सिख पंथ के दस गुरु साहिबान

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गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस को गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु थे, पढ़ें गुरु नानकदेवजी की शिक्षा में निम्न चार बातें -

 

गुरु नानकदेवजी की शिक्षा में 4 बातें

1. नाम स्मरण करना।

2. चढ़दी कला में रहना।

3. प्रभु की आज्ञा में रहना।

4. सबका भला चाहना।



2. दूसरे जामे में गुरु अंगद साहिब के रूप में प्रकटे गुरु ज्योति ने बताया कि 'परमेश्वर माता की तरह है' जो बच्चे की हर प्रकार की टूटी-फूटी बोली और संकेतों को समझती है। उसे किसी विशेष बोली की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर प्राप्ति के लिए किसी विशेष भाषा की आवश्यकता नहीं है।


3. तीसरे गुरु अमरदासजी ने मानव मात्र में एकता लाने के लिए जाति-पाति छुआ-छूत का पूर्णतया निषेध किया। इस प्रयोजन के लिए उन्होंने सम्मिलित भोजन शाला (साझा लंगर) जारी करते हुए यह आदेश दिया कि कोई व्यक्ति भोजनशाला में भोजन किए बिना मुझसे नहीं मिल सकता, जिससे आपने नीच-ऊंच, गरीब-अमीरी का भेद मिटाने का प्रयत्न किया।


4. चतुर्थ गुरु रामदासजी के रूप में मनुष्य मात्र को यह समझाया कि तेरा प्रभु तुझ में समा रहा है इसलिए खास तौर पर पूर्व या पश्चिम की ओर ही धर्म मंदिरों के दरवाजे बनाने की आवश्यकता नहीं है। स्वामी सबका है और स्वामी के मंदिर भी सबके हैं। खास तरह के मंदिर बनाने, खास दिशा की ओर उनके दरवाजे रखना और विशेष जातियों को ही अंदर आने जाने के लिए नियम गढ़ने, ये सब भ्रमपूर्ण बातें हैं। गुरुजी ने नमूने के तौर पर श्री अमृतसर में हरि मंदिर बनवाया। इसके चारों ओर चार दरवाजे रखे, जिनमें से चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि को आने-जाने की स्वतंत्रता है।



5. पांचवें गुरु अर्जनदेवजी ने इस भ्रम जाल को तोड़ा कि आत्मिक ज्ञान किसी विशेष श्रेणी अथवा किसी विशेष मजहब की ही मिल्कियत है। आपने मानव को समझाया कि ज्ञान, प्रकाश का ही दूसरा नाम है।



6. छठवें गुरु हरगोविन्दजी ने गुरु ज्योति के नेक को बलवान बनाने के लिए एक नया रास्ता सुझाया। उन्होंने बताया कि यदि पुरातन रूढ़ियों के जोश में कोई व्यक्ति पागल हो उठे और सही जीवन शिक्षा सिखाने वाले लोगों को मारने का प्रयत्न करे, तो उसको शस्त्र द्वारा ठीक (सोध) कर देना चाहिए। ऐसा करना उस प्राणी पर दया करने के समान है। उन्होंने सिखों को तलवार रखने की प्रेरणा दी।



7. सातवें गुरु हरिराय साहिब के जामे में यह शिक्षा है कि पुरातनता के मद में पागल हुए जीवों के सुधार के लिए जो शस्त्र धारण किए जाएं, उनका संयम से व्यवहार करना चाहिए। ऐसा न हो कि दया भाव की जगह क्रोधाधीन होकर तलवार म्यान से बाहर आए और परोपकार की जगह पर बदले की भावना तेज हो उठे। आपने यह आज्ञा दी कि तलवार सदा पहने रखो परंतु उसका उपयोग अत्यधिक आवश्यकता पर ही करें।


8. आठवें गुरु हरिकृष्णजी के जामे में बहुत थोड़ा समय मिला। उन्होंने कहा कि शस्त्रों के बिना सत्याग्रह द्वारा भी बुराई के विरुद्ध समयानुसार आंदोलन जारी रखा जा सकता है। अपनी छोटी सी आयु में आपने आत्मिक शक्ति द्वारा बुराई से टक्कर ली और मानवता में नई शक्ति का संचार किया।


9. नौवें गुरु तेगबहादुरजी ने दूसरों की भलाई के लिए बलिदान देने का अभ्यास कराया। आपकी कुर्बानी से यह स्पष्ट हो गया कि संसार की बड़ी से बड़ी ताकत भी एक सत्य पुरुष के दृढ़ विचारों को डिगा नहीं सकती।


10. दशम गुरु गोविन्दसिंहजी के जामे इस जीवन पाठशाला में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की तलवार से परीक्षा ली गई। उसका नया फल निकला कि शिष्य किस तरह उत्तीर्ण होकर आगे बढ़ें। सिर्फ ढाई सौ साल का समय वह था जिसमें गुरु नानक साहिबजी ने दस जामों में नई जीवन पद्धति सिखाई। नए आचरण को सीखने वाले विद्यार्थी सिख कहलाए ।
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