ब्रिटेन में बेहाल हैं अवैध तरीके से गए भारतीय

- क्रिस रोजर्स

Webdunia
शुक्रवार, 2 मार्च 2012 (13:11 IST)
BBC
हजारों किलोमीटर की दूरियां तय कर एक सुनहरे भविष्य का सपना संजोए हर साल भारी तादाद में भारतीय गैर कानूनी रुप से ब्रिटेन में दाखिल होते हैं, लेकिन ब्रिटेन में छाई मंदी इन लोगों के लिए अब एक डरावने सपने जैसी हो गई है ।

दलालों और तस्करों को मोटी रकम चुका कर अवैध तरीके से ब्रिटेन में दाखिल हुए अप्रवासियों की हालत अब बद से बदतर हो गई है। इनमें से कई बेसहारा-बेरोजगार भारतीय हैं।

ब्रिटेन के ऐसे ही एक इलाके में एक गैराज में छिपकर रहने वाले जगदीश से मेरी मुलाकात हुई। जब मैंने जगदीश से उसके कमरे में चलने तो कहा तो वो मुझे गैराज की एक दीवार में बने एक छेद के जरिए दुछत्तीनुमा अपने कमरे में ले गया।

सपनों का छलावा : जगदीश को ब्रिटेन में अवैध रूप से प्रवेश कराने के लिए जगदीश और उसके परिवार ने मानव तस्करों को 10 हजार पाउंड दिए। वो भारत से यहां इस उम्मीद में आए थे कि जिंदगी बेहतर होगी और घरवालों के लिए कुछ कमाई कर वापस भेजेंगे। लेकिन ब्रिटेन आने के बाद वो यहां पसरी बेरोजगारी का हिस्सा हो गए।

वो कहते हैं, 'जब मैं भारत से यहां आया तब मुझसे कहा गया था कि यहां जिंदगी बहुत बेहतर है। मैं ही नहीं मेरी तरह बहुत से लड़के यहां आए, लेकिन आप देख सकते हैं कि हम किन हालात में रह रहे हैं। हमारे पास कोई काम नहीं हैं कोई सरकारी मदद नहीं है।'

दड़बों में रहने को मजबूर : अपने घर से 4000 किलोमीटर दूर बिना काम और किसी मदद के जगदीश अब गंदगी से भरे एक ऐसे कमरे में जिंदगी बिताने को मजबूर है जहां न रोशनी है न एक जोड़ी बिस्तर के अलावा कोई सामान।

उन्होंने खुद को अपने परिवार से काट लिया क्योंकि वो मानते हैं कि उसकी इन परिस्थितियों के बारे में जानने से बेहतर है कि परिवार वाले ये समझें कि वो मर गया।

जगदीश कहते हैं, 'मुझे यहां भेजने के लिए उन्होंने जमीनें बेच दीं, कर्ज लिया। वो चाहते थे कि मेरी जिंदगी बेहतर हो मैं घर के लिए पैसा कमाऊं, लेकिन जब आप यहां आते हैं तो पता चलता है कि यहां कुछ भी नहीं।'

वो अब जल्द से जल्द ब्रिटेन से बाहर निकलकर अपने घर भारत वापस जाना चाहते हैं, लेकिन अब यही उनके लिए सबसे बड़ी समस्या है। गैरकानूनी रूप से ब्रिटेन में दाखिल हुए दूसरे कई अप्रवासियों की तरह जगदीश ने भी अपने सभी दस्तावेज फाड़ दिए ताकि उन्हें आसानी से निर्वासित न किया जा सके।

देश निकाले की गुहार : अब वो घर लौटने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इससे पहले एक भारतीय के तौर पर उन्हें अपनी पहचान साबित करनी होगी। इस काम में सालों भी लग सकते हैं।

भारतीय ही नहीं ब्रिटेन में हजारों की संख्या में लोग कागजी कार्रवाई के इसी जाल में फंसे हैं। लंदन की ठिठुरती ठंड के बीच फ्लाइवरों के नीचे और रात-बिताते ऐसे कई सौ लोग मिल जाएंगे।

ऐसे ही एक फ्लाइओवर के नीचे मुझे मिले 21 साल के जसपाल। कुछ दिनों पहले उन्हें चोरी के जुर्म में गिरफ्तार किया गया और अब ये सड़कें ही उनका घर हैं।

वो कहते हैं, 'उन लोगों ने जब मुझे गिरफ्तार किया तब भी मैंने उनसे कहा कि मुझे मेरे घर भेज दें, क्योंकि मेरे पास न कोई पासपोर्ट है न पैसे। मैं चोरी के पैसे नशीली दवाएं खरीददता हूं। अगर मैं नशा न करुं तो इतनी ठंड में बाहर सो नहीं सकता।'

इन लोगों के पास गैर सरकारी संगठनों और अपने समुदाय की ओर से मिल रही मदद के अलावा जीने का कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं, लेकिन इन लोगों के निर्वासन में लगने वाले समय को लेकर वो भी कुछ नहीं कर सकते।

कागजी कार्रवाई : वेस्ट लंदन की सिख कल्याण समिति के अध्यक्ष रनदीप लाल कहते हैं, 'इन लोगों के मामले हमें पता हैं, लेकिन इनके कागज़ लंबे समय से भारतीय उच्चायोग के पास लंबित हैं। भारतीय उच्चायोग को इनकी पूरी जानकारी यूके बॉर्डर एजेंसी और दूसरी एजेंसियों से मिलनी है। यानि मामला उलझा हुआ है और हर किसी को एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना होगा।'

भारतीय उच्चायोग और यूके बॉर्डर एजेंसी का कहना है कि कागज न होने के कारण इन लोगों की असल पहचान स्थापित करना एक पेंचीदा काम है। प्राथमिकता के आधार पर आपात श्रेणी में भी इन लोगों के कागज तैयार कर इन्हें देश से बाहर निकालना आसान नहीं क्योंकि हर मामले में कहानी कुछ अलग है और इसमें लगने वाला समय इसी पर निर्भर करता है।

सरकार की ओर से इन लोगों को जल्द से जल्द बाहर निकालने की कोशिशें जारी हैं। साल 2011 में सात हजार से ज्यादा भारतीयों को स्वैच्छिक रूप से निर्वासित किया गया।

वो लोग जो आज भी ये समझते हैं कि ब्रिटेन नए से नए अवसरों और नौकरियों का खजाना है उनके लिए जगदीश के पास एक ही संदेश है। वो कहते हैं, 'जो लोग ऐसा सोच रहे हैं वो पागल हैं। उन्हें मेरी कहानी देखनी चाहिए और ये जानना चाहिए कि यहां कैसे हालात हैं।'

लेकिन जब तक ये लोग अपने देश वापस नहीं लौटते तब तक जगदीश और उनके जैसे हजारों नौजवानों के लिए ये हालात ही जिंदगी की असल सच्चाई हैं।

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