ईशा के लिए ज्यादा जरूरी है सफल होना

अनहद
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कुदरत के नियम अजीब हैं। कभी-कभी बहुत साधारण माता-पिता के घर सुंदर और प्रतिभावान बच्चा पैदा होता है और कभी बहुत सुंदर और प्रतिभाशाली लोगों के घर में बहुत साधारण बच्चे पैदा हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर धर्मेंद्र को लिया जा सकता है। कोई कह सकता है कि धर्मेंद्र में भले ही पौरुषेय सौंदर्य हो, पर उनकी पहली पत्नी कोई बहुत सुंदर नहीं है।

चलिए दूसरी पत्नी हेमा मालिनी तो स्वप्न सुंदरी कहलाती थीं, पर धर्मेंद्र-हेमा की दोनों बेटियाँ बहुत ही साधारण हैं। ईशा देओल तो किसी एंगल से सुंदर नहीं हैं। बड़े-बड़े मेकअप मैन उनके सामने हार जाते हैं। दिग्गज कैमरामैन सोचते हैं कि किस एंगल से शॉट लिया जाए कि बड़ा बेडौल माथा छिप जाए और छोटी-छोटी ऊँची-नीची आँखें अच्छी दिखें। उनकी छोटी बेटी आहना भी मामूली है।

कुछ लोग सोचते हैं कि बड़े लोगों के बच्चों के बड़े मजे रहते हैं। एक अर्थ में ये बात ठीक है। भौतिक रूप से ऐसे बच्चों का जीवन बहुत भरा-पूरा होता है। मगर बड़े लोगों के बच्चों के सामने एक चुनौती यह रहती है कि मुझे अपने माता-पिता से आगे निकलना है। आगे नहीं भी निकल पाऊँ तो मुझे अपने-आप को साबित करना है।

खुद माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान उनकी अपनी संतान मात्र ही न बनी रहे, उसकी अपनी पहचान भी कुछ बने। जब ऐसा नहीं हो पाता, तो बड़े बाप के बच्चे जितनी हीन भावना महसूस करते हैं, उतनी हीनभावना झोपड़ी में रहने वाले बच्चे कभी महसूस नहीं करते।

गरीब आदमी के बच्चे के लिए सफलता इतनी जरूरी नहीं होती। इस माने में गरीब का बच्चा खुशकिस्मत होता है कि गरीब है। अगर वो खुद भी गरीब रह जाए तो रह जाए। अमीर आदमी का साधारण बच्चा भी कपूत कहला सकता है।

सफल आदमी पर भी ये दबाव होता है कि उनकी औलाद उनके जितनी सफल हो। जाहिर है हीरो-हीरोइन पर ये दबाव अधिक होता है। ईशा देओल ने सबके साथ काम किया है। यश चोपड़ा से लेकर मणिरत्नम तक। कोई भी ईशा को सुपर हीरोइन नहीं बना पाया। बना सकता भी नहीं। एक दौर में उन्हें सब जगह काम मिला।

ईशा को रिलांच करने के लिए हेमा मालिनी बड़े बजट की फिल्म "टेल मी ओ खुदा" बनवा रही हैं। पैसा जमकर लग रहा है। फिल्म "फैशन" में काम कर चुके अर्जन बाजवा और "कमीने" वाले चंदन सान्याल फिल्म में हैं।

हेमा मालिनी के पुराने समय के दोस्त, वाकिफकार ऋषि कपूर भी फिल्म में हैं और विनोद खन्ना भी। धरम पाजी भी हैं। फिल्म हिट हो जाए तो हेमा मालिनी के दिल का बोझ हलका हो। कुछ फिल्में रचनात्मकता के लिए नहीं बल्कि फर्ज निभाने के लिए भी बनाई जाती हैं। देखेंगे कि ये फिल्म क्या करती है।

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