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Tulsidas Jayanti: तुलसीदास के 3 चुनिंदा दोहे जिनमें छुपा है श्रीराम जैसा जीवन जीने का रहस्य

WD Feature Desk
बुधवार, 30 जुलाई 2025 (17:01 IST)
tulsidas ke dohe in hindi: हर साल श्रावण मास में मनाई जाने वाली तुलसीदास जयंती न सिर्फ एक कवि की स्मृति है, बल्कि यह एक ऐसे संत के जीवन और विचारों को सम्मान देने का अवसर है, जिन्होंने हमारी भाषा, संस्कृति और भक्ति परंपरा को नया आयाम दिया। गोस्वामी तुलसीदास न केवल रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ के रचयिता हैं, बल्कि उनके दोहे आज भी जीवन को दिशा देने वाले मंत्र की तरह माने जाते हैं।
 
तुलसीदास के दोहे केवल धार्मिक उपदेश नहीं हैं, बल्कि उनमें गहरे जीवन मूल्य छिपे होते हैं। इस बार तुलसीदास जयंती पर हम ऐसे ही 5 विशेष दोहों पर चर्चा करेंगे, जो हमें सिखाते हैं कि श्रीराम जैसा चरित्रवान, धैर्यवान और मर्यादा से युक्त जीवन कैसे जिया जा सकता है। ये दोहे न सिर्फ हमारी सोच बदल सकते हैं, बल्कि जीवन में संतुलन, संयम और सच्चाई की प्रेरणा भी दे सकते हैं।
 
1. ‘तुलसी’ सब छल छाँड़िकै, कीजै राम-सनेह।
अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह॥
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह संदेश देते हैं कि भगवान श्रीराम की भक्ति में किसी भी प्रकार का छल, कपट या बनावटीपन नहीं होना चाहिए। "तुलसी सब छल छाँड़िकै, कीजै राम-सनेह", अर्थात् भक्त को अपने भीतर के सभी दिखावे, दंभ और स्वार्थ को त्यागकर केवल निष्कलंक प्रेम और श्रद्धा के साथ प्रभु की भक्ति करनी चाहिए। वे आगे कहते हैं कि "अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह" जैसे एक पत्नी अपने पति से अपने शरीर का कोई भी रहस्य नहीं छिपा सकती, वैसे ही हम ईश्वर से अपने मन, कर्म और भावनाओं को नहीं छिपा सकते, क्योंकि भगवान तो सर्वज्ञ हैं, वे हमारे भीतर-बाहर के हर भाव को जानते हैं। इसलिए उनके साथ कोई कपट नहीं चल सकता। सच्ची भक्ति वही है जो निश्छल हो, जिसमें कोई स्वार्थ या दिखावा न हो। इस दोहे में तुलसीदास जी न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन दे रहे हैं, बल्कि हमें यह भी सिखा रहे हैं कि ईश्वर से जुड़ने का एकमात्र रास्ता है, सच्चे मन से समर्पण और प्रेम।
 
2. आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से हमें सामाजिक और मानवीय व्यवहार की एक गहरी सीख देते हैं। वे कहते हैं कि यदि किसी घर में जाने पर वहाँ के लोग आपको देखकर हर्षित नहीं होते, और उनकी आँखों में आपके प्रति स्नेह या अपनापन नहीं झलकता, तो ऐसे स्थान पर कभी भी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ पर सोने की बारिश ही क्यों न हो रही हो। "आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह", यह पंक्ति दर्शाती है कि स्वागत और अपनापन केवल शब्दों या भौतिक साधनों से नहीं, बल्कि हृदय की सच्ची भावना और आंखों के प्रेम से झलकता है। "तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह", यहाँ तुलसीदास जी यह स्पष्ट कर रहे हैं कि सम्मान और आत्मीयता किसी भी भौतिक लाभ से कहीं अधिक मूल्यवान है। यदि किसी स्थान पर केवल धन है लेकिन प्रेम और सम्मान नहीं, तो ऐसे स्थान पर जाना आत्मा के लिए हानिकारक है। यह दोहा आज के सामाजिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है, जहां आत्मसम्मान, स्नेह और सम्मान को धन से ऊपर रखने की प्रेरणा मिलती है।
 
3. अमिय गारि गारेउ गरल, नारी करि करतार।
प्रेम बैर की जननि युग, जानहिं बुध न गँवार॥
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी इस दोहे में स्त्री के जटिल और प्रभावशाली स्वरूप को बहुत गहराई से चित्रित करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान ने स्त्री की रचना अत्यंत रहस्यमय ढंग से की है, उसे एक ओर अमृत (मधुरता, ममता, करुणा) से और दूसरी ओर गरल (विष यानी क्रोध, ईर्ष्या, दुर्भाव) से गूंथकर बनाया है। इस दोहरे स्वभाव वाली नारी को भगवान ने स्वयं "कर्तार" बनाकर संसार में भेजा है। स्त्री में इतनी शक्ति है कि वह प्रेम को जन्म दे सकती है, पर यदि स्थिति प्रतिकूल हो तो वह वैर और द्वेष का भी कारण बन सकती है। इसीलिए तुलसीदास कहते हैं कि प्रेम और वैर दोनों की जननी स्त्री ही होती है, परंतु इस गूढ़ सत्य को केवल ज्ञानी, विवेकशील और अनुभवी व्यक्ति ही समझ पाते हैं, मूर्ख और अज्ञानी लोग नहीं। यह दोहा नारी को सम्मान देने के साथ-साथ उसके भीतर छिपी शक्तियों, भावनाओं और प्रभावों की पहचान कराता है, और यह दर्शाता है कि स्त्री समाज में कितनी निर्णायक भूमिका निभाती है।
 

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