वो कहती है, 'जब ऐसा हादसा होता है तो और कोई साथ आए या ना आए, खुद ही हिम्मत करनी पड़ती है, मैंने उस दिन परीक्षा दी और आज तक लड़ रही हूं।'
फिर भाई के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज कराई जाने लगीं, केस वापस लेने का दबाव बनाया गया, गांववालों की ओर से ताने सुनने पड़े, पर अनीसा ने अपनी पढ़ाई पूरी की।
जीन्स और लंबा टॉप पहने, हाथ में मोबाइल लिए 18 साल पूरे कर चुकी अनीसा बताती है कि डर और शर्म, दोनों ने मिलकर गांव छुड़वा दिया। दलित मुद्दों पर काम कर रहे समाजसेवियों की मदद से उस वक्त पुलिस ने मामला दर्ज किया और केस फास्ट-ट्रैक अदालत में चलाया गया। आठ में से चार लड़कों को सजा हुई और चार बरी हो गए।
गांव का बहिष्कार : लेकिन जिन्हें सज हुई उन्होंने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की और अब जमानत पर बाहर हैं। अनीसा का आरोप है कि आज भी जब वो कॉलेज जाती है, तो वो उनका पीछा करते हैं।
अनीसा की हिम्मत और समाजसेवियों के बनाए दबाव से सरकार ने उनकी मां को नौकरी और पुलिस की ओर से उसे सुरक्षा दी गई है। अब उसने भी बरी किए गए चार लड़कों के खिलाफ हाईकोर्ट में अर्ज़ी डाली है।
लड़ते-लड़ते अनीसा और मजबूत हो गई है। अब बलात्कार पीड़ित दलित लड़कियों की काउंसलिंग कर उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी और हौसला देती है। जब हम 20 किलोमीटर दूर एक दूसरे गांव में रहने वाली राखी से मिलने जाते हैं तो अनीसा ही उसका हाथ पकड़, बात करने की हिम्मत देती है।
पर राखी बहुत कमजोर है, उसके केस में किसी को सजा नहीं हुई है। आरोपी बाहर हैं और राखी घर के अंदर : इस घटना को दो साल होने वाले हैं, पर राखी के जख्म अब भी तकलीफ देते हैं, 'मैं स्कूल से घर आई थी खाना खाने, जब चार लड़के आए, मेरी जाति को गाली दी और कहा, आज तुम्हें तुम्हारी औकात बताते हैं और फिर सामूहिक बलात्कार किया।'
इसके बाद राखी ने स्कूल जाना छोड़कर खुद को घर में बंद कर लिया। मां तो बचपन में ही चल बसी थीं। पिता को कुछ भी बताने में संकोच करती रही।
जब छह दिन बाद पुलिस में शिकायत की गई तो मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई। एफआईआर में सिर्फ धमकी देने, चोट पहुंचाने और जबरन घर में घुसने का मामला दर्ज हुआ। एक महीने की जेल के बाद अभियुक्त बाहर हैं और राखी घर के अंदर।
पुलिस में जाने के बाद से पिता को गांव में काम नहीं मिलता है और घर में खाने के लाले पड़े हैं। ऐसे में राखी की पढ़ाई किसी गिनती में आएगी।
बड़े उत्साह से अपनी कॉपी-किताबें दिखाती है और फिर नजरें नीची कर कहती है, 'मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं पर मेरा सपना अब कभी पूरा नहीं होगा, जब तक वो लड़के खुले घूम रहे हैं, मैं स्कूल जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती।'
‘सॉफ्ट टार्गेट’ : राखी का केस लड़ रहे वकील रजत कलसान ने अब अदालत में बलात्कार की धारा और अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अत्याचार विरोधी कानून (एससीएसटी ऐक्ट) की धारा लगाए जाने की अर्जी दाखिल की है।
रजत भी मानते हैं कि दलित लड़कियों को ‘सॉफ्ट टार्गेट’ समझा जाता है।
वो कहते हैं, 'ऊंची जाति के लड़के जानते हैं कि बहुत कम मामलों में लड़की का परिवार शिकायत करने की हिम्मत करता है, और ऐसे में भी उनका आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार कर, पैसे देकर उन्हें चुप कराया जा सकता है।'
रजत बताते हैं कि पिछले समय में हो रहे ये बलात्कार अकसर सामूहिक होते हैं, 'कई बार तो इन लड़कियों को दोस्ती का झांसा देकर पहले एक लड़का और फिर उसका पूरा गुट लड़की से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करता है।'
‘विमेन अगेन्स्ट सेक्सुअल वॉयलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन’ (डब्लूएसएस) की रिपोर्ट में अनीसा और राखी समेत कई लड़कियों से मुलाकात कर उनके मामलों की जानकारी जमा की गई है।
रिपोर्ट लिखने वालों में से एक और दलित आंदोलनकारी रजनी तिलक कहती हैं, 'दलित लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा लंबे समय से हो रही है, लेकिन पिछले सालों में जैसे-जैसे वो समाज के दायरों को तोड़ घर से बाहर निकल रही हैं, उन्हें वापस धकेलने की कोशिशें भी तेज हुई हैं।'
दोहरी मार : रिपोर्ट में पुलिस पर ‘दलित’ लड़कियों के साथ असंवेदनशील होने और एससीएसटी एक्ट का उपयोग करने से झिझकने का आरोप भी लगाया गया है।
अनीसा और राखी भी कहती हैं कि उन्हें बार-बार ऐसा लगा है कि पुलिस रसूख वाले ऊंची जाति के आरोपी लड़कों का पक्ष लेती थी। हालांकि पुलिस हमेशा से ही ऐसे सभी आरोपों से इनकार करती आई है।
जब हम चलने लगते हैं, तो राखी फफक कर रो पड़ती है। बहुत पूछने पर अपने दुपट्टे से आंसू पोंछते हुए बताती है कि बलात्कार के हादसे के बाद से ही उसके ताया उसके साथ बहुत मार-पीट करते हैं।
ताया उसकी बात को झूठ करार देते हैं और पलटकर कहते हैं, 'अपने चाल-चलन की वजह से लड़कों को बुला लाई, जब तक ये सुधरेगी नहीं, इसे थोड़ा धमका कर तो रखना होगा।'
एक झटके में राखी ‘जातिगत यौन हिंसा से पीड़ित लड़की’ की बजाय सिर्फ ‘लड़की’ हो गई। जिसे बलात्कार के दो साल बाद भी, अपने घरवालों को ये यकीन दिलाना था कि बलात्कार उसकी वजह से नहीं हुआ।
(
पीड़ित लड़कियों के नाम बदले गए हैं।)