बिहार में 'दाल' गलेगी या भाजपा को ले डूबेगी?

अनिल जैन
रविवार, 25 अक्टूबर 2015 (16:10 IST)
पटना। अरहर दाल की दामों को को लेकर वैसे तो पूरे देश में बवाल मचा हुआ है, लेकिन बिहार में विधानसभा चुनाव के चलते जबर्दस्त हंगामा हो रहा है। यहां अरहर दाल की कीमत दो सौ रुपए के पार पहुंच गई है।

महागठबंधन की पार्टियों ने इसे भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है। यही वजह है कि केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह और खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान से लेकर भाजपा और उसके सहयोगी दलों के तमाम नेताओं को लगातार इस मामले में सफाई देनी पड़ रही है।

राधामोहन सिंह और पासवान ने तो बाकायदा प्रेस कांफ्रेन्स करके दाल की कीमतें बढ़ने का ठीकरा बिहार सरकार पर फोड़ा और कहा कि राज्य सरकार न तो जमाखोरी पर रोक लगा रही है और न आयात की हुई दाल महंगी खरीद कर सस्ता बेच रही है।

इस आरोप पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटवार करते हुए कहा कि बिहार में अगर राज्य सरकार दोषी है तो देश के अन्य राज्यों खासकर भाजपा शासित राज्यों में दाल के दाम बढ़ने के लिए भाजपा और केंद्र सरकारकिसे जिम्मेदार ठहराएगी!

नीतीश कुमार के इस सवाल का भाजपा के नेता कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं। इतना ही नहीं, पार्टी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा तो खुलेआम कह रहे हैं कि भाजपा एक बार प्याज के आंसू रो चुकी है और कहीं ऐसा न हो कि इस चुनाव में उसे दाल ले डूबे।

दरअसल, बिहार के इस चुनाव में भाजपा की दिक्कत यही है कि वह चुनावी मुद्दा बनने वाले मसलों की पहचान समय से नहीं कर पा रही है। इसीलिए हर मसले पर उसकी प्रतिक्रिया सबसे देरी से आ रही है।
दाल पर भी उसकी प्रतिक्रिया तब आई, जब सोशल मीडिया में दाल की बढ़ती कीमतों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'अरहर मोदी' और 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' जैसे कटाक्ष होने लगे और बिहार भर में होटलों के मेनू में दाल गंगाजन के नाम से आइटम जोड़ा जाने लगा।

भाजपा नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की दलीलें भी इतनी लचर रही कि जनता पर उनका कोई असर नहीं हुआ, उलटे महागठबंधन के नेताओं को हावी होने का मौका मिल गया और सोशल मीडिया में भी उन दलीलों की खिल्ली उड़ाई जा रही है।

यही नहीं, दाल की कीमतों के चुनावी मुद्दा बनने से परेशान भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी आपस में चर्चा कर रहे हैं कि चुनाव में भाजपा की 'दाल' गलेगी या भाजपा को ले डूबेगी?
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