'हक्सर दूर हटे और इंदिरा गांधी की आफतें शुरू हो गईं'

- रेहान फजल (दिल्ली)

Webdunia
शनिवार, 21 सितम्बर 2013 (14:36 IST)
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इंदिरा गांधी के जमाने में मशहूर ‘कश्मीरी माफिया’ का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य कोई कैबिनेट मिनिस्टर या चुना हुआ प्रतिनिधि नहीं बल्कि एक वरिष्ठ नौकरशाह था। उनका नाम था परमेश्वर नारायण हक्सर। हक्सर को मई 1967 में इंदिरा ने अपना प्रधान सचिव बनाया। उस समय उनकी उम्र 54 साल की थी।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डिग्री लेने के बाद वो तीस के दशक में इंग्लैंड गए थे जहां उन्होंने दुनिया के मशहूर एंथ्रोपॉलोजिस्ट ब्रोनिसलॉ मेलीनोस्की की देखरेख में एंथ्रोपॉलॉजी की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने वकालत भी पढ़ी और इंदिरा के पति फिरोज गांधी के पहले दोस्त और फिर हैम्पस्टेड में उनके पड़ोसी भी बन गए।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर के विमान लंदन पर बम गिराते थे तो हक्सर इंदिरा और फिरोज के लिए स्वादिष्ट कश्मीरी खाने बना रहे होते थे। लंदन से वापस आकर हक्सर ने इलाहाबाद में वकालत करनी शुरू कर दी। आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने की पेशकश की।

हक्सर की पहली पोस्टिंग लंदन में थी जहां कृष्ण मेनन भारत के उच्चायुक्त हुआ करते थे। इसके बाद उन्हें नाइजीरिया में भारत का पहला राजदूत बनाया गया। फिर वो ऑस्ट्रिया में भी भारत के राजदूत बने।

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जॉन्सन के साथ भोज : साठ के दशक में वो ब्रिटेन में भारत के उपउच्चायुक्त थे जब इंदिरा गांधी ने अपना प्रधान सचिव या कहें अपना दाहिना हाथ बनाने के लिए उन्हें तलब किया। इससे पहले 1966 में वो ब्रिटेन में उप उच्चायुक्त के पद पर रहते इंदिरा के साथ अमेरिका की सरकारी यात्रा पर भी गए थे।

उस समय की बहुत दिलचस्प घटना का जिक्र प्रणय गुप्ते ने अपनी किताब मदर इंडिया में किया है। प्रणय लिखते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन इंदिरा गांधी से इस कदर प्रभावित थे कि जब भारतीय राजदूत बीके नेहरू ने उप राष्ट्रपति ह्यूबर्ट हंफ़्री के सम्मान में अपने घर पर भोज दिया तो जॉन्सन भोज से एक घंटे पहले बिना बताए और बिना किसी पूर्व सूचना के, सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए वहां आ पहुंचे।

बीके नेहरू की पत्नी ने तकल्लुफन उनसे पूछा,'मिस्टर प्रेसिडेंट आप खाने तक तो रुकेंगे न?' जॉन्सन का जवाब था, 'माई डियर लेडी आप क्या समझती हैं मैं यहां आया किसलिए हूं।' उप प्रधानमंत्री हंफ़्री ने मजाक किया, 'मुझे मालूम था कि राष्ट्रपति महोदय मुझे इन सुंदर महिलाओं की बगल में नहीं बैठने देंगे।'

आनन फानन में सारे सीटिंग अरेंजमेंट को बदला गया। लेकिन असली दिक्कत ये थी कि भारत के राजदूत के घर में अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए कोई अतिरिक्त कुर्सी मौजूद नहीं थी। बहरहाल हक्सर ने उनकी मुश्किल दूर की और खुद ही पेशकश की कि मैं भोज से हट जाता हूं। अंतत: हक्सर की कुर्सी जॉन्सन को दी गई और अमेरिकी राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी के साथ रात का खाना खाया।

उस समय हक्सर का मानना था कि इंदिरा गांधी अक्लमंद तो हैं लेकिन उनमें गहराई नहीं है। लेकिन उनकी नजर में उनकी सबसे बड़ी खूबी थी आम लोगों से जुड़ने की क्षमता।(कैथरीन फ़्रैंक, लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी)

