गंभीर भूमिकाओं से ऊब गया था

बीबीसी 'एक मुलाकात' में गोविंदा

Webdunia
रविवार, 5 अगस्त 2007 (19:02 IST)
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फिल्म अभिनेता से सांसद बने गोविंदा का कहना है कि कॅरियर की शुरुआत में गंभीर रोल करते-करते वे ऊब गए थे और कुछ अलग करना चाहते थे, तभी से कॉमेडी फिल्मों की ओर झुकाव हो गया। उन्होंने दिलीप कुमार के एक इंटरव्यू में भी देखा कि उनको डॉक्टर ने अच्छे स्वास्थ्य के लिए कॉमेडी रोल करने की सलाह दी थी। अपनी नई छवि से गोविंदा संतुष्ट भी हैं।

गोविंदा कहते हैं कि मुझे अपनी माँ पर बहुत विश्वास है और मैं उन पर गर्व करता हूँ। मेरे दिमाग में हमेशा यह बात रहती है कि उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और मुझे उनके कार्य को आगे बढ़ाना है।

अमिताभ महानायक हैं : फिल्म 'बड़े मियाँ छोटे मियाँ' में अमिताभ से ज्यादा गोविंदा के काम की तारीफ के सवाल पर उन्होंने कहा कि 'ऐसा नहीं है, जिनको मैं गुरु मानता हूँ, अपना बड़ा भाई मानता हूँ, जो पूरे देश के लिए महानायक हैं। उनकी तुलना में मेरे काम को बेहतर बताना भी एक राजनीति का हिस्सा था। उनके पसंदीदा कलाकारों में दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित आदि हैं।

दरअसल कुछ लोग अमितजी के साथ मुझको काम करते नहीं देख सकते और वे ऐसा चाहते भी नहीं थे। लेकिन उनके साथ काम करके मैं बहुत भाग्यशाली रहा। उनसे सीखकर मैं अपने जीवन में बहुत-सी चीजों को दाखिल कर चुका हूँ।'

विरार का छोकरा : देखिए, कुछ बातें आपके साथ जोड़ दी जाती हैं और उनको किसी न किसी तरह से जीवित रखा जाता है। वैसे ये विरार का छोकरा वाली जो बात है वो प्रेमपूर्वक कही गई बात है। मेरे पिताजी कहा करते थे कि चलो इसी बहाने तुम बुढ़ापे तक छोकरे तो बने रहोगे। मेरा मानना है कि हर वो चीज जो आपसे जोड़ी जाती है, उसकी एक वजह होती है। उस वजह को समझते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए।

संघर्ष : हमारा संघर्ष सालों का है। मेरे पिता जी फिल्मों में हीरो हुआ करते थे। महबूब खान ने उन्हें ब्रेक दिया था। मेरी माँ ठुमरी की शास्त्रीय संगीत गायिका हुआ करती थीं, लेकिन बीच में मेरा परिवार मुसीबत में आ गया था। लेकिन कलाकार के परिवार से होने के नाते संस्कृति और मेलजोल के मामले में हमारी हालत ठीक ही थी। मैं 13 साल की उम्र से ही काम करने के लिए सोचने लगा। तभी से मेरा संघर्ष शुरू हो गया। मैं 14-15 साल की उम्र से ही निर्माताओं के पास काम के लिए जाने लगा। वो कहते कि अभी तुम छोटे हो, तुम्हारे लायक काम होगा तो बताएँगे। मैं राजश्री प्रोडक्शन और शांतारामजी के कार्यालय में जाकर बैठ जाया करता था, लेकिन मुझे काम मिला 21 साल की उम्र में, जब मैंने बीकॉम पूरा कर लिया। रवि चोपड़ा ने मुझे पहला ब्रेक दिया।

मेरा पहला चेक : मेरा पहला चेक चार-साढ़े चार हजार का था। मैंने उन पैसों से मम्मी के लिए साड़ी खरीदी और कुछ मिठाइयों के डिब्बे भी ले लिए। मैं जब लोकल ट्रेन से लौट रहा था तो ट्रेन में मुझे एक साधु बाबा मिले। उन्होंने मुझसे पूछते हुए कहा कि क्या तुम्हारा नाम गोविंदा है और क्या तुम्हें आज कुछ काम मिला है। मैंने सोचा ये कनेक्टेड आदमी होगा इसके पास न्यूज पहुँच गई होगी, लेकिन फिर उन्होंने मुझसे कहा कि तुम माँ के पास जा रहे हो। मैंने पूछा कि आपको इतना सब कुछ कैसे मालूम है। उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा अच्छा समय शुरू होने वाला है। अब मुझे हर क्षेत्र में कई गुरू मिलेंगे और उनका सम्मान हमेशा करते रहना। इतना बोलकर वो अगले स्टेशन पर उतर गए। एमपी बनने के बाद मैंने अपना काम मुंबई की लोकल ट्रेन से ही शुरू किया।

पहली फिल्म : मेरी पहली रिलीज फिल्म थी 'तन बदन'। उसके बाद 'लव86' और फिर 'झूठा इल्जाम' आई। मेरी पहली साइन की हुई फिल्म 'लव86' थी। तब से 'लव86' भी चल रहा है और 'झूठा इल्जाम' भी चल रहा है।

राजनीति के बारे में : राजनीति में प्रवेश के सवाल पर गोविंदा का कहना था कि यह मेरे बड़ों की इच्छा थी। मैं इसे सीखना चाहता था, इसलिए राजनीति में गया। उन्होंने कहा कि कमाल की बात है जब आदमी ठीक बोलता है तो लोग कहते हैं कि राजनीतिज्ञ हो गया है। एक महफ़िल में मुझसे किसी ने कहा था आप में राजनेता बनने की क्षमता है। मैं बोला कि भाई मैंने आपसे कब वोट माँग लिया या क्या फायदा उठा लिया। उसने कहा वोट की बात नहीं है गोविंदा, तुम बहुत सोचकर बोलते हो। मेरा जो बोलने का चलन है वो माँ की वजह से है। ये राजनीति नहीं है, लेकिन नीति जरूर है।

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