटना : परिचय के बाद मुझे चंदेल निवास के उस कमरे में ले जाया गया जिसमें परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य चौरासी साल के परशुराम सिंह रहा करते हैं।
बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1954 के आसपास वह वैशाली जिले के अपने गांव से पढ़ाई के सिलसिले में पटना आए थे। 1956 में उनका पटना आना तब सफल भी हो गया जब उन्हें पटना सिविल कोर्ट में किरानी की नौकरी मिल गई।
चंदेल परिवार मूलतः वैशाली जिले के राघोपुर प्रखंड के जुड़ावनपुर गांव का निवासी है। गांव से इस परिवार का रिश्ता अब भी पूरी तरह बना हुआ है। गांव की खेतीबाड़ी इस बड़े परिवार के गेहूं, दलहन जैसी खाद्य पदार्थों की जरूरतों को भी पूरा कर देती है।
पटना में आज चंदेल परिवार जहां बसा है वह जमीन उन्होंने 1973 में खरीदी थी और 1980 में वहां रहना शुरू किया था।
चूल्हे : लेकिन इन प्रारंभिक जानकारियों के साथ मैं यह जानने के लिए उत्सुक था कि यह परिवार किन मामलों में एक संयुक्त परिवार है? क्या सभी का भोजन भी एक साथ बनता है?
मेरी इस जिज्ञासा को शांत करते हुए परशुराम सिंह ने बताया कि इतने बड़े परिवार का खाना एक साथ बनाने में परेशानी आने लगी तो चूल्हे अलग कर दिए गए। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि गांव में खेतीबाड़ी एक साथ है, गांव और पटना शहर में अचल पैतृक संपत्ति भी संयुक्त रूप से है।
चंदेल निवास में फिलहाल शहरी जीवनशैली और दूसरे कारणों से वर्तमान में चंदेल परिवार अलग-अलग चूल्हों पर खाना बनाता है।
सामूहिक निर्णय : कैसे तय करता है चंदेल परिवार अपनी पसंद का उम्मीदवार या दल? इस सवाल के जवाब में परशुराम सिंह ने बताया कि सभी सदस्य आपस में बातचीत कर यह तय करते हैं। अंतिम फैसले पर पहुंचने के पहले सबकी बात सुनी जाती है और ऐसा करते हुए हुए कभी कोई विवाद नहीं होता है।
वहीं परिवार के अरुण कुमार सिंह के अनुसार चंदेल परिवार इस बार विकास करने वाली साफ-सुथरी सरकार चुनने के लिए मतदान करेगा।
अरुण बातचीत में इस बात पर चिंता भी जाहिर करना नहीं भूलते कि आज पढ़ाई बहुत मंहगी हो गई है और ऐसे में मतदान करते समय महंगी होती शिक्षा और रोजगार के घटते अवसर का मुद्दा भी उनके मतों की दिशा तय करेगा।
पहले महिलाएं : परिवार की एक महिला सदस्य आभा सिंह ने बताया कि हर बार परिवार की महिलाएं ही पहले मत डालने जाती हैं। आभा के अनुसार मतदान के लिए उनकी तैयारी पूरी है और इस बार उनमें पहले से ज्यादा उत्साह भी है।
इस बार परिवार के आठ युवा पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे जिसमें छह युवतियां हैं और दो युवक। पहली बार मत डालने को रोमांचित दिखाई दे रहीं गीतांजलि ने कहा कि वह निष्पक्ष ढ़ंग से काम करने वाली सरकार के लिए वोट डालना पसंद करेंगी।
साथ ही गीतांजलि ने पंचायतों और नगर निकाय चुनाव में महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का समर्थन किया तो दूसरी ओर सरकारी नौकरियों में जाति के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से वह नाराज दिखीं।
निराशा : परिवार के बालिग हुए सदस्यों को मतदाता बनाने के साथ-साथ यह परिवार दूसरी बातों का भी ध्यान रखता है। चंदेल परिवार एक ओर बहू के रूप में परिवार का हिस्सा बनने वाले नए सदस्यों का नाम स्थानीय मतदाता सूची में शामिल कराता है तो दूसरी ओर परिवार से विदा होने वाली बेटियों का नाम सूची से हटवाता भी है।
इस संबंध में परिवार के एक दूसरे बुजुर्ग सदस्य सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि कुछ दिनों पहले परिवार की चार नई बहुओं का नाम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए आवेदन दिया गया था। लेकिन इस बार उनका नाम शामिल नहीं हो सका। सुरेंद्र के अनुसार इस कारण वह थोड़ा निराश भी हैं।