बिहार में एनडीए ने जबरदस्त जीत हासिल की है। अब बिहार में बीजेपी अकेले ही सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। ऐसे में अब बीजेपी को नीतीश कुमार की भी जरूरत नहीं होगी। आखिर क्या है वो पांच कारण जिसने बीजेपी को जानते हैं बिहार में बीजेपी के जीत के 5 कारण।
दस हजार का दाव : एनडीए ने महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपए जमा करा कर पूरी बाजी पलट दी। इससे महिला वोटर्स पूरी तरह से बीजेपी या एनडीए के खेमे में आ गई। इससे बिहार में महिलाओं का वोट प्रतिशत भी बढा।
सुशासन (Good Governance) और 'सॉफ़्ट' छवि: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक स्थिर और विकास-उन्मुख नेता की छवि, खासकर शुरुआती कार्यकाल में NDA को मिलती है। यह छवि सुशासन के नैरेटिव को मज़बूती देती है।
महिलाओं का 'साइलेंट' वोटबैंक : राज्य सरकार की योजनाएं, जैसे शराबबंदी (Liquor Ban), पंचायती राज में महिलाओं के लिए आरक्षण और साइकिल योजना ने महिलाओं के एक बड़े वर्ग को NDA के पक्ष में एकजुट किया है। यह एक मज़बूत और स्थिर वोटबैंक है।
अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलितों का गठजोड़ : NDA ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBCs) और महादलित समुदायों को साधने पर ज़ोर दिया है। यह गठबंधन NDA को पारंपरिक RJD के MY (मुस्लिम-यादव) बेस से परे एक बड़ा सामाजिक आधार देता है।
संगठनात्मक मज़बूती और बूथ प्रबंधन: भाजपा और JDU दोनों का बूथ स्तर पर मज़बूत संगठन है, जो मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाने में और विरोधी दल के वोट को विभाजित करने में प्रभावी साबित होता है। यह जीत की एक सामान्य राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक व्याख्या है। इसके साथ ही साइलेंट महिलाओं के वोटबैंक यानी महिला मतदाताओं ने शराबबंदी जैसे फैसले को सही माना। नीतीश कुमार की सरकार ने महिलाओं के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं, जैसे पंचायतों में 50% आरक्षण, साइकिल योजना और जीविका मॉडल। चुनाव विश्लेषणों से पता चलता है कि महिला मतदाताओं ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान किया और उन्होंने बड़ी संख्या में एनडीए के पक्ष में वोट किया। यह समर्थन एनडीए की जीत में एक निर्णायक कारक साबित हुआ। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनकी कल्याणकारी योजनाओं (जैसे DBT, गैस कनेक्शन, आवास) का सीधा लाभ बिहार के मतदाताओं, विशेषकर युवाओं और गरीबों पर पड़ता है।
Edited By: Navin Rangiyal