जयंती विशेष: कबीर दास जी पर निबंध

WD Feature Desk
मंगलवार, 10 जून 2025 (17:37 IST)
Kabir Das per nibandh: भारत की संत परंपरा में जिन नामों का स्मरण समय-समय पर हर पीढ़ी करती है, उनमें संत कबीरदास एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने ना केवल आध्यात्मिक चेतना जगाई, बल्कि सामाजिक कुरीतियों को भी खुलकर चुनौती दी। कबीरदास जी का जन्म हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक था, और उनकी वाणी आज भी हर मत, हर मजहब, हर वर्ग को एक साथ जोड़ने का संदेश देती है।
 
कबीर जयंती का दिन एक ऐसा अवसर है जब हम सिर्फ उन्हें याद नहीं करेंगे, बल्कि यह समझने की भी कोशिश करेंगे कि 21वीं सदी के इस भागते दौर में भी कबीर क्यों प्रासंगिक हैं। उनके दोहे, उनकी निर्भीकता, उनकी सामाजिक दृष्टि और आध्यात्मिक विचारधारा आज के युवा, समाज और मानवता को बहुत कुछ सिखा सकती है।
 
कबीरदास जी के जन्म के विषय में ऐतिहासिक प्रमाण कम हैं, परंतु यह माना जाता है कि उनका जन्म 15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। वह एक जुलाहा परिवार में पले-बढ़े और जीवन भर कपड़ा बुनते रहे। लेकिन उनका असली काम था, समाज की सोच को बुनना और अंधविश्वास को उधेड़ना।
 
उन्होंने न किसी ग्रंथ को अंतिम माना, न किसी कर्मकांड को परम सत्य। उन्होंने कहा:
 
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"
यानी शिक्षा, ज्ञान और प्रेम, यही सच्चे संत और इंसान की पहचान है।
 
सामाजिक क्रांति के अग्रदूत
कबीरदास जी ने एक ऐसा दौर देखा था जब समाज जातिवाद, कर्मकांड, बाह्य आडंबर और धार्मिक कट्टरता में जकड़ा हुआ था। उन्होंने दो टूक कहा:
 
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।"
 
उनकी वाणी ने ना केवल हिन्दू धर्म में फैले पाखंड को चुनौती दी, बल्कि मुस्लिम धर्म के रूढ़िवाद को भी आइना दिखाया। वो दोनों समुदायों के कट्टरपंथियों के लिए असुविधाजनक थे, लेकिन आम जनमानस के लिए वो आशा और साहस की आवाज़ थे।
 
कबीर की वाणी, आज के समाज की जरूरत
कबीर की वाणी कोई मात्र "दोहों का संग्रह" नहीं, बल्कि एक जीवित विचारधारा है।
आज जब समाज एक बार फिर धर्म, जाति, भाषा, राजनीति के नाम पर बँटा हुआ है, कबीर की आवाज हमें याद दिलाती है कि:
 
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"
यानी परिवर्तन बाहर नहीं, अपने अंदर से शुरू करना होगा। उनके दोहे आज के सोशल मीडिया युग में भी वायरल हो सकते हैं, क्योंकि वो इंसान को आईना दिखाते हैं, सच्चाई से, बेबाकी से और प्रेम से।
 
कबीरदास जी का व्यक्तित्व सिर्फ संत नहीं, संपूर्ण क्रांति था। उन्होंने समाज के हर जाल को तोड़ने का साहस किया, बिना किसी डर के, बिना किसी उम्मीद के। उनके दोहे, उनकी सीख और उनका जीवन आज भी हर जागरूक नागरिक के लिए एक मशाल की तरह है। कबीर जयंती हमें यह अवसर देती है कि हम सिर्फ उन्हें याद न करें, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन और समाज में उतारें। 

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