मैसेजिंग से मिली ताकत : ऑफिस में में रेशमा जैसी कई और लड़कियां थीं। कुछ सीतापुर से, कुछ बहराइच से और कुछ आस-पास के ही इलाकों से। ट्रेनिंग में लड़कियों ने तय किया कि सब आपस में एसएमएस के जरिए एक दूसरे को काम सिखाएंगी।
रेशमा ने अपनी नई सहेलियों से खूब मैसेजिंग की और सबने एक दूसरे की स्पेलिंग की गलतियों को सुधारा। रेशमा बताती हैं, 'मैंने इतने मैसेज कभी नहीं किए थे, लेकिन मोबाइल ने वाकई जिंदगी बदल दी थी। खुद पर इतना यकीन पहले कभी नहीं हुआ था। मुझे लगा मैं सब कुछ कर सकती हूं। दफ्तर में सीनियर्स ने मेरी तमाम गलतियों को सुधारा और ये भरोसा दिला दिया कि लड़कियां बहुत कुछ कर सकतीं हैं।'
रेशमा रावत ने काफी जल्दी काम सीखा और जल्दी ही उसकी तनख़्वाह 15 हजार हो गई।
बढ़ गई रिश्तों की वैलिडिटी : परिवार से अलग रहना रेशमा के लिए आसान नहीं था, पर मोबाइल ने उसे भी आसान बना दिया। उन्होंने एक और मोबाइल खरीदकर घर भेजा, विशेष प्लान के तहत मोबाइल कॉल की सस्ती दरें घरवालों के हमेशा करीब होने का अहसास दिलाती थीं।
' मोबाइल के बगैर मेरा घर पूरे परिवार से कटा हुआ था। तबीयत खराब होने पर किसी को तुरंत खबर भी नहीं दी जा सकती थी। और फिर मेरी फिक्र भी तो थी सबको...इसलिए फोन बहुत जरूरी था। मेरे लिए और घर के लिए भी।'
मोबाइल न होता तो शायद रेशमा की जिंदगी आज भी रामपुर धोबिया गांव में गुजर रही होती। लेकिन, सिर पर पल्लू रखकर चौका करने का वक्त अभी दूर है।
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बीबीसी हिन्दी और अमर उजाला डॉट कॉम की संयुक्त पेशक श)