गुलजार के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर बंगला साहित्य का जबरदस्त प्रभाव है। इसके अलावा उन्होंने अधिकांश बांग्ला फिल्मकारों के साथ काम किया है। उनका लिखा पहला गीत बिमल राय की फिल्म बंदिनी के लिए था, जिसमें सचिन दा का संगीत था। उनका आरडी से परिचय तो फिल्म 'परिचय' (1972) से हुआ, जब वह अंग्रेजी फिल्म 'द साउण्ड ऑफ म्युजिक' से इन्सपायर होकर परिचय फिल्म बना रहे थे।
फिल्म परिचय के लिए जो पहला गीत आरडी ने कम्पोज किया, उसकी दिलचस्प कहानी पंकज राग ने अपनी पुस्तक धुनों की यात्रा में विस्तार से लिखी है। इस फिल्म के निर्माण के दौरान गुलजार एक होटल में रहते थे। आरडी ने पहले गाने की धुन बनाई और रात के एक बजे होटल पहुंच गए। गुलजार को जगाया। अपनी कार में बैठाया और जुहू तथा बान्द्रा की सुनसान सड़कों पर मोटर कार दौड़ाते रहे। बीच-बीच में गाड़ी रोक कर डेश बोर्ड का ठेका लगाते गीत तथा धुन सुनाते रहे। यह गीत किशोर कुमार के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक माना जाता है-
इस मोड़ से जाते हैं (आँधी/ लता-किशोर)
हमें रास्तों की जरूरत नहीं है (नरम-गरम/ आशा)
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं (आँधी/ लता-किशोर)
बीती ना बिताए रैना (परिचय/ भूपेन्द्र-लता)
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है (इज़ाजत/ आशा)
सिली हवा छू गई, सिला बदन छिल गया (लिबास/ लता)
आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख्वाब हैं (घर/ किशोर-लता)
आने वाला पल, जाने वाला है (गोलमाल/ किशोर)
तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं (मासूम/ लता-अनूप घोषाल)
खाली हाथ शाम आई है (इजाजत/ आशा भोसले)
मुसाफिर हूं यारों न घर है ना ठिकाना (परिचय/ किशोर कुमार)
कतरा कतरा मिलती है (इजाजत/ आशा भोसले)
रोज रोज आंखों तले (जीवा/ आशा-अमित कुमार)
आजकल पांव जमीं पर (घर/ लता मंगेशकर)
पिया बावरी (खूबसूरत/ आशा-अशोक कुमार)
बेचारा दिल क्या करे (खुशबू/ आशा)
राह पे रहते हैं (नमकीन/ किशोर)