राजकुमार कभी थे पुलिस सब इंस्पेक्टर, थाने में ही मिला था पहली फिल्म का ऑफर

WD Entertainment Desk
बुधवार, 3 जुलाई 2024 (12:35 IST)
Raaj kumar death anniversary: संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार का नाम फिल्म जगत की आकाश गंगा में ऐसे धुव्रतारे की तरह है, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया। राजकुमार का जन्म पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रांत में 8 अक्टूबर 1926 को एक मध्यम वर्गीय कश्मीरी बाह्मण परिवार में हुआ था। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजकुमार मुंबई के माहिम पुलिस स्टेशन में बतौर सब इंस्पेक्टर काम करने लगे। 
 
राजकुमार मुंबई के जिस थाने में कार्यरत थे वहां अक्सर फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार पुलिस स्टेशन में फिल्म निर्माता कुछ जरूरी काम के लिए आए हुए थे और वह राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। और उन्होंने राजकुमार से अपनी फिल्म 'शाही बाजार' में अभिनेता के रूप में काम करने की पेशकश की। राजकुमार सिपाही की बात सुनकर पहले ही अभिनेता बनने का मन बना चुके थे। इसलिए उन्होंने तुरंत ही अपनी सब इंस्पेक्टर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और निर्माता की पेशकश स्वीकार कर ली।
 
'शाही बाजार' को बनने में काफी समय लग गया और राजकुमार को अपना जीवनयापन करना भी मुश्किल हो गया। इसलिए उन्होंने वर्ष 1952 मे रिलीज फिल्म 'रंगीली' में एक छोटी सी भूमिका स्वीकार कर ली। यह फिल्म सिनेमाघरों में कब लगी और कब चली गई यह पता ही नहीं चला। इस बीच उनकी फिल्म 'शाही बाजार' भी प्रदर्शित हुई। जो बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी।
 
शाही बाजार की असफलता के बाद राजकुमार के तमाम रिश्तेदार यह कहने लगे कि तुम्हारा चेहरा फिल्म के लिए उपयुक्त नहीं है। और कुछ लोग कहने लगे कि तुम खलनायक बन सकते हो। वर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। 'रंगीली' के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली राजकुमार उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने अनमोल, सहारा, अवसर, घमंड, नीलमणि और कृष्ण सुदामा जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
 
महबूब खान की वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म 'मदर इंडिया' में राजकुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फिल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी। फिर भी राजकुमार अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फिल्म की सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
 
वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'पैगाम' में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राजकुमार यहां भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद दिल अपना और प्रीत पराई, घराना, गोदान, दिल एक मंदिर और दूज का चांद जैसी फिल्मों मे मिली कामयाबी के जरिए वह दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां वह अपनी भूमिकाएं स्वयं चुन सकते थे। 
 
वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'काजल' की जबरदस्त कामयाबी के बाद राजकुमार ने अभिनेता के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। बी.आर. चोपड़ा की 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'वक्त' में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से दर्शक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। फिल्म में राजकुमार का बोला गया एक संवाद 'चिनाई सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं, वो दूसरों के घर पे पत्थर नहीं फेंका करते' और 'चिनाई सेठ ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं, हाथ कट जाए तो खून निकल आता है' दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुए।

ALSO READ: परिवार संग कल्कि 2898 एडी देखने पहुंचे रणवीर सिंह, पत्नी दीपिका पादुकोण की जमकर की तारीफ
 
'वक्त' की कामयाबी से राजकुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने हमराज, नीलकमल, मेरे हुजूर, हीर रांझा और पाकीजा में रूमानी भूमिकाएं स्वीकार कीं, जो उनके फिल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थीं। कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा पूरी तरह से मीना कुमारी पर केन्द्रित फिल्म थी। इसके बावजूद राजकुमार ने अपने सशक्त अभिनय के दम पर दर्शकों की वाहवाही लूटी। पाकीजा में उनका एक संवाद 'आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा, मैले हो जाएंगे' इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे बगाहे उनके संवाद की नकल करने लगे।
 
वर्ष 1978 में प्रदर्शित फिल्म 'कर्मयोगी' में राज कुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म में उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए उन्होंने स्वयं को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘बुलंदी’ में वह चरित्र भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। 
 
वर्ष 1991 में प्रदर्शित फिल्म 'सौदागर' में राजकुमार के अभिनय के नए आयाम देखने को मिले। सुभाष घई की निर्मित इस फिल्म में राजकुमार 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'पैगाम' के बाद दूसरी बार दिलीप कुमार के सामने थे और अभिनय की दुनिया के इन दोनों महारथियों का टकराव देखने लायक था। नब्बे के दशक में राजकुमार ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया। इस दौरान उनकी तिरंगा, पुलिस और मुजिरम, इंसानियत के देवता, बेताज बादशाह, जवाब, गॉड और गन जैसी फिल्में प्रदर्शित हुई। 
 
नितांत अकेले रहने वाले राजकुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफी करीब है। इसीलिए अपने पुत्र पुरू राजकुमार को उन्होंने अपने पास बुला लिया और कहा 'देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फिल्म उद्योग को सूचित करना।' अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राजकुमार 3 जुलाई 1996 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

बॉलीवुड हलचल

नेटफ्लिक्स-प्राइम वीडियो को टक्कर देने आया Waves, प्रसार भारती ने लॉन्च किया अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म

नाना पाटेकर ने की अनिल शर्मा की शिकायत, वनवास के निर्देशक को बताया बकवास आदमी

प्राइम वीडियो ने रिलीज किया अग्नि का इंटेंस ट्रेलर, दिखेगी फायरफाइटर्स के साहस और बलिदान की कहानी

भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस दिन होगा जब खुली किताब का वर्ल्ड प्रीमियर

Bigg Boss 18 : सच में भी बिग बॉस के लाड़ले हैं विवियन डीसेना, वायरल वीडियो से खुली पोल!

सभी देखें

जरूर पढ़ें

भूल भुलैया 3 मूवी रिव्यू: हॉरर और कॉमेडी का तड़का, मनोरंजन से दूर भटका

सिंघम अगेन फिल्म समीक्षा: क्या अजय देवगन और रोहित शेट्टी की यह मूवी देखने लायक है?

विक्की विद्या का वो वाला वीडियो फिल्म समीक्षा: टाइटल जितनी नॉटी और फनी नहीं

जिगरा फिल्म समीक्षा: हजारों में एक वाली बहना

Devara part 1 review: जूनियर एनटीआर की फिल्म पर बाहुबली का प्रभाव

अगला लेख