आदमी आज भी आदिम है

अनहद
वो बात, सारे फसाने में जिसका जिक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है ।

IFM
मैं अपने गुरु का सम्मान करने के लिए, उन्हें पूजने के लिए स्वतंत्र हूँ, पर यह माँग नहीं कर सकता कि दूसरे भी मेरे गुरु, मेरे देवता, मेरे पूजनीय का सम्मान करें। यह माँग भी ठीक नहीं है कि दूसरे मेरे गुरु से असहमत न हों, उनमें मीन-मेख न निकालें। छूट तो यह होना चाहिए कि हम अपने गुरु का सम्मान करते हैं, अपने पूजनीय का सम्मान करते हैं, अगर आप उन्हें गलत कहते हैं तो ये आपकी जिम्मेदारी है। मुझे इसमें क्यों गुस्सा आना चाहिए?

लोकतंत्र का मतलब यही है कि कोई भी आलोचना से परे नहीं है, मगर सरकारें धार्मिक भावना को चोट पहुँचाने और शांति भंग करने के आरोप लगाकर बोलने वालों का हमेशा मुँह पकड़ने की कोशिश करती है। वोटों के लिए बहस को मार दिया जाता है। तमाम कलाकार कभी-न-कभी इससे पीड़ित होते हैं।

कभी-कभी तो बात कुछ होती ही नहीं और बतंगड़ बना दिया जाता है। अब कहीं जाकर साफ हुआ है कि शाहरुख खान ने कहा कुछ था और छपा कुछ। उन्होंने इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद की तारीफ में कुछ कहा था, मगर उलझे दिमाग के रिपोर्टर ने वाक्य को उलझा मारा और एक शब्द के मिसप्रिंट से बात कुछ की कुछ हो गई। कुछ दिनों पहले एक धर्माचार्य के बारे में लिखा गया था- "बादशाहों के बादशाह", पर छपा था "बदमाशों के बादशाह"। जाहिर है यह गलती भी प्रिंट मिस्टेक की वजह से हुई थी। बहरहाल उक्त अखबार ने शाहरुख वाले मामले पर अपनी गलती स्वीकार करते हुए स्पष्टीकरण भी छापा है।

असल में शाहरुख से पूछा गया था कि आपकी नज़र में इतिहास में सबसे प्रभावी शख्सियत कौन है। जवाब में शाहरुख ने कहा था- ऐसी बहुत-सी हस्तियाँ हैं, हिटलर जैसे कुछ नकारात्मक प्रवृत्ति के भी रहे हैं। नेपोलियन और विंस्टन चर्चिल प्रभावशाली हस्तियाँ रही हैं। यदि मैं इसे इतिहास कह सकूँ तो सबसे सकारात्मक प्रभावी हस्ती हज़रत मोहम्मद हैं। हाल के वर्षों में नेल्सन मंडेला, महात्मा गाँधी और मदर टेरेसा भी प्रभावी शख्सियतें हैं।

अब इस वाक्य में कुछ भी गलत नहीं है, पर रिपोर्टर ने कुछ और लिख दिया और हंगामा मच गया। इस मामले में अखबारों और न्यूज़ चैनलों ने इतनी सतर्कता से काम लिया कि विवादित बातें बताईं ही नहीं। केवल इतना बताया कि शाहरुख की एक टिप्पणी से हंगामा मचा हुआ है। मीडिया सभी धर्मों के लोगों से डरता है। कहने को हम इक्कीसवीं सदी में हैं, पर असहिष्णुता वही पहली सदी ईसवी जैसी है।

ईसा मसीह को यहूदियों ने इसीलिए तो सूली पर लटकाया था, क्योंकि वे उनके धार्मिक विश्वासों के खिलाफ बातें कह रहे थे। क्या आज किसी ईसा को छोड़ दिया जाएगा? किसी भी धर्म के विश्वासों के खिलाफ कुछ भी कहना खतरनाक है। गलती से हो या जानबूझकर...। चित्रकार हुसैन भागते फिर रहे हैं और शाहरुख की भी जान साँसत में थी। कैलेंडर बदलने से समझ नहीं बदलती। आदमी आज भी आदिम है।

( नईदुनिया)


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