बैंकों का राष्ट्रीयकरण : इंदिरा के सचिव बनने के कुछ ही दिनों के अंदर हक्सर सरकार के सबसे प्रमुख नीति निर्धारक बन गए। वामपंथी विचारधारा के बौद्धिक हक्सर ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजाओं के प्रिवी पर्स को समाप्त करने के लिए इंदिरा गांधी को तैयार किया।
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उससे बढ़कर 1969 के कांग्रेस विभाजन के समय उनकी सलाह पर ही इंदिरा गांधी ने महत्वपूर्ण फैसले लिए। उनकी ही सलाह पर इंदिरा ने ये बहाना करते हुए मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय ले लिया कि वो बैंक राष्ट्रीयकरण का विरोध कर रहे थे।

चार दिनों के बाद इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति अध्यादेश के जरिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया हालांकि उसके कुछ दिनों बाद ही संसद का अधिवेशन शुरू होने वाला था। हक्सर की राय थी कि अध्यादेश के जरिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ये संदेश जाएगा कि ये इंदिरा गांधी का निजी फैसला है।

सबसे ताकतवर नौकरशाह : हक्सर एक चुम्बकीय व्यक्तित्व के मालिक थे। पढ़े लिखे थे, मजाकिया थे और उनमें बातचीत करने का गजब का सलीका था। मेनस्ट्रीम के संपादक निखिल चक्रवर्ती उनके सबसे प्रिय दोस्त थे। हक्सर की बेटी नंदिता हक्सर ने एक दिलचस्प बात मुझे बताई कि मेनस्ट्रीम के कई संपादकीय पीएन हक्सर लिखा करते थे, लेकिन उनका नाम कभी भी पत्रिका में नहीं छपा।

इंदिरा गांधी को हक्सर के घर के बने कोफ्ते बहुत पसंद थे। अक्सर जब उनका दिल चाहता तो वो इसकी फरमाइश करतीं। उनका ख्‍याल था कि ये कोफ्‍ते हक्सर का खानसामा तैयार करता था। वास्तव में ये कोफ्‍ते हक्सर अपने हाथों से इंदिरा गांधी के लिए खुद बनाया करते थे।

उनका रौब ऐसा था कि कई बार तो उनके कमरे में घुसते ही मंत्री भी उठ कर खड़े हो जाते थे। उनकी याद्दाश्त का भी कोई जवाब नहीं था। दुनिया भर की घटनाएं और तारीखें उन्हें इस तरह से याद रहती थी जैसे वो उनकी डायरी में लिखी हों।

किसी भी चीज का विष्लेषण हक्सर से अच्छा कोई कर नहीं सकता था। हिंदी और अंग्रेजी दोनों पर उन्हें बराबर की महारत थी। वो उन गिने चुने नौकरशाहों मे थे जो संस्कृत में भी बात कर सकते थे। अल्लामा इकबाल का ये शेर वो अक्सर गुनगुनाया करते थे-

यूनान- ओ- मिस्र ओ- रूमा सब मिट गए जहां से

अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा

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कमिटेड ब्यूरोक्रेसी : ये उन्हीं की बूता था कि उन्होंने साठ के दशक में प्रधानमंत्री कार्यालय के कैबिनेट सचिव के कार्यालय से भी महत्वपूर्ण बना दिया था। 1967 से 1973 तक वो संभवत: सरकार के सबसे प्रभावशाली और ताकतवर शक्स थे।

उन्होंने ही पहली बार ‘कमिटेड ब्यूरॉक्रेसी ’ की विवादास्पद परिकल्पना दी थी जिस पर उनकी काफी आलोचना भी हुई। 1971 के युद्ध से पहले सोवियत संघ के साथ हुए समझौते में भी हक्सर की छाप साफ दिखाई देती थी।

वो 1971 मे ही इंदिरा गांधी के साथ अमेरिकी यात्रा पर गए। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के व्यक्तित्व का बहुत बारीक आकलन इंदिरा गांधी के सामने पेश किया। उन्होंने ही इंदिरा गांधी को बताया कि जब निक्सन दबाव में होते हैं तो उनको बेतहाशा पसीना आता है।

