क्यों फीकी पड़ रही है सनी देओल की चमक?

समय ताम्रकर
अस्सी और नब्बे के दशक के स्टार सनी देओल की शिकायत है कि इन दिनों उन्हें काम नहीं मिल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से वे बहुत कम फिल्मों में नजर आए हैं। जिसमें भी वे दिखाई दिए हैं उनमें से ज्यादातर के निर्माता वे खुद रहे हैं। बाहरी निर्माताओं ने उनसे दूरी बना ली है और सनी को समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें फिल्में क्यों नहीं मिल रही हैं। 
 
दरअसल सनी इतने प्राइवेट पर्सन रहे हैं कि उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री वालों से कभी मेलजोल नहीं रखा। सनी न पीते हैं और न पिलाते हैं, लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है कि वे पार्टियों में नहीं जा सकते। सनी की तरह अक्षय कुमार भी शराब से दूर रहते हैं। रात को जल्दी सो जाते हैं, लेकिन लोगों से मिलना-जुलना उनका जारी रहता है। वे संबंध बनाना जानते हैं। 
 
सनी का जब तक स्टारडम था, तब तक उन्हें फिल्में मिलती रहीं। लेकिन जब उनका सितारा डूबने लगा तो लोगों ने दूरी बना ली। सनी के साथ उन लोगों का सितारा भी अस्त हो गया जो सनी के साथ फिल्में बनाते थे। आज गुड्डू धनोआ, सुनील दर्शन, राहुल रवैल, अनिल शर्मा जैसे निर्देशक आउटडेटेट हो गए, लिहाजा सनी को फिल्म मिलना बंद हो गई। 
 
नई पीढ़ी के निर्देशकों से सनी ने कभी मिलने-जुलने की कोशिश नहीं की। इससे यह संदेशा गया कि सनी फिल्म नहीं करना चाहते हैं। फिल्म इंडस्ट्री के लोग बताते हैं कि सनी से मिलना बहुत कठिन है और यह भी एक अहम कारण रहा है। अफवाह है या सच, यह बताना कठिन है, लेकिन कहा जाता है कि सनी का मोबाइल नंबर सिर्फ दस लोग जानते हैं। उन्होंने एसएमएस जैसी सुविधा भी नहीं ली है। सनी ने अपने इर्दगिर्द एक दीवार खड़ी रखी है जिसे उन्हें भेदना होगा। 
 
सनी अपने आपको बदलने की कोशिश कर रहे हैं। अब वे फिल्म के प्रमोशन के लिए जाने लगे हैं। काफी बोलने भी लगे हैं, लेकिन अब काफी देर हो गई है। सनी की फिल्में मल्टीप्लेक्स में बिलकुल भी नहीं चलती। युवा दर्शक उनकी फिल्म देखना पसंद नहीं करते। सनी को जो पसंद करते हैं वे थिएटर का रूख नहीं करते। 
 
हीरो बनने की जिद भी अब सनी को छोड़ना चाहिए। वे चाहें तो ऋषि कपूर या अनिल कपूर की तरह चरित्र भूमिकाएं निभा सकते हैं। इससे संभव है कि कुछ निर्माता-निर्देशक सनी को अपनी फिल्मों का हिस्सा बनाएं। सनी लोकप्रिय हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। टीवी पर उनकी फिल्में आज भी खूब टीआरपी बटोरती हैं। 
 
जरूरत है सनी को खुद में बदलाव लाने की और जमाने के हिसाब से चलने की। 

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