भीख नहीं माँगोगे तो शादी में होगी दिक्कत!

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रोहित घोष
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कानपुर के एक कोने में बसे पनकी क्षेत्र में एक गाँव है - कपड़िया बस्ती। इस गांव का नजारा उत्तर भारत के किसी भी पिछड़े गाँव जैसा है - टूटी झोपड़ियां, एक-दो पक्के घर, कच्ची सड़कें, उनके किनारे जमा गन्दा पानी और इधर-उधर खेलते छोटे बच्चे। कुछ नया या अनोखा नहीं दिखता। आबादी करीब तीन और चार हज़ार के बीच।

पर जब आप गाँव में कुछ समय बिताएंगे तो देखेंगे की गाँव के हर पुरुष के चेहरे पर दाढ़ी है। जो लड़के बड़े हो रहे हैं, वे भी अपने चेहरे पर दाढ़ी उगा रहे हैं। यह किसी फैशन की वजह से नहीं है, बल्कि बिना दाढ़ी के कपड़िया बस्ती के लोग ठीक से अपनी रोजी रोटी नहीं कमा पाएंगे।

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भिखारी या साहूका र
भारत में एक साधु की पहचान उसके लंबे केश, बढ़ी हुई दाढ़ी और गेरुआ वस्त्र होते हैं। वे दान या भिक्षा पर ही निर्भर रहते हैं। कपड़िया बस्ती का हर घर भिक्षा पर ही चलता है। कपड़िया बस्ती का हर आदमी रोज सुबह साधु के वेश में भिक्षा मांगने निकल जाता है। भीख माँगना ही उसका पेशा है।

' दिल्ली में आना जाना'
बस्ती में रहने वाले रामलाल ने बताया, हमारे पूर्वज घूमंतू जीवन जीते थे। वे भिक्षा मांगकर ही खाते थे। एक बार वे कानपुर आकर रुके - करीब 150 या 200 साल पहले। उस समय पनकी के जमींदार राजा मान सिंह थे। उन्होंने हमारे पूर्वजों से आग्रह किया की वे पनकी में ही बस जाएँ। हमारे पूर्वज यहीं बस गए।

भिक्षा मांग कर जीने का जो सिलसिला तब शुरू हुआ वह आज भी चल रहा है। हर सुबह कपड़िया बस्ती का हर आदमी गेरुआ वस्त्र ओढ़ लेता है। माथे पर चंदन लगाता है और एक हाथ में कटोरा और दूसरे हाथ में दंड लेकर निकल पड़ता है भिक्षा मांगने।

रामलाल ने कहा, हम भिक्षा के लिए कानपुर ही नहीं पूरे भारत का भ्रमण करते हैं। नवरात्रों के समय पश्चिम बंगाल जाते हैं तो गणेश पूजा के वक़्त महाराष्ट्र और कुम्भ मेले में इलाहाबाद। वे कहते हैं, दिल्ली में तो हमारा अक्सर आना जाना लगा रहता है, और वे दिल्ली के बड़े मन्दिरों के नाम बताने लगते हैं।

शिक्षा की कम ी
कपड़िया बस्ती में रहने वाले 80 वर्षीय प्रताप कहते हैं, मैं इसी गाँव में पैदा हुआ था। मेरे पिता भी इसी गाँव में पैदा हुए थे। उन्होंने ने भी भिक्षा मांग कर गुज़ारा किया। मैंने भी अपना जीवन भिक्षा मांग के ही चलाया।

आज प्रताप के चार बेटे भी मंदिरों में भीख मांग के अपना घर चलाते हैं। यह बात प्रताप काफ़ी गर्व के साथ कहते हैं। गाँव का कोई भी व्यक्ति शायद ही पढ़ा-लिखा हो। प्रताप कभी स्कूल गए ही नहीं। राम लाल ने कक्षा एक या दो तक पढ़ाई की है। पर राम लाल अपने कुर्ते की जेब में क़लम ज़रूर रखते हैं।

