क्यों नहीं छोड़ा पंडित मोहनलाल ने कश्मीर?

Webdunia
मंगलवार, 2 सितम्बर 2014 (18:34 IST)
कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर बार छोड़ कर चले गए और कश्मीर से बाहर जाकर पनाह लिया।
लेकिन कश्मीरी पंडित मोहन लाल की कहानी कुछ अलग है। वे जिस गांव में रहते हैं, वहां 1990 में 10 पंडित परिवार आबाद थे, लेकिन आज उनका अकेला परिवार वहां रहता है। 
 
कश्मीर घाटी के कुलगाम जिले के दमहल हांजीपुरा गांव में रहने वाले मोहन लाल कश्मीर छोड़कर नहीं गए और वजह थी 'मिट्टी से प्यार और वहां के हालात थे।'
 
27 बरस पहले की उस रात को याद करते हुए मोहन लाल कहते हैं, 'वो बड़ी भयानक रात थी जब कश्मीर से लाखों पंडित आनन-फानन में घाटी छोड़कर चले गए। मैं भी सोच रहा था कि अपना घर छोड़कर कर चला जाऊं, लेकिन फौरन इरादा बदल दिया।'
 
वो कहते हैं, 'हम यहां से जाने के लिए तैयार थे लेकिन जब हमसे कहा गया कि रास्ते में पंडितों का कत्ल किया जा रहा है तो मैंने इरादा बदल लिया। अपने घर में खुद को अधिक सुरक्षित पाया।'
 
'जान से मारेंगे' : कश्मीरी पंडितों को घाटी में फिर से बसाने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की योजना पर मोहन लाल और उन की पत्नी दुलारी कौल कहती हैं, 'हम तो खुद भी चाहते हैं कि पंडित वापस लौट कर आएं लेकिन भारत सरकार की मर्जी के मुताबिक नहीं। हमें कोई अलग होमलैंड नही चाहिए।'
 
'अलग होमलैंड का मतलब है कि हमें घरों में कैद करके रखा जाएगा। हम पारंपरिक तौर पर बसना चाहते हैं। यहां कुछ पंडितों को पिछले दो चार बरसों में लाया गया है। उनको अलग कॉलोनियों में रखा गया है। वे तो कैदियों की जिंदगी गुजार रहे हैं। हम सुरक्षा की संगीनों में नहीं रहना चाहते। यहां के मुसलमान हमें सुरक्षा देंगे।'
 
मोहन लाल के परिवार को कई बार डराने की कोशिश की गई। कई बार मकान पर रात के वक्त पत्थर फेंके गए। 'जान से मारेंगे' जैसे शब्द लिखे गए। सरकार ने उन्हें सुरक्षा देने की पेशकश भी की थी लेकिन उन्होंने कभी भी इसे कुबूल नहीं किया, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे वो और अलग-थलग पड़ जाएंगे।
 
मंदिर के लिए लकड़ी : उनके घर के पास एक मंदिर है जो अब खंडहर की शक्ल ले चुका है। उनकी शिकायत है कि सरकार ने कभी उनकी धार्मिक भावनाओं की परवाह नहीं की और न ही उनके आस पड़ोस के लोगों ने ही इसका ख्याल रखा।
वो कहते हैं, 'पूजा भी अब अपने ही घर में करते हैं। मांगने के बावजूद सरकार ने मंदिर के लिए चार फुट लकड़ी तक नहीं दी। क्या ये जुल्म नहीं है?'
 
जब भी किसी त्योहार का कोई मौका होता है तो मोहनलाल के लिए मुश्किल पैदा हो जाती है। त्योहार मनाने के लिए मोहनलाल को अपने घर से दूर जाना पड़ता है क्योंकि आस-पास कोई पंडित परिवार नहीं रहता है और न ही कोई सजा-सजाया मंदिर, जहां जाकर वे त्योहार मना सकें।
 
मोहन लाल के गांव में जब भी मुसलमानों के यहां कोई शादी विवाह होता है तो वे वहां चले जाते हैं, लेकिन अपने बच्चों की शादी के लिए उन्हें 100 किलोमीटर दूर जाकर श्रीनगर शहर के एक होटल में अपने बच्चों की शादी करनी पड़ी।
 
हिंदुओं का श्मशान : इसकी वजह ये थी कि मोहन लाल का कोई रिश्तेदार डर के कारण उनके गांव आने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी परंपरा को जिंदा रखते हुए शादी के बाद गांववालों को गांव में ही दावत दी थी। लेकिन वो मानते हैं कि सरकार से खफा होने के लिए उनके पास कई वजहें हैं।
मोहन लाल कहते हैं, 'हिंदुओं का एक श्मशान घाट होता है जहां उन्हें जलाया जाता है, लेकिन उस पर कब्जा कर लिया गया है और वहां गाड़ियों का अड्डा बना दिया गया है। अब हमारा श्माशान घाट भी नहीं बचा है। भागे हुए पंडितों को यहां लाकर क्या करेगी सरकार?'
 
मोहन लाल का मानना कहते हैं कि सरकार की ओर से कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने की कोशिश एक अच्छा कदम है, लेकिन तब तक नाकाम है जब तक यहां के लोग उनकी वापसी न चाहें।
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