संजय से अलग रहने की सलाह : इंदिरा गांधी के आसपास के लोगों में से कई लोग उनके बेटे संजय गांधी की हरकतों से खुश नहीं थे लेकिन उनमें से किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो इस बारे में उनसे बात कर पाएं। ये हक्सर का ही बूता था कि उन्होंने इंदिरा गांधी को सलाह दी थी कि वो संजय को दिल्ली से कहीं दूर भेज दें ताकि उनसे जुड़े सारे विवाद अपने आप मर जाएं।

इंद्र कुमार गुजराल अपनी आत्मकथा मैटर्स ऑफ डिसक्रेशन में लिखते हैं, 'हक्सर इस हद तक गए कि उन्होंने इंदिरा से कहा कि आप संजय से अलग रहना शुरू कर दें। इस पर उनका जवाब था कि हर कोई संजय पर हमला कर रहा है। कोई उसके बचाव में नहीं आ रहा है। उसके बारे में हर तरह की गलत कहानियां फैलाई जा रही हैं। हक्सर ने कहा कि इसीलिए तो मेरा मानना है कि आपको कुछ समय के लिए संजय से कोई वास्ता नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से आपको नुकसान हो रहा है।'

जाहिर है कि इंदिरा ने हक्सर की बात नहीं मानी और ये बातचीत बहुत अप्रिय परिस्थतियों में समाप्त हुई और इसकी उन्हें बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी। 1973 में उन्हें इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव के पद से हटा कर योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गए। नेहरू के जमाने में योजना आयोग की बहुत ठसक थी लेकिन हक्सर के समय तक सुनील खिलनानी के शब्दों में कहा जाए तो योजना आयोग ‘एक सॉफिस्टिकेटेड अकाउंट दफ्तर और हाशिए पर लाए गए लोगों का घर बन गया था।’

महान परमाणु वैज्ञानिक राजा रामन्ना ने उनके बारे में एक दिलचस्प बात लिखी थी, 'जब तक इंदिरा गांधी ने हक्सर की बात सुनी वो जीत पर जीत अर्जित करतीं गईं, चाहे वो बांगलादेश हो, निक्सन हों, जुल्फ़िकार अली भुट्टो हों या परमाणु परीक्षण हो। लेकिन जैसे ही उन्होंने हक्सर को हटा कर अपने छोटे बेटे की बात सुननी शुरू कर दी, उनकी आफते वहीं से शुरू हो गईं। इसे मात्र संयोग ही नहीं कहा जा सकता कि हक्सर के जाने के बाद ही भिंडरावाला आए, ऑप्रेशन ब्लू स्टार हुआ, संजय की मौत हुई और खुद उनकी हत्या हुई।'(मेमोरीज ऑफ़ पीएन हक्सर)

नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनवाने में भूमिका : पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने एक बहुत दिलचस्प बात मुझे बताई। राजीव गांधी की मौत के बाद ये सवाल उठ खड़ा हुआ कि उनका उत्तराधिकारी कौन हो।

नटवर सिंह ने सोनिया गांधी को सलाह दी कि इस बारे में उन्हें पीएन हक्सर से मशवरा करना चाहिए। हक्सर को 10 जनपथ बुलाया गया। उन्होंने सलाह दी की तत्कालीन उप राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा इस पद के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली को ये जिम्मेदारी दी गई कि वो शंकरदयाल शर्मा का मन टटोलें। शंकरदयाल ने इन दोनों की बात सुनने के बाद कहा,'मैं इस बात से बहुत अभिभूत हूं कि सोनियाजी ने मुझमें इतना विश्वास प्रकट किया। लेकिन भारत का प्रधानमंत्री होना एक फुल टाइम जॉब है। मेरी उम्र और मेरा स्वास्थ्य मुझे इस देश के सबसे महत्वपूर्ण पद के साथ न्याय नहीं करने देगा।’

अब हैरान होने की बारी नटवर सिंह की थी। एक बार फिर सोनिया गांधी ने हक्सर को बुलाया। इस बार हक्सर ने नरसिम्हाराव का नाम सुझाया। आगे की घटनाएं इतिहास हैं।

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