क्षेत्र के पार्षद अशोक दुबे कहते हैं, सदियों से कपड़िया बस्ती के लोग भीख मांग कर ही अपना घर चला रहे हैं और आज भी उसी पेशे में हैं।

गाँव से एक किलोमीटर की दूरी पर एक स्कूल है। गाँव के बच्चे वहाँ सिर्फ़ मिड-डे मील के लिए ही जाते हैं। गाँव के पास ही प्रसिद्ध पनकी हनुमान मंदिर है जहाँ हर मंगलवार हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। अशोक दुबे कहते हैं, पनकी हनुमान मंदिर को कपड़िया बस्ती के बच्चे अपना ट्रेनिंग सेंटर मानते हैं और भीख मांगने की कला वहीँ सीखते हैं।

कितनी कमा ई
कपड़िया बस्ती के लोग किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठा रहे हैं। लोगों को पता ही नहीं कि परिवार नियोजन भी कुछ होता है। 65 वर्षीय केसर बाई 14 बच्चों की माँ है। उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने कितने बच्चों को जन्म दिया है।

अशोक दुबे कहते हैं कि कपड़िया बस्ती के लोग भीख मांग कर अच्छा पैसा कमाते हैं। वो कहते हैं, अमूमन एक दिन में 500 रुपए तो कमा ही लेते हैं। त्योहार के दिनों में आमदनी बढ़ जाती है। यहाँ का हर आदमी आपको तंदुरुस्त दिखेगा।

वे आगे कहते हैं, पर गाँव के लोग पूरा पैसा शराब में खर्च कर देते हैं। शाम को जब पैसा कमा कर आते हैं तो सीधे घर नहीं जाते हैं। शराब के ठेके में जाते हैं और खूब पीते हैं। ये शराब को शराब नहीं, शिव जी का प्रसाद मानते हैं।

अशोक दुबे कहते हैं, नशे में धुत होकर मारपीट करते हैं। पुलिस का कपड़िया बस्ती में आना एक आम बात है। गाँव के कुछ ही लोगों के पास बीपीएल राशन कार्ड है।

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' भीख मांगने वाले को अहमियत'
पार्षद अशोक दुबे को लगता है की कपड़िया बस्ती के लोग कभी भी भीख माँगना नहीं छोड़ेंगे। वे कहते हैं, अगर यहां कोई व्यक्ति दूसरी तरह से जीवन यापन करें तो उसकी कद्र नहीं होती। जो भीख मांगता है उसे ही महत्त्व दिया जाता है। उसमें कमाई ज्यादा है। अगर कोई लड़का भीख नहीं मांगता है तो उसकी शादी में दिक्कत आती है।

कानपुर के पीपीएन कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष तेज बहादुर सिंह कहते हैं, अगर कपड़िया बस्ती के लोग सिर्फ़ भीख मांग कर जी रहे हैं तो वो न समाज को कुछ दे रहे हैं न ही देश को। यह ठीक बात नहीं है।

वे कहते हैं, उनमें एक जूनून जगाने की ज़रूरत है ताकि वे इस पेशे को छोड़ें। यह काम सरकार का है। दूसरी सबसे जरूरी चीज है शिक्षा। लेकिन सरकार की सभी योजनाएं कागजों तक सीमित रह जाती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।

वो कहते हैं, मुझे लगता है कि कपड़िया बस्ती के लोग भीख मांगना छोड़ना चाहते ही नहीं है। कपड़िया बस्ती से कुछ ही दूर पर है कानपुर के कई औद्योगिक क्षेत्र हैं - पनकी, फजल गंज और दादा नगर औद्योगिक क्षेत्र।

कपड़िया बस्ती के लोग क्यों नहीं मिल या कारखानो में काम करते हैं? इस सवाल के जवाब में तेज बहादुर सिंह कहते हैं, उन्हें समय पर जाना पड़ेगा, काम करना पड़ेगा, अफसर की डाँट खानी पड़ेगी, इन सबसे आसान तरीका है - भीख मांग के जीओ